आप का कभी डाइवर्ट हुई ट्रेन से यात्रा करने का पाला पड़ा है? मतलब आप रेल यात्रा में हो और गाड़ी अपने नियोजित मार्ग को छोड़ कर किसी अन्य मार्ग से आपको निर्धारित गन्तव्य पर पोहोचाए? भाइयों, कुछ समझ आया? बीतें दिनोंमें कुछ श्रमिक स्पेशल गाड़ियाँ अपनी राह से भटक गई ऐसी खबरें अखबारों में बहोत ट्रेंड कर रही थी। ट्रेन डाईवर्ट होती है यानी अक्चुली क्या होता है और उसमे के यात्री कैसे बेहाल होते है, चलो आज सच्ची हक़ीकत के साथ समझाते है।
हुवां यूँ की एक बार हम इलाहाबाद, जी अब प्रयागराज से 12166 वाराणसी लोकमान्य तिलक टर्मिनस रत्नागिरी एक्सप्रेस से आ रहे थे। अब इस गाड़ी को रत्नागिरी एक्सप्रेस क्यों नाम दिया गया है, यह हमें आज तक समझ नही आया। रत्नागिरी स्टेशन कोंकण रेलवे के पनवेल – मडगांव खण्ड पर आता है और इस गाड़ी का उस रत्नागिरी स्टेशन से कोई ताल्लुक नही पड़ता। खैर, फिरसे किस्से पर आते है, तो हम रात करीबन 11 बजे रत्नागिरी एक्सप्रेस से प्रयागराज से निकले और आरक्षण S -1 में था, यह स्लिपर डिब्बा विशेष बनावट का 2 पार्सल कम्पार्टमेंट और 24 बर्थ का स्लिपर कम्पार्टमेंट, गार्ड कम्पार्टमेंट ऐसा था और गाड़ी की संरचना में इंजिन से लग के याने इंजिन के तुरंत बाद की पहली पोजिशन में था। अब इस अवस्था मे तकलीफ यह थी की यह डिब्बा पूरी ट्रेन से अलग थलग हो गया था जैसे बाकी सभी डिब्बे वेस्टिब्यूल होने की वजह से एक दूसरे में आने जाने हेतु जुड़े रहते है।
गाड़ी समयपर चल रही थी, और करीबन सुबह 8:30 पर इटारसी स्टेशनपर पहुंची। इटारसी में डीजल लोंको निकल कर इलेक्ट्रिक लोंको लगाया गया, चूँकि आगे इटारसी – भुसावल होते हुए मुम्बई तक विद्युतीकरण से गाड़ियाँ चलती थी। लोंको बदलने की वजह से, जबलपुर की ओर आने, जाने वाली सभी गाड़ियों का इंजिन बदला जाता और गाड़ी बड़ी आरामसे 15 – 20 मिनट खड़ी रहती थी।
मैं भी बड़े आरामसे प्लेटफार्म पर खड़ा था, इटारसी से ट्रेन खुलने के बाद नेक्स्ट स्टापेज सीधा भुसावल ही था। बस 4 घंटे की यात्रा बाकी थी। अचानक मेरा ख्याल लोको पायलट के बक्से चढ़ाने पर गया। बक्से पर नागपुर लोको पायलट ऐसा लिखा था। गाड़ी भुसावल जा रही है और लोको पायलट नागपुर का? गाड़ी को भी प्लेटफार्म पर आकर करीब करीब 45 मिनट हो गए थे। मुझे कुछ गड़बड़ मालूम हुई। तभी वहाँसे लोको पायलट के लिए कंट्रोल विभागसे “कॉशन आर्डर ” का पर्चा भेजा जाता है वह लेकर जानेवाला बन्दा दिखा, मैंने उससे युंही पूछ लिया, ” भाई, गाड़ी कब निकलेगी”? उसने बोला, बस, पाँच मिनट साब। पानी, नाश्ता भर लीजिए, गाड़ी नागपुर होकर जाएगी, आगे खण्डवा सेक्शन मे डिरेलमेंट हुवा है और आपकी ट्रेन पहली है जो वाया नागपुर डाइवर्ट की जा रही है।
जो एक अंदेशा मुझे लग रहा था, वही होने जा रहा था। मैंने फटाफट प्लेटफार्म पर दौड़ लगाई। नाश्ते के स्टॉल पर काफी भीड़ थी, शायद अनाउंसमेंट हो चुका था की गाड़ी निर्धारित मार्ग के बजाय घूम कर जाएगी। मैने जल्दी से एक ब्रेड की पैकिट, जैम और नमकीन ली और अपने डिब्बे में आकर बैठ गया। मेरे सहयात्री जो एक जैन तीर्थयात्रियों का ग्रुप था, मैने उन्हें आने वाली परेशानियों से, गाड़ी नागपुर होकर जाने वाली बात से अवगत करा दिया और आग्रह किया की वे भी कुछ खानपान का बंदोबस्त कर ले। लेकिन शायद उनकी कुछ धार्मिक उलझने थी या वे बात को गम्भीरता से नही ले रहे थे, उन्होंने स्टेशन से खाना नही लिया, और गाड़ी अपने नियोजित मार्ग को छोड़ अलग मार्ग से निकल पड़ी।
