कोटा के सुजीत स्वामी ने माहिती अधिकार ( right to information act ) के तहत रेलवे से रद्द किए जानेवाले टिकीटोंकी जानकारी मंगाई। रेलवे ने जानकारी देते हुए यह बताया की जनवरी 2017 से लेकर जनवरी 2020 तक गत तीन वर्षोंमें रेलवे ने प्रतिक्षासूची के यात्रिओंसे करीबन 9000 करोड़ रुपये की आय अर्जित की है। साढ़े नौ सौ करोड़ लोगोंने अपने प्रतिक्षासूची के PRS वाले टिकट रद्द नही करवाए जिससे 4335 करोड़ रुपए और 4684 करोड़ रुपए, यात्रिओंके टिकट ऑनलाईन थे जो अपने आप रद्द हो गए उससे रेलवे ने यह कमाई की है।
इन दोनों टिकट लेने के तरीके में करीबन 75% टिकट स्लिपर क्लास के थे, दूसरा क्रमांक थ्री टायर AC का है। वही रद्दीकरण में 90% प्रतिक्षासूची के टिकट एक क्लास के थे। इन तीन वर्षोंमें 145 करोड़ ऑनलाइन टिकट तो 74 करोड़ टिकट PRS से आबंटित किए गए। *जाहिर सी बात है, जो 74 करोड़ प्रतिक्षासूची वाले टिकट PRS से जारी हुए है, उनमें से शायद ही 5-10 प्रतिशत टिकट रद्द किए होंगे और जो भी PRS टिकट रद्द किए गए होंगे उसमे भी करीबन 90% टिकट AC क्लास के होंगे।
क्या रेल प्रशासन इन आँकड़ोंसे कुछ संज्ञान लेगी? यह सारे प्रतिक्षासूची, स्लीपरों वाले टिकटधारी अनाधिकृत यात्री अपने टिकट लिए अधिकृत यात्रिओंके साथ, स्लिपर डब्बोंमे घुस कर यात्रा करते रहते है। जो एक सुरक्षित यात्रा के हिसाब से न सिर्फ यात्रिओंके लिए बल्कि रेल परिचालन के लिए भी बेहद खतरनाक हो सकता है।
किसी 80 यात्री की क्षमता के डिब्बे में 150-200 यात्री यात्रा करते है और वही जनरल सेकन्ड क्लास में 100 यात्री की क्षमता वाले डिब्बे में 300 से 400 लोग यात्रा करते है। यहाँ तक कि एमिनिटीज, मेंटेनेंस, सिक्युरिटी और चेकिंग स्टाफ़ भी अपना काम नही कर पाता।
यह कैसी हालात बना रख्खी है रेल प्रशासन ने भारतीय रेलोंकी? क्यों नही बन्द किए जाते प्रतिक्षासूची के टिकट? 700 – 800 प्रतिक्षासूची के टिकट जारी करने में कैसा लॉजिक है? रेल प्रशासन को इसका जवाब देना होगा।