रेलवे के कई सारे नियम है, उसमे एक नियम है loss of confirmed ticket याने आरक्षित टिकट का गुम हो जाने पर क्या करे, इसका नियम। वैसे तो नियम बेहद सरल है, लेकिन हम उसे, एक अनुभव के साथ आपके सामने रख रहे है।
कुछ वर्षों पहले की बात है, हमारे नासिक के पण्डित भोलानाथजी और उनका पूरा 17 जनोंका परिवार उत्तराखंड की यात्रा कर वापस नासिक लौट रहा था।
उनके साथ क्या घटना हुई और उसमें से उन्होंने कैसे मार्ग निकाला, देखते है, लेकिन पहले हमारे स्टोरी के हीरो पण्डित भोलारामजी की थोड़ीसी हिस्ट्रीजान लेते है, तो भोलारामजी नासिक, महाराष्ट्र के निवासी थे। पीढ़ी दर पीढ़ी से वो कर्म कांड, पुजा अर्चना करवाना और गाँव शहरोंसे आए भक्त गणोंसे, जजमानोकी पूजापाठ करवाके अपना जीवनयापन, आजीविका चला रहे थे। काम काज न सिर्फ अच्छा था बल्कि जोरदार था। पण्डित जी की माली हालत काफी मजबुत थी।
हर रोज पण्डित जी की मुलाकात नये नये मिजमानोंसे होती थी। कोई उत्तर भारत से तो कोई सुदूर हिमाचल से नासिक पूजा पाठी करवाने आते थे। पण्डितजी को दूर देश की बातें जानने की बड़ी ललक रहती थी, बातूनी तो थे ही, खूब बतियाते। एक बार बद्रीकेदार से कुछ पण्डोंसे पण्डित भोलानाथ जी की मुलाकात हुई, पण्डित जी उन्हें अपने घर ले आए, दो दिन खूब आवभगत की, उन्हें नासिक, त्र्यम्बकेश्वर में मानसन्मान के साथ दर्शन करवाए, जाते जाते पण्डोने उन्हें अपने यहाँ, उत्तराखंड आने का पुरजोर आग्रह किया और वादा लिया की वे उन्हें मेहमान नवाज़ी का मौका जरूर देंगे। यह इस कथा की पार्श्वभूमि है।
पण्डितजी के उनके सहित 5 भाई, पाचों भाइयोंकी पत्नियाँ, पण्डित जी के माता पिता और पण्डितजी के 2 बच्चे, 3 भतीज़े कुल मिलाकर 17 रिजर्वेशन थे।
नासिक से हरिद्वार जाना, हरिद्वार से एक मिनी बस से बद्रीकेदार में 2-2 दिन रहना और हरिद्वार वापस आकर ट्रेन से हज़रत निजामुद्दीन होते हुए नासिक पोहोचना ऐसा फुल्ल प्रोग्राम बना।
अब पण्डितजी ठहरे परंपरावाले, उन्हें टिकट याने बाकायदा टिकट चाहिए थे, इलेक्ट्रॉनिक, इ-टिकट पर तो उनको भरोसा ही नही था। उनके मित्रोंने ढेर समझाया की इ-टिकट ले लो, सम्भालने का झंझट नही, लेकिन नहीं, उन्होंने सब टिकट लिखापढ़ी वाले, टिकट खिड़की से ही बनवाए।
नासिक से हरिद्वार की सीधे ट्रेन की टिकट थी। लेकिन लौटते वक्त हरिद्वार से रात को चलके सुबह हज़रत निजामुद्दीन और वहाँसे दोपहर 3 बजे चलने वाली Ac एक्सप्रेस के टिकट लिए थे। हालांकि पूरी यात्रा 3 AC की और कन्फर्म टिकट वाली थी।
अब स्टोरी के मुख्य भाग पर आते है, बद्रीकेदार के दर्शन वहाँ के पन्डोंकी बदौलत बड़े मान, परम्परा के साथ सम्पन्न हुए। मिनीबस से हरिद्वार लौट गए और हरिद्वार की रात की ट्रेन में पण्डित जी अपने परिवार के साथ हज़रत निजामुद्दीन के लिए रवाना हो गए।
