कल के ” अब वक्त आ गया है, रेलवे अपने यात्री व्यवस्थाओंमें क्रांन्तिकारी बदलाव लाए ” इस लेख को भरपूर प्रतिक्रियाए प्राप्त हुई। कुछ प्रशंसाभरी, कोई संदेह वाली तो कोई हमारे सुझाव को बिल्कुल ही तथ्योंसे दूर है ऐसावाली। हम सभी प्रतिक्रियाओंका सहर्ष स्वागत करते है। हर किसी को अपने अपने विचार रखने का भलीभाँति अधिकार है।
मित्रो, हम हमेशासे स्लिपर डिब्बों में अनाधिकृत यात्रिओंके होनेपर आपत्ति व्यक्त करते जा रहे है। अनाधिकृत यात्री में वह सभी शामिल है, जिनके पास उस डिब्बे का कन्फर्म आरक्षण नही है। प्रतिक्षासूची के PRS टिकटधारी यात्री इनमें प्रमुख है, छोटे दूरी की यात्रा करनेवाले द्वितीय श्रेणी के टिकटधारी यात्री, MST/QST पास धारक जिसमे रोजाना यात्रा करनेवाले विद्यार्थी, नौकरीपेशा कर्मचारी, छोटे व्यापारी आदि आते है। इसके अलावा ड्यूटी पास यात्री, सुविधा पास पर यात्रा करने वाले रेलवे स्टाफ़ यह सारे अनारक्षित यात्री रेलवे के एक अलगसे निर्मित श्रेणी याने स्लिपर क्लास में अनाधिकृत यात्री है।
हमने अपने लेख में कहा है, रेल्वेने PRS आरक्षण प्रणाली में वेटिंगलिस्ट टिकट देना बंद कर देना चाहिए इसकी वजह यही है की स्लिपर डिब्बों में यह लोग जिनके कन्फर्म टिकट रहते है, उनकी शायिकाओं पर जबरन यात्रा करते है और भयंकर बात तो यह है की रेलवे के रेकॉर्ड में इन लोगोंका टिकट रद्द हो चुका है। चूँकि गाड़ी छूटने के आधे घंटे पहले तक इनके नाम रेलवे के चार्ट्स में रहते है और तभी तक यह प्रतिक्षासूची के टिकट रद्द किए जा सकते है, और उसका रिफण्ड मिल पाता है उसके बाद इन टिकटोंकी कीमत शून्य हो जाती है। इसके बाद इन प्रतिक्षासूची के टिकटोंका क्या होता है यह शायद रेल प्रशासन को जानने की जरूरत नही। क्या रेलवे यह सोचती है, प्रतिक्षासूची के वह लोग जिन्होंने अपने टिकट रद्द कर रिफण्ड नही लिया है, उन्होंने रेल्वेज को अपना पैसा छोड़ दिया है? जिस टिकट का PNR सिस्टम में रद्द है, ऐसी अवस्थामे यह लोग किस तरह यात्रा करते है, स्लिपर में या सेकन्ड क्लास जनरल में और इन्हें बिगर टिकिट समझकर दण्डित क्यो नही किया जाता यह एक सबसे बड़े आश्चर्य की बात है।
दूसरा सबसे विवादास्पद मुद्दा रहा MST/QST पास धारकोंका, इनके लिए केवल सवारी गाड़ियाँ, मेमू, डेमू ट्रेन्स में ही प्रवेश हो, मेल/एक्सप्रेस गाड़ियोंमे इन पासधारकों को मनाई की जाए, जहाँ EMU लोकल सेवाए नही चलाई जाती है ऐसे क्षत्रोंमें 100km से ज्यादा अंतर की पास बन्द की जानी चाहिए, किसी एक व्यक्ति का दो पास जोड़कर लम्बा सफर करने पर उसे सिस्टम से बैन करने की कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए इसतरह के सुझावोंपर रोजाना अपडाउन करने वाले पास धारकोंकी कड़ी प्रतिक्रियाएं आयी है। इन लोगोंकी रेलवे प्रशासन से खासी नाराजगी है। सवारी गाड़ियोंकी कमी की वजहसे मेल एक्सप्रेस में यात्रा करना, या स्लिपर डिब्बों में प्रवेश कर यात्रा करना यह केवल इन पासधारकोंकी मजबूरी है। यदि सवारी गाड़ियाँ समयानुसार चले, उनकी फ्रीक्वेंसी यात्री भारमान के अनुसार हो तो वह क्यों कर सफर करेंगे मेल/एक्सप्रेस गाड़ियोंमे?
