लखनऊ नई दिल्ली लखनऊ तेजस एक्सप्रेस का संचालन शुरू हो गया, इसके साथ ही रेलवे में एक नया पर्व शुरू हो गया है। यह पहली PPP मॉडयूल रेल गाड़ी है। PPP का मतलब है, पब्लिक – प्राइवेट पार्टनरशिप सार्वजनिक निजी भागिदारी के तहत रेल प्रशासन ने इस गाड़ी संचालन, भारतीय रेल की वाणिज्यिक इकाई IRCTC को सौंपा है।
इस गाड़ी में रेलवे अपना चल स्टॉक याने लोको और डिब्बे देगी। ऑपरेटिंग स्टाफ़ लोको पायलट, गार्ड रेलवे के रहेंगे और कमर्शियल स्टाफ़ याने चेकिंग स्टाफ़, अमेनिटी याने आवभगत स्टाफ, मेंटेनेन्स और साफसफाई स्टाफ, कैटरिंग स्टाफ सारे IRCTC के रहेंगे।
इसमें खास बात यह है की रेल प्रशासन, टूर ऑपरेटर से, एक प्राइवेट टुरिस्ट ट्रेन की तरह किराया वसूल करेगी। जिस तरह के कोचेस टुरिस्ट ट्रेन में लगते है और उसके चार्जेस अप्लिकेबल होते है, उसी तरह किराया रेट लगेगा। पॉइन्ट टू पॉइन्ट प्रति किलोमीटर का रेट, एम्प्टी हौलेज, डिटेंशन चार्जेस इस तरह किराया जोड़ा जाएगा। टूर ऑपरेटर प्रति व्यक्ति क्या किराया लेता है उसका रेल प्रशासन के चार्जेस से कोई मेल नही।
याने रेल प्रशासन को केवल आपरेटिंग कॉस्ट से सरोकार है, टूर का मैनेजमेंट, उसके यात्री , उनकी आवभगत, उनकी व्यवस्था सारा जिम्मा टूर ऑपरेटर के पाले में रहेगा। इस व्यवस्थासे रेल प्रशासन खासे उत्साह में है, जहाँ शुरू में ppp के लिए दो मार्ग लखनऊ दिल्ली और मुंबई अहमदाबाद की घोषणा की गई थी अब 25 मार्ग और 50 मार्ग की संभावनाएं सोची जा रही है। ऐसे लग रहा है की मानों सारी प्रिमियम ट्रेनें, जैसे शताब्दी, राजधानी, वन्देभारत, गतिमान एक्सप्रेस गाड़ियाँ इस PPP के हाथों सौप दी जाएगी। सारे प्रिमियम मार्ग, सारे प्रिमियम टाईमिंग के स्लॉट इन प्राइवेट ऑपरेटर के हाथों चले जाएंगे।
जाहिर सी बात है, कोई भी पैसा लगाएगा तो लोकप्रिय होने के लिए प्राइम टाइम स्लॉट ही डिमांड करेगा।
यह सीधे सीधे दो स्तर वाली रचना दिखाई देने लगेगी। PPP वाली गाड़ियाँ और सरकारी गाड़ियाँ। भाई, ज्यादा किराया दो, समयपर, आरामदायी सफर करो।
रेल कर्मचारियोंका नजरिया फ़िलहाल तो तटस्थता का रुख अपनाया हुवा है, लेकिन रेल कर्मचारियोंकी यूनियन्स के नेताओंमें इस विषय को लेकर बड़ी गम्भीरता से विचारमंथन चल रहा है। रेल प्रशासन इस दिशा में आगे बढ़ता है तो रेलवे के कमर्शियल स्टाफ़ की आवश्यकता ही खत्म हो जाएगी, साथही रखरखाव, सफाई स्टाफ़, स्टेशन कैटरिंग व्यवसाय पर भी गहरा असर पड़ेगा।
आगे यह भी सुनने में आ रहा है की टूर ऑपरेटर अपना चल स्टॉक याने डिब्बे भी अपने हिसाब से चुन सकता है, जरूरी नही की वह डिब्बे भारतीय रेल से ही बुक करवाए जाए।
क्या अब यह समझ लेना चाहिए की भारतीय रेल ने अपने कर्मचारियोंको कॉम्पिटिशन के मैदान में उतार दिया है या तक़दीर के दाँव पे लगा दिया है।