रेल यात्रा में चाहे किसी श्रेणी में यात्रा करले, चाहे आपकी टिकट कन्फर्म हो परेशानी आपका साथ नही छोड़ती और खास करके स्लिपर क्लास के यात्री तो मनही मन मे यह तय कर लेते है, आगेसे वातानुकूलित डिब्बों में ही यात्रा करेंगे या जनरल टिकट लेकर उनके डिब्बे में बैठे अतिरिक्त यात्रिओंकी तरह।
मित्रों, स्लिपर डिब्बोंमें अतिरिक्त यात्रिओंकी समस्या, शिकायत हर रोज, पूरे भारतीय रेलपर, किसी न किसी गाडीके यात्री की तस्विरोंके साथ ट्वीटर पर आपको देखने मिल जाएगी। भला ट्वीटर पर क्यूँ? आप के साथ भी कई बार घटित होती होगी, यह अलग बात है कभी आप आरक्षित टिकट के साथ होते हो तो कभी वेटिंग लिस्ट या कभी कभार जनरल टिकट के साथ कम दूरी की यात्रा कर रहे होते हो।
इसका मतलब यह है, की हर सूरत में स्लीपर क्लास का यात्री परेशान ही रहता है। उसकीही कन्फर्म सीट पर उसे एडजस्ट होकर यात्रा करनी पड़ती है। कोई यात्री रिकवेस्ट करके उससे एडजस्ट करवाता है तो कोई स्टाफ़ हूँ ऐसा बोलकर, तो कभी कोई महिला, सीनियर सिटीझन तो एक एक स्टॉप के अपडाउन वाले MST धारक दिन की यात्रा में यह ड्रामा चलता है तो रात में स्लिपर डिब्बेकी धर्मशाला बन जाती है। पैर तक धरने की जगह नही। आप अपनी बर्थ से उठकर टॉयलेट तक नही जा सकते ऐसी हालत डिब्बे की रहती है।
यात्रिओंकी ऐसी हालत देख कर एक तरफ गुस्सा आता है तो एक तरफ 48 – 60 घंटे तक ऐसी ही मजबूर हालात में यात्रा करने वाले यात्रिओंके लिए दुख भी होता है। क्या यह लोग वाकई ऐसी अवस्था के हकदार है? क्या इनके पास पैसे नही, जो इस तरह जमीन पर, बर्थ के बीचमे, नीचे, टायलेट के पास दरवार्जोंके पास, बेसिन के नीचे लेट के, बैठ के, खड़े खड़े या कभी किसी सोये यात्री के पैरोंमें बैठकर अपना सफर तय करते है?
नही साहब, कतई नही। इन्होंने भी उतने ही रुपए चुकाए है जितने की आपने। बस फर्क यह है की आप के पास कन्फर्म टिकट है और इनके पास वेटिंग लिस्ट टिकट। वेटिंग टिकट वह भी कितना? किसका 200 तो किसका 400 तो किसका 600। जी हाँ, इतने वेटिंग लिस्ट नम्बर के टिकट रेलवे इनको थमा देती है। जहाँ पहले 10 वेटिंग नम्बर कन्फर्म में तब्दील नही होते, कैसे इनके वेटिंग टिकट कन्फर्म हो जाएंगे? कैसे मिल जाएंगी इनको बर्थ? क्या इन यात्रिओंको बर्थ की जरूरत समझ नही आती? ना, इसके पीछे का लॉजिक हम आपको बताते है, देखिए जाना तो हर हालात में है। तो क्या करे? PRS से, वहीं भाई, अपनी आरक्षण खिड़की से पेपर वाला टिकट लेलो, चाहे वह कितना ही वेटिंग क्यों न हो, यह टिकट अपने आप रद्द नही होता, भले ही चार्ट बन जाए और फिर भी स्टेटस वेटिंग ही रह जाए। याने गाड़ी के आरक्षित डिब्बे में चढ़ने का एक सबल कारण आपको मिल गया। जब तैयारी हर सूरत में जाने की है तो क्या सीट मिले या ना मिले? गाँव तो पोहोंच ही जायेंगे।
हमने आज तक वेटिंग लिस्ट के PRS टिकट बन्द करके उसे E – टिकट देने के बारे में दलीलें दी। लेकिन इससे आगे जाके हम यह कहते है, रेल प्रशासन यह बिन ब्याज के पैसे इकठ्ठा करना छोड़ दे। बन्द ही करदे वेटिंग लिस्ट और बन्द कर दें इस तरह 600 – 600 वेटिंग लिस्ट टिकट जारी करना। बेहद शर्म की बात है, इन्हीं यात्रिओंको पेनल्टी ठोंककर लाखों – करोड़ों के टारगेट रेलवे अचीव किए ऐसा बोलकर अपनी शाबाशी बटोरती है, अपने स्टाफ को अवार्ड्स देती है।
4 – 4 महीने पहले से यात्री वेटिंग लिस्ट का टिकट ले लेता है, यात्रा के दिन, चार्टिंग होने के बाद उसका टिकट वेटिंग ही रहता है और बिना रिफण्ड लिए वह यात्री जमीन पर बैठ कर, रेलवे की शान में कसीदें पढतें अपनी यात्रा करता है। और तो और कैसल भी करें तो रेल प्रशासन 60 रुपए क्लर्केज तो काट ही लेगी, फिर और दूसरी कोई उम्मीद भी नही की किसी ओर व्यवस्था से वह गांव पोहोंच सकें। तो क्यों भला वह अपना टिकट कैसल करेगा?
आज रेलवे खुदको हर मायने में एअरपोर्ट लाइक लाउन्ज, एअरपोर्ट लाइक एंट्रेंस एन्ड एग्जिट करने पर तुली है, जरूर कीजिए। मगर साहब, बुकिंग भी एअरवेज लाइक कीजिए न! बन्द कर दीजिए वेटिंग लिस्ट टिकट देना। RAC तो आप चला ही रहे है, सब्र कर लीजिए उतने ही धन पर। जैसे ही RAC की लिमिट खत्म होती है, तूरन्त “नो रूम” लगा दीजिए, बन्दा आप ही दूसरी व्यवस्था करेगा, नही तो रोज चेक करेगा, यदि कोई टिकट रद्द होती है तो फिर खुलेगी RAC, हट जाएगी “नो रूम” वाली तख्ती। कमसे कम जितनी डिब्बे की क्षमता है उतने ही लोग डिब्बेमे रहेंगे इसकी रेल प्रशासन के पास तो गारंटी रहेगी न? क्योंकि एक्स्ट्रा टिकट ही जारी नही किए गए रहेंगे।
हमारी रेल प्रशासन से पूर्ण विनम्रता से प्रार्थना है, अब वक्त आ गया है की आप यह अतिरिक्त धन इकट्ठा करना बंद करें और सिर्फ RAC तक ही टिकट जारी करें ताकि रेलवे के यात्री राहत की साँस ले।
Bilkul Sahi ha
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