वह 24 फरवरी 1993 की तारीख थी औऱ रेल बजट का दिन था। इसी दिन रेलबजट के दौरान भारतीय रेल में सेकंड क्लास 3 टियर स्लिपर और वातानुकूलित 3 टियर स्लिपर क्लास का अवतरण हुवा।
इसके पहले भारतीय रेल मे सेकंड क्लास 2 टियर स्लिपर हुवा करते थे, जिसमे यात्रिओंके लिए सेकंड क्लास सिटिंग जो 24 घंटे और ऊपरी बर्थ रातमे 10 बजेसे सुबह 6 बजे तक स्लिपर उपलब्ध की जाती थी। सब कुछ मैन्युअल था। एक बार चार्टिंग हो गयी कि पूरी की पूरी व्यवस्था TTE के हाथोंमें चली जाती थी। ट्रेन के TTE इस व्यवस्था के ब्रम्हदेव बन जाते थे, सिर्फ उन्हेंही पता रहता था कहाँ बर्थ खाली है, सीट खाली है और कौन कब तक सोने का हकदार है, खैर!
1993 से सेकंड स्लिपर क्लास3 टियर अस्तित्व में आया और सेकंड 2 टियर क्लास रेल सेवा से बन्द कर दिया गया तब से आज तक रेल यात्रिओंकी मानसिकता में कोई भी परिवर्तन नही आया है। आज भी स्लिपर क्लास को शार्ट डिस्टेन्स यात्री और सीज़न पास धारी यात्री अलग क्लास समझते है नही, पुराने जमाने के सेकंड स्लिपर की तरह ही उपयोग लिया जा रहा है।
दरअसल थ्री टियर स्लिपर का कॉन्सेप्ट ही यही था, की यह अलग क्लास बने ताकी लम्बी दूरी की यात्रा करने वाले यात्री सुकुन से, आराम से यात्रा कर सके। जितने लोग आरक्षण कर के यात्रा कर रहे है उतने ही लोग उस डिब्बे में मौजूद हो, कोई भी अतिरिक्त यात्री यदि उसमे है तो वह आसानी से दंडित किया जा सके जो पुराने सेकंड क्लास 2 टायर में कतई आसान नही था।
लेकिन इस कॉन्सेप्ट की धज्जियां सबसे पहले रेलवे प्रशासन ने ही उड़ाना शुरू किया अपनी आरक्षण प्रणाली में RAC टिकट का अविष्कार कर के। हर आरक्षित डिब्बे के चाहे वह वातानुकूलित वर्ग हो या गैर वातानुकूलित हो, साइड लोअर बर्थ जिसे खोल कर दो सीट्स में बाँटा जाता है और दो RAC यात्री बैठा दिए जाते है। जब तक कोई बर्थ खाली नही होता या कोई कन्फर्म यात्री अपनी यात्रा अकस्मात चार्ट बनने के बाद रद्द नही करता तब तक यह RAC यात्री, आरक्षित डिब्बे में बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना के भांति TTE के पीछे एक अदद कन्फर्म बर्थ के लिए चक्कर काटते रहते है। एक रेल यात्री जो पूरा किराया देकर भी बर्थ नही पा सकता उसके साथ रेल प्रशासन का किया गया, सीधा सीधा धोखा है।
यहाँ से शुरू होता है आरक्षित डिब्बे में अनाधिकृत, अतिरिक्त यात्रिओंका सिलसिला। RAC तो RAC, वेटिंग लिस्ट के PRS से छपे टिकट के यात्री भी आरक्षित डिब्बे में ज़बरन घुसे रहते है और जहाँ इतनी भीड़ है, इतने यात्री ठुसे है वहाँ रही सही कसर MST धारक और कम दूरी की यात्रा करने वाले यात्री पूरी कर देते है। पैसेज, ऊपरी बर्थ, दो बर्थ के बीच की जगह, कोई भी जगह खड़े खड़े यात्रा करने के लिए इन लोगोंको मंजूर है। आरक्षित और लम्बी दूरी के यात्रिओंकी किसी को कोई परवाह नही, प्रशासन तक को नही।
इसका इलाज यह है की हर आरक्षित डिब्बे चाहे वो बिना वातानुकूलित ही क्यों न हो उसमें TTE बराबर अपनी ड्यूटी दे, अतिरिक्त यात्री ना चढ़े इसीलिए नियमोंका यथास्थित पालन हो और सिर्फ पेनाल्टी वसूल करने के बजाय अतिरिक्त यात्री को कानूनी कारवाई कर के डिब्बे से खाली करवाया जाए। अतिरिक्त यात्रिओंकी क्या व्यवस्था करना है, यह अतिरिक्त टिकट जारी करने वाले प्रशासन की जिम्मेदारी है, न की लंबी दूरी के आरक्षित टिकट महीनों पहले बुक कराने वाले यात्रिओंकी। उसी तरह MST धारकोंके लिये अलग से व्यवस्था होना भी जरूरी है।
यह सब प्रावधान रेल प्रशासन को जल्द से जल्द करना होगा, अन्यथा सेकंड क्लास थ्री टायर स्लिपर को कोई मतलब नही रह जाएगा।