सड़क की बाईं ओरसे चलना यह हमारे यहाँ ट्रैफिक नियम और नैतिकता है। फिरभी रास्तेपर चलनेवाले कई लोग इसे मानते ही नही। बीना वजह सड़क के बीचों बीच से चलते या अपने वाहन चलाते रहते है। अब आप समझ सकते है की भला ऐसे अनैतिक, अनियमित आचरण को हर बार, हर जगह क्या दण्डित किया जा सकता है?
समाज मे रहने के, सार्वजनिक जगहोंपर घूमने के, इस्तेमाल करने के भी इथिक्स, तौर तरीक़े होते है। लाख नियम बना लीजिए, जब इन्सान अपने तौर तरीकोंपर काबू नही रख सकता, नियमोंकी अनदेखी करता रहेगा तब तक सार्वजनिक जगहों, वाहनों में आनन्द और खुशनुमा वातावरण की अपेक्षा नही कर सकेगा।
रेलवे में टिकट लेने की जगह कतार लगाना, उपनगरीय लोकल ट्रेनोंमें चढ़ने के लिए कतार लगाना यह सही तरीका है गड़बड़ी और रेलमपेल से बचने का। जब डिब्बा दिव्यांग जन के लिए, महिलाओंके लिए सुरक्षित, संरक्षित किया गया है, तो क्यों भला आम आदमी उसमे चढ़ जाता है, क्यों उसे उसकी नैतिकता याद नही आती?
शयनयान स्लिपर में कई यात्री अनारक्षित टिकट, सीजन पास धारक, प्रतिक्षासूची के यात्री TTE से बिना इजाजत लिए घुस जाते है और फिर या तो इधर-उधर खड़े रहते है या अप्पर बर्थ पर चढ़ बैठते है। यह लोग किससे छिपते है, TTE से या अपनी नैतिकता से?
गाड़ी में भीख मांगना, झाड़ू लगाकर पैसे इकठ्ठा करना, तृतीयपंथी लोगोंकी यात्रिओंसे जबरन वसूली, गैरकानूनी रूपसे चलनेवाली और बेचे जानेवाली अवैध खाद्यसामग्री, पानी की बोतलें यह सारे व्यापार, व्यवहार रेलवे के अधिकृत व्यक्तियों के सामने, जी हाँ उनके आँखोंके सामने धड़ल्ले से चलते और बे रोकटोक पनपते रहते है। क्या छठे, सांतवे वेतन आयोग में तनख्वाह के साथ थोड़ी भी नैतिकता नही मिली उनको?
जैसे कर्मचारी, अफसर, राजनीतिज्ञ, प्रशासन वैसी ही जनता। सब के सब एक जैसे। रेलवे के अहाते में जैसे पालतू पशु घूमते रहते है, उसी तरह लोग भी बिना उचित टिकट या परमिट लिए प्लेटफॉर्मो, गाड़ियोंमे घूमते रहते है। क्योंकी नियम और नैतिकता तो पशुओंके लिए है ही नही। जिस तरह 4 पैरोंके प्राणी कहीं गोबर, गंदगी कर देते है, उसी प्रकार कुछ मानवप्राणी भी कहीं सार्वजनिक जगहोंपर थूकते और गंदगी करते है। कोई फर्क है भला, बताइए?
किस किस पर नज़र रखे, किस किस को दण्डित करे? भाई, यह आपकी अपनी जगह है, आपकी अपनी सम्पत्ति, अपना राष्ट्र, अपना देश है। कुछ तो लिहाज़ करे।