रात कट गई, गाड़ी सुबह सुबह निजामुद्दीन पोहोंचने को थी।
हजरत निजामुद्दीन में उतरना था, पण्डितजी और उनका परिवार सामान समेटने लगा, के पण्डितजी को खयाल आया, उनका टिकट के पुलिंदे वाला बैग गायब है। हाय राम! अब क्या करे? पण्डित जी के तो होश उड़ गए। हरिद्वार से ट्रेन चली तो TTE से उन्होंने टिकट चेक करवाकर बैग अपने सिराहने रखा था। गाड़ी में पण्डित जी उस बैग को ज्यादा तवज्जों दे रहे थे तो किसी चोर उचक्के को लगा होगा बड़ा माल होगा, तभी इतना संभाल रहे है, उसने वही बैग उड़ा ले गया। अब उसमें पण्डितजी की हज़रत निजामुद्दीनसे नासिक की 3AC की सारी 17 टिकटे जो कि कन्फर्म थी और सभी लोगोंकी ID प्रूफ, साथ ही ऊपरी खर्चे के 5000 रुपये रखे थे।
बड़े बेमानी मन से पण्डितजी निजामुद्दीन स्टेशनपर उतरे। पूरी यात्रा के आनंद की ऐसी तैसी हो गई थी। परिवार के सभी लोग सकते में आ गए थे। स्टेशन पर जाके सबसे पहले उन्होंने अपने परिवार को एक सुरक्षित जगह पर बिठाया और GRP पुलिस में जाके अपने बैग के चोरी की रपट लिखवाई, साथ ही रपट में टिकट, ID और ₹5000/- का जिक्र भी किया।
इस सब झमेले में 10 बज गए थे। पण्डितजी को कुछ सूझ ही नही रहा था। उनके भाईयोंने बाहर से चाय नास्ते का प्रबंध किया। पैसोंकी खास परेशानी नहीँ थी। भाइयोंके पास ATM कार्ड की सुविधा थी।
आधे जन सामान के पास रुक कर बारी बारी खाना खाके आए। पण्डितजी बेहद परेशान थे, कुछ सूझ नही रहा था। जैसे बेजुबां हो गए थे। जीवन मे पहलीबार ऐसे खुद को ठगासा, और शर्मिंदगी महसूस कर रहे थे। ऐसी हालत में अपने किसी दोस्त, या जान पहचान वालेसे बातचीत कर समस्या का हल ढूंढने की भी इच्छा नही कर पा रहे थे।
दोपहर की गाड़ी का चार्ट 4 घण्टे पहले प्लेटफार्म पर आया तो चार्ट पर अपने सभी नाम देखकर पण्डितजी को यह तसल्ली हुई की टिकट रिफंड नही हुए है। सोचे चार्ट में नाम तो छपे पड़े है, देखेंगे आगे जो भी हो, हालाँकि पण्डितजी की यहाँ से गलतीयों की शुरुवात हो चुकी थी।
करीबन दो बजे गाड़ी प्लेटफॉर्म पर लगी तो पण्डितजी अपने पूरे परिवार को लेकर गाड़ी में सवार, अपने आरक्षित नम्बर पर जम गए। तीन बजे गाड़ी अपने निर्धारित समयानुसार चल पड़ी, थोड़ी ही देर में TTE साहब भी आ गए। जब उन्होंने टिकट मांगे तो पण्डितजी ने अपनी समस्या बताई और टिकट के बदले पुलिस की FIR की कॉपी TTE को थमा दी।
TTE ने उनकी एक न चलने दी। काफी बहस हुई, एक तरफ TTE तो दूसरे तरफ पण्डितजी और उनके भाई, भौजाइया। TTE साहब ने उनसे कहा, भलेही आपके आरक्षण हो, चार्ट में नाम हो, लेकिन कायदे से टिकट नहीँ है तो आप को बिना टिकट का जुर्माने सहित 34000 रुपैया भरना होगा।
