पूरे देश भर से श्रमिकोंके लिए ओंके गांव तक गाड़ियाँ चलाई जा रही है। पश्चिम बंगाल के भी कई सारे श्रमिक, बंगाली कारीगर जो शहरोंमें सोने पर कारीगरी का काम करते है, लॉक डाउन के चलते हलकान हो रहे है। जादा तर इन कारीगरोंका काम परसेंटेज शेयरिंग पर होता है। मासिक वेतन या बंधा बंधाया रोजगार नही और इसी वजह से काम बंद होते ही इन बेचारोंके खाने के भी लाले पड़ गए है। 2 महिनेसे इनके व्यापारी और व्यवसायोंसे जुड़े लोग इनकी भोजन और जीवनावश्यक जरूरतें पूरी करने का भरकस प्रयत्न कर रहे है, लेकिन महाराष्ट्र में लॉक डाउन 31 मई तक बढ़ाए जाने की ख़बरोंको सुन कर यह लोग अब अपना धैर्य खोते जा रहे। बार बार मदद ले कर कारीगरोंको अपने आत्मसन्मान पर चोट सी महसूस होती है। जहाँ प्रशासन आत्मनिर्भरता बढ़ाए जाने पर बल दे रही है, वहां यह लोग और इनका काम पूर्णतया मंदी की कगार पर है।
इन सब कारीगरों, इन के व्यापारी और व्यवसायी की ओर से पश्चिम बंगाल सरकार से प्रार्थना है, की इनकी भी सुनवाई करे और इनको इनका गांव नसीब हो।
रेल प्रशासन की ओरसे पश्चिम बंगाल के लिए श्रमिक गाड़ियोंका सारा कार्यक्रम तय है। राज्य प्रशासन का आपस मे समन्वय हो जाए तो यह गाड़ियाँ अपने तय प्रोग्राम पर चलना शुरू हो जाएगी।


