आखिरी पोस्टकार्ड कब लिखा था आपने? शायद बरसों बीत गए हो, याद तक नही आता है। भाई साहब, आपको पोस्ट कार्ड कब लिखा वह याद नही और आजकल के बच्चोंको पोस्टकार्ड क्या होता है वही मालुम नही।
आज हम रेल्वेकी जानकारी की जगह पोस्ट की क्या बातें कर रहे है, लेकिन थोड़ा एक जैसा मामला है, हमारी सवारी गाड़ियोंके उपेक्षित हालात और पोस्टकार्ड की पीड़ भरी गुमनामी। इसमें समानता ऐसी है की दोनोंही रियायती सेवाएं है। पोस्टकार्ड मात्र 15 पैसे, 25 पैसे जैसे निम्न शुल्क में सेवा देता था उसी तरह यह सवारी गाड़ियाँ बेहद सस्ते में यात्रिओंको अपने गाँवोंसे शहरोंको पोहचाती है।
हालाँकि, सवारी गाड़ियाँ, पोस्ट कार्ड जैसी गुमनामी में तो कतई नही है लेकिन रेल प्रशासन के नजर में घोर उपेक्षित जरूर है। माना की यह गाड़ियोंके उत्पन्न के आंकड़े, रेल प्रशासन की अपेक्षाओं के अनुरूप नही होते या यूँ कहिए प्रशासन को इन गाड़ियोंसे कमाई की कोई उम्मीद ही नही होती लेकिन क्या करे, मार्ग के सभी छोटे स्टेशनोंको शहरोंसे जोड़नेवाली केवल यही गाड़ी होती है। गाँव के स्कूली बच्चे, रोजगार के लिए दौड़धूप करने वाले मजदूर, दवाखाने जानेवाले मरीज, उनके लिए तो यही साधन होता है।
आजकल रेलवे अपने रेल मार्ग के रखरखाव और सुधारणाओंके प्रति बहोत ही सजग और ततपर हो गई है। बहोत अच्छी बात है, होनाही चाहिए, लेकिन इसकी सज़ा छोटे गाँव वाले, सवारी गाड़ियोंके यात्री ही क्यों भुगते भला?
जब भी रेल्वे प्रशासन अपने सुधार कामोंके लिए ब्लॉक घोषित करती हैं तो सबसे पहले ईन सवारी गाड़ियोंकी बलि चढ़ती है। फलांसे फलां दिन तक रद्द। ये क्या बात हुई भला? एक मार्ग पर दिन भर में 4 सवारी गाड़ियाँ चलती हो तो 2 बन्द कर दो, कमसे कम दो गाड़ियाँ तो शुरू रखो। या फिर इन गाड़ियों को रिशेड्यूल याने समयमें बदलाव कर के चलाया जा सकता है। बिल्कुल ही बन्द, रद्द ये छोटे गाँव के यात्रिओंसे बहोत बड़ी नाइंसाफी है।
उसी मार्ग पर एक्सप्रेस और सुपरफास्ट गाड़ियाँ तो बड़े धड़ल्ले से चलती है भलेही उन्हें रेग्युलेट किया गया हो, तो क्या, उसी तरह ये सवारी गाड़ियाँ भी रेग्युलेट कर के नही चलाई जा सकती?
आज तमाम छोटे गाँव के यात्री परेशान और बेज़ार है। रेलवे प्रशासन थोड़ी हमदर्दी, रहमदिली बताए और सवारी गाड़ियोंके साथ इन्साफ करे।