पण्डितजी जो पहले अपने रिजर्वेशन होने का दम भर रहे थे, वह सेटलमेंट की बात करने लगे, इतने पैसे नहीँ होने की दुहाई देने लगे। वाकई में उनके किसी के भी साथ इतनी नगदी नही थी। लेकिन TTE साब टस से मस नहीँ हुए। अड़ गए, जुर्माने सहित पूरे पैसे तो देनेही होंगे, नही तो आगरा में आपको उतरना होगा और पैसे नहीँ होने की सूरत में पुलिस केस बनाया जाएगा।
जव सेटलमेंट के सारे रास्ते बंद नज़र आने लगे तो आख़िरकार पण्डितजी ने आगरा में, फोन लगाकरअपने किसी दोस्त के मौसाजी से पैसे का जुगाड करवाया। इधर TTE साहब ने भी आगरा में पुलिस पार्टी और चेकिंग स्टॉफ को इत्तिला कर दी थी, की बिना टिकट के 17 जनोंका केस है, कार्रवाई के लिए तैयार रहे।
जैसे ही आगरा स्टेशन आया तो पुरा चेकिंग स्टॉफ अपने दल और बल के साथ गाड़ी में चढ़ गया। लेकिन पीछे पीछे पण्डितजी के रहमोदिगर तारणहार श्री श्री मौसाजी भी कैश लेकर हाजिर हो गए। गाड़ी बिस मिनट लेट करवाई गई, पूरे 17 टिकट जुर्माने के साथ वसूल किए गए और तब गाड़ी अपने गंतव्य के रवाना हुईं।
पण्डितजी, अपनी तीर्थयात्रा कौनसे राहुकाल मे शुरू की गई थी इसकी मगजमारी, अपनी ही, जुर्माना भर के अधिकृत कराई गई सीट पर बैठ सोच रहे थे।
आपसे निवेदन है, न करें, पण्डितजी की तरह गलतियाँ, पारंपरिक फिजिकल टिकट छोड़िए, ई-टिकट अपनाए।
टिकट गुम हुवा या कोई भी रेल सम्बंधित समस्या हो तो रेलवे हेल्पलाइन 139 पर फोन करे और जानकारी ले।
टिकट गुम होना, चोरी होने की सूरत में रेलवे आपको डुप्लीकेट टिकट बनाके देती है। यह सुविधा केवल कन्फर्म और RAC टिकट धारकोंके लिए लागू है।
चार्ट बननेसे पहले आपका डुप्लीकेट टिकट का आवेदन आरक्षण केंद्र में पहुंचता है तो वातानुकूलित श्रेणी के लिए प्रति यात्री ₹100/- और बगैर वातानुकूलित याने द्वितीय श्रेणी, शयनयान स्लिपर के लिए प्रति व्यक्ति ₹50/- देकर आपको डुप्लीकेट टिकट मिल सकता है।
चार्ट बनने के बाद, कन्फर्म टिकट का डुप्लीकेट टिकट, कुल किराए के 50% चार्ज देने के बाद मिलेगा, चार्टिंग के बाद RAC टिकट वालेको डुप्लीकेट टिकट नही मिलेगा।
यदि आपने डुप्लीकेट टिकट बनवा लिया और आपका खोया हुवा टिकट आपको मिल गया तो, दोनोंही टिकट लेकर आप एक्स्ट्रा चार्ज के रिफण्ड की मांग कर सकते है, तब आपके अर्जीपर, आपको जो चार्ज आपसे वसूला गया है उसका 5% या ₹20/- जो भी ज्यादा हो काट कर रिफण्ड कर दिया जाएगा।
टिकट यदि खोया नही है, लेकिन गन्दा, मैला हो गया है, कट फट गया है तो यदि वो पढ़ा जा सकता है तो उसका रैगुलर नियमानुसार जो भी डिडक्शन है, वह कर के रिफण्ड मिल जाएगा।
कटे, फ़टे टिकट का डुप्लीकेट टिकट बनाने के लिए, कुल किराए का 25% चार्ज भरना होगा।
यदि आपका पार्टी टिकट, स्पेशल गाड़ी टिकट हो, और डुप्लीकेट टिकट बनाने की नौबत आए तो गाड़ी छूटने तक, कुल किराए के 10% देनेपर आप डुप्लीकेट टिकट बनवा सकते है।
हाँ, एक बात ध्यान रखे, खोए हुए या पूर्ण रूपसे खराब, फट चुके टिकट का रिफण्ड नहीं मिलता है।
आगे नियम भी दे रहे है –