आज सुबह महाराष्ट्र के औरंगाबाद – जालना शहरोंके बीच दक्षिण पूर्व रेलवे के नान्देड विभाग में रेल लाइन पर एक दुर्भाग्यपूर्ण हादसा हुवा। रेल की पटरी पर 16 जिन्दगी धराशायी हो गयी, इन सोलह लोगोंका काल बनी परभणी से मनमाड़ की ओर जानेवाली मालगाड़ी।
क्या कहना चाहिए इसे? रेल की पटरी, बसों ट्रकों से बहता रास्ता यह कोई सोने की, बैठने की जगह कतई नही है। रात भर चलते जा रहे श्रमिक मजदूर थक कर लेट गए पर कहाँ रेल की पटरी पर? कैसी नादानी, नासमझी कर बैठे? उन्हीं के जत्थे में से चार लोग रेल पटरी से दूर खेत मे जाकर सोए थे वह बच गए। बताइए वे लोग क्यों बच गए? वह चार लोग जिस जगह लेटे थे वहाँपर रेल गाड़ी नही जा सकती थी। जब यह लोग सुरक्षित स्थान पर जाकर सो सकते है तो बाकी लोग क्यों पटरी पर लेट गए?
लॉक डाउन के चलते रेलवे की आवाजाही हर मार्ग पर बहोत कम है, लेकिन शुरू है। किसी जीवित याने लाईव ऑपरेटिंग में रेल लाइन पर आवाजाही करना न सिर्फ खतरनाक है बल्कि कानूनन जुर्म भी है। यह लोग किस तरह की नासमझी के कारण इस भयावह दुर्घटना के शिकार हुए है यह समझना अब नामुमकिन है, क्योंकी वह सारे जिंदगी से हात धो बैठे है।
ऐसे हादसों मे दुर्घटना की जाँच की जाती है। रेल गाड़ी किस गति से आ रही थी, दृष्यमानता कितनी थी, लोको पायलट ने हॉर्न बजाया था या नही, गाड़ी रोकने की कोशिशें किस तरह की गई, इमरजेंसी ब्रेकिंग में क्या रेल गाड़ी भी हादसे की शिकार हो सकती थी? इत्यादि कई सारे सवाल और लम्बी तहकीकात। लेकिन इस बीच दुर्घटनाग्रस्त पीडितोंकी लापरवाही, नासमझी, गैरजिम्मेदाराना हरकत को कोई शायद ही नकार पाएगा। ज़िन्दगियाँ जब मौतों में बदल जाए तो दुर्घटना में किसका दोष था यह ढूंढना बेमानी हो जाता है।

