आजकल पूरे भारतीय रेलवे में LHB कोच का बोलबाला है। कोई भी गाड़ी को नए LHB रेक मिलते है तो बड़ी हर्षोल्हास की लहर छा जाती है और अख़बरोंकी हेडलाईन बन जाती है। क्या होता है यह LHB कोच और क्या फर्क ले आता है गाड़ियोंमे? आइए समझते है।
LHB यह एक जर्मनी की रेल डिब्बे बनानेवाली कम्पनी लिंक हॉफमैन बुश का शार्ट नेम है। भारतीय रेल को हाई स्पीड ट्रेनोकी जरूरत महसूस होने लगी थी और हमेशा वाले ICF कोच की गति 110 – 120 से ज्यादा नही थी। तलाश की गई और 1995 में तकनीकी हस्तांतरण के तहत जर्मनी के LHB कम्पनीसे 24 वातानुकूलित चेयर कार का पूरा रेक याने एक पूर्ण गाड़ी की रचना भारत में RCF रेल कोच फैक्ट्री कपूरथला लाया गया और उसे नई दिल्ली लखनऊ शताब्दी एक्सप्रेस में प्रयोग के तौर पर लगाया गया। अलग थलग रंग, बड़े बड़े शीशे की खिड़कियों से सज्जित यह गाड़ी थी तो बहोत अच्छी लेकिन शुरू में मार्ग के लोगोंने इसके शीशे पर पत्थर मार मार कर गाड़ी को फिर से RCF के शेड के भीतर पोहचा दिया।
फिरसे शीशोंपर सुरक्षा टेप लगाए गए, कुछ और थोड़े बहुत बदल कर कराके यह गाड़ी पटरी पर लाई गई।
वैसे टेक्निकल कोलेब्रेशन वर्ष 2000 में शुरू हुवा।
आइए सबसे पहले हम LHB डब्बोंकी तकनीकी बाते समझते है,
LHB डिब्बे की लंबाई 23.54 मीटर और चौड़ाई 3.24 मीटर होती है। लम्बाई पुराने ICF डिब्बोंसे 1.7 मीटर ज्यादा होनेसे LHB डिब्बे की यात्री क्षमता 10% बढ़ जाती है।
LHB कोच में CBC याने सेंटर बफर कपलिंग का उपयोग होता है, इस वजहसे ट्रेन दुर्घटना में यह डिब्बे अपने सामनेवाले डिब्बे पर चढ़ते नही और नाही दबके जमा होते है।
LHB कोच, स्टेनलेस स्टील और एल्युमिनियम धातु से बनाए जाते है। इस वजह से LHB डिब्बोंका टेयर वेट, याने खुदका वजन 39.5 टन होता है जो पुराने डिब्बोंसे कम है। जिससे गाड़ी की गति क्षमता 160 – 200 KMPH मिलती है।
हर डिब्बेको APDBS एडव्हान्स प्यूमेटिक डिस्क ब्रेकिंग सिस्टम लगा होता है जिससे गाड़ी को तुरन्त नियंत्रण में लाया जा सकता है।
LHB डिब्बों की अत्याधुनिक तकनीक की वजह से गाड़ी चलते वक्त, गाड़ी का आवाज केवल 60 डेसिबल है जबकी पुराने ICF कोचमे यही आवाज 100 डेसिबल है।
आंतरराष्ट्रीय मानकोंमें डिब्बोंके राइड इंडेक्स जांचे जाते है। जितना राइड इंडेक्स कम उतना डिब्बा यात्राके लिए आरामदायी ऐसे माना जाता है। LHB डिब्बे का राइड इंडेक्स 2.5 – 2.75 है तो ICF कोच का 3.25 होता है।
ICF कोच बनाने की लागत से कम कीमत में यह LHB कोच बन जाते है।
LHB डब्बोंमे अत्याधुनिक बायो टॉयलेट होते है, जिससे रेलमार्ग साफसुथरा रहने में मदत मिलती है।
LHB डिब्बोंका POH याने पीरियोडिक ओवरहॉल, रखरखाव की अवधी 24 माह की है जो की ICF कोच में 18 माह की होती है। जिससे LHB डिब्बे ज्यादा वक्त तक ईस्तेमाल के लिए उपलब्ध रहते है।
LHB कोच में एखाद, दो तकलीफें भी है।
CBC सेंटर बफर कपलर होने की वजह से गाड़ी जब शुरू होती है या ब्रेक लगाए जाते है तब डब्बोंको एक झटका, जर्क लगता है और दूसरा यह की डिब्बे में पुराने ICF डिब्बोकी तरह सेल्फ जनरेटिंग सिस्टम नही होने से रेक के दोनों एन्ड पर जनरेटर डिब्बा लगाना पड़ता है। हालाँकी नई, सुधारित HOG हेड ऑन जनेरेशन तकनीक से इंजिन से ही डब्बोंको इलेक्ट्रिक सप्लाई की जाने लगी है।
भारतीय रेल की 5 कोच फैक्ट्री है, जिसमे सर्वप्रथम वर्ष 2003 से RCF कपूरथला पंजाब में LHB कोच का उत्पादन शुरू किया गया। भारतीय रेल की सबसे पुरानी कोच फैक्ट्री, ICF पेरामबुर तमिलनाडु में वर्ष 2013 से इसका उत्पादन शुरू हुवा जो 2018 से पूर्ण क्षमतासे चलाया जा रहा है। MCF रायबरेली उत्तर प्रदेश में वर्ष 2017 से LHB का उत्पादन शुरू हो चुका है और RCF पालक्कड़ केरल, RCF कोलार कर्नाटक में भी शुरू होने जा रहा है।
आनेवाले दिनोंमें भारतीय रेल पर सभी गाड़ियाँ LHB कोचेस द्वारा चलाई जाने लगेंगी और आप सभी को LHB कोच की पूरी ABCD पहलेसेही पता रहेगी। तो आनंद लीजिए LHB कोच के आरामदायी सफर का।