इन दिनों, जब हर व्यक्ति को प्रशासन जी तोड़ आग्रह कर रहा है, घर पर रहे, सुरक्षित रहे, अपनी सामाजिक गतिविधियों को सीमित रखे। मगर हम भारतीय बहोत इम्पेशन्ट है, बेसब्रे, अधीर और बेताब है, हमे हर वो परिणाम चाहे वह हमारे हित मे भी है या नही जल्द चाहिए होता है।
कोविड 19 का संक्रमण फैल रहा है। हर वह देश जो इसकी गिरफ्त में है उसकी खबरे हम टीवी, इंटरनेट पर देख रहे है। इतने लोग संक्रमित हो गए, इतने लोग मारे गए। हमारे देश के आंकड़े इकाई से दुहाई और अब तिहाई में पोहोंच गए है। इस संक्रमण का कोई टिका या दवा दुनियाभर में किसी देश के पास नही है। ऐसी स्थिति में केवल इससे बचाव करने की संकल्पना सभी लोगोंने अपनायी है।
कितना आसान है अपने आप को इस संक्रमण से बचाना, बस अपने आप को घर मे ही रखना है, व्यक्तिगत जनसम्पर्क से दूर रहना है। आप के लिए टीवी चल रहा है, इंटरनेट चल रहा है, खबरें आप तक पोहोंच रही है, व्यक्तिगत सम्पर्क छोड़ दिया तो बाकी सब फोन पर बातचीत, वीडियो कॉलिंग, अपने सारे आर्थिक व्यवहार सब आप घर बैठे कर पा रहे हो। फिर क्या दिक्कत है, क्यो आतुर, अधीर और इम्पेशन्ट है हम लोग?
यह आज की, अभी की, इस आपदा की बात नही, हम भारतीय लोग हमेशा ही बेसब्रों की तरह ही व्यवहार करते है। कतार लगाना चाहे वह टिकट विन्डो हो, गाड़ी में चढ़ना हो, किसी काम के लिए रुकना हो हमें किसी भी जगह अपनी बारी आने का इंतज़ार करना मंजूर ही नही रहता। हर किसी को ऐसा लगता है की उसका समय बेहद कीमती है। जैसे उसे रुकना पड़ा तो उसका सारा संसार ही रुक जाएगा।
क्या आपने किसी देश मे भक्ति करने के लिए VIP एंट्री ऐसी परिभाषा या व्यवस्था कहीं देखी या सुनी है? हम अधिरोंके, बेसब्रोंके देश में है बड़ी बड़ी जगहोंपर ऐसी व्यवस्थाएं है। क्योंकी हम बेसब्र है, आतुर है। हम खड़ा रहना ही नही चहाते, इंतजार करना कतई मंजूर नही फिर चाहे वह इशभक्ति ही क्यों न हो।
इस बेसब्री को और भी नाम है, उत्सुकता, आतुरता। किसी भी परिणाम को पाने या जानने के लिए उत्सुक, आतुर, बेसब्र होना तब योग्य और अच्छा माना जाता है जब आपने उसके लिए योग्य प्रयत्न, परिश्रम किए हो। एफर्टलेस इम्पेशंट होना, बिना परिश्रम के, योग्य प्रयत्नोके अपने परिणाम जानने के लिए, फल प्राप्त करने के लिए आतुर होने को बेसब्रे होना कहांतक ठीक है?
इस बेसब्री में, अतिउत्साही पन में हम लोग बेपरवाह भी हो जाते है। व्यवस्थासे विद्रोह कर बैठते है। सामाजिक भावनाओं को असन्तुलित कर देते है। होड़ मचा कर क्या पा लेंगे? यह समझना चाहिए हर चीज को पूर्णत्व तक पहुंचने के लिए निर्धारित वक्त लगता है। धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय। संत कबीर की रचना है। वे कहते है, हर चीज का वक्त है, माली हर रोज पौधे मे पानी देता है, पर जब ऋतू आएगी तभी परिणाम मिलेंगे।
मित्रों, हर चीज के लिए वक्त होता है, जिसे हम रोजमर्रा में वेटिंग टाइम कहते है। तो परिणामप्राप्ति के लिए वेट कीजिए, सब्र कीजिए, अपना पेशन्स बढ़ाइए, और बेसब्री बढ़ ही रही है तो उसे योग्य दिशामे प्रयत्न करने के लिए बढ़ाइए। परिश्रम करने के लिए बढ़ाइए।
कहते है न, सब्र का फल मीठा होता है।