यह तो हो गयी इनकी दलील लेकिन एक साधारण हमेशा घटित वाकया आपको बताना जरूरी है। इसके बाद आप तय करे क्या सही और क्या गलत।
मेरे मित्र अपने परिवार के साथ बीते रविवार रातको पुणे से भुसावल आने के लिए रवाना हुए। उनके कोल्हापुर गोंदिया महाराष्ट्र एक्सप्रेस में वातानुकूलित 3 टियर में,1 से 3 तक तीन बर्थ आरक्षित थे। पुणे से मनमाड़ तक उनका सफर ठीक रहा, मनमाड़ से चालीसगांव तक डिब्बेमे सारी सीटें फूल होने के बाद भी उंन्हे कोई परेशानी नही थी। पर चालीसगांव में उनके वातानुकूलित डिब्बे में कई सारे यात्री चढ़ गए, AC कक्ष की हालात किसी द्वितीय श्रेणी के डिब्बे के जैसी हो गयी। ऐसे यात्री की जिन्हें देखकर साफ समझ आ रहा था की किसी सूरत में उनके पास AC 3 टियर का आरक्षित टिकट या यात्रा करने की अथॉरिटी नही होगी। कैबिन के बाहर, दरवाजोंके पास, शौचालय के रास्ते यात्रिओंसे भरे थे। AC कक्ष का कोई भी यात्री शौचालयों तक जाने में असमर्थ था। जब मेरे मित्र ने ऐसे भीड़भाड़ से टिकट परीक्षक को ढुढकर वहाँपर हाजिर किया तो उन्होंने अनाधिकृत यात्रिओंको केवल समझ दी, आरक्षित यात्रिओंको परेशान मत कीजिए और मेरे मित्र को समझा दिया की साहब, रोज का ही ट्रैफिक है, जलगांव में उतर जाएंगे।
जब वातानुकूलित कक्षोंके यह हाल है, तो स्लिपर डिब्बों के हाल क्या रहते होंगे, यह आप समझ सकते है। किसी जमाने मे यात्री अपनी प्राधान्यता लोअर बर्थ बुक कराने पर रखते थे लेकिन आजकल यह उल्टा हो गया है। सारे लोग अप्पर बर्थ की च्वाइस ले रहे है। इसका कारण यही है की लोअर बर्थ आपको स्थानिक यात्रिओंसे शेअर करनी ही होगी, नही तो व्यर्थ के झमेलों, झगडोंसे आपका पाला पड़ेगा।
हमारी पासधारकोंके साथ पूरी सहानुभूति है, पर आरक्षित यात्रिओंकी सुविधाओंका, सुरक्षा का क्या? क्या इस तरह की अनारक्षित और अनाधिकृत यात्रिओंकी भीड़ भारी व्यवस्थाओंमें क्या वह लोग सुरक्षित है?
हम फिरसे PRS काउंटर्स पर प्रतिक्षासूची वाले टिकट जारी किए जाने पर विरोध प्रकट करते है और उंन्हे जारी न करने की अपेक्षा रखते है। साथ ही हम यह भी जानना चाहते है, की प्रतिक्षासूची के कितने यात्री जो चार्ट बन जाने के बाद अपना टिकट रद्द करवाने के बजाए रेलवे में यात्रा करते है? उनपर किस तरह की कार्रवाई की जाती है?