अब यहाँपर हम आपको गाड़ी को तुरन्त दूसरे मार्गसे निकालने का गणित समझाते है। इटारसी – भुसावल यह मेन लाइन है, और इटारसी ऐसा जंक्शन है जिसमे चारों तरफ की गाड़ियाँ आती जाती है। नागपुर, भोपाल, भुसावल और जबलपुर तरफ से गाड़ियोंका तांता लगा रहता है। गिनेचूने प्लेटफॉर्म्स के चलते गाड़ियोंको ज्यादा देर तक प्लेटफार्म पर नही रोका जा सकता है, उस वजह से पीछे की और भी गाड़ियों के समय पर असर पड़ता है, वह भी देरीसे चलने लगती है। नई दिल्ली – चेन्नई ग्रैंट ट्रंक रुट की गाड़ियाँ जिसपर कोई अवरोध नही था वह भी पीटना चालू हो जाती। तो ट्रैफिक क्लियर रखना बेहद जरूरी हो जाता है। ऐसे में सेकन्ड रूट ही नेक्स्ट बेस्ट ऑप्शन रहता है। यही सॉल्यूशन हमारी गाड़ी के लिए अपनाया गया।
चूँकि गाड़ी अपने रूट से अलग, परावर्तित मार्ग पर थी जिस पर उसका कोई भी निर्धारित स्टॉपेज रहने का सवाल ही नही था। इसका मतलब गाड़ी सिर्फ टेक्निकल हॉल्ट के लिए सीधे नागपुर ही रुकना था। कमसे कम 4-5 घंटे गाड़ी नॉनस्टॉप चलने वाली थी। करीबन दोपहर के 12 बजे मेरे सहयात्रियोंमे कुछ कसमसाहट होने लगी। उनके पास सूखा नाश्ता पोहा, मुरमुरा था जिससे उनका पेट नही भर सकता था। उनमें से एक जन मेरे पास आ कर बैठा और इटारसी में खाना न लेने के लिए पछतावा करने लगा। मैं उनकी हालत समझ सकता था, उनकी मजबूरी थी। उन्हें बुरा न लगे इसीलिए मैंने उनसे कहा, यह ब्रेड का पैकेट मेरे पास एक्स्ट्रा ही है, अभी नागपुर 3 बजे तक आएगा वहीं आपको खाना मिल पाएगा। यह ब्रेड, जैम आप लीजिए, मेरा खाना इटारसी में हो गया था और नागपुर में थाली ले लेंगे। यकीन मानिए, खरीदने के लिए पैसे हो कर भी खाने का बंदोबस्त न हो सके इससे बड़ी परेशानी क्या हो सकती है?
करीबन दोपहर के ढाई तीन बजे नागपुर स्टेशन आया। गाड़ी के तमाम यात्री खाना बेचने वालोंपे टूट पड़े। लगभग हर यात्री खाने की चीज खरीदने की होड़ में था। मैंने नागपुर में डेयरी स्टॉल से दही और टोस्ट का पैकेट लिया। मेरे सहयात्रियों को यहाँपर खाने की थाली मिल गयी थी। डैवर्टेड गाड़ियोंके यात्रिओंके खानेपीने के बहोत हाल हो जाते है। दूसरी समस्या आगे गाड़ी रिशेड्यूल होने की रहती है। जैसे कई लोगोंको भुसावल उतर कर सूरत के लिए दूसरी गाड़ी पकड़नी थी जो उनकी मिस हो गयी। हमारी गाड़ी समयसे आठ घंटे लेट भुसावल को पहुंची। आगे जानेवालोंके रिजर्वेशन भी गए और गाड़ी भी।
ऐसी हालात में यात्री ने क्या करना चाहिए, तो हमारी सलाह है संयम बरते। आपात स्थितियोंके लिए आप किसी को जिम्मेदार नही मान सकते। आज के दिनोंमें सम्पर्क और सूचना के लिए बेहतर साधन उपलब्ध है। लगभग हर किसी के पास स्मार्टफोन है। यात्री परिस्थितियों को अच्छी तरह से समझ सकते है। गाड़ी कहाँ, किस मार्ग से चल रही है, कौनसे स्टेशन कब पोहोचेगी सब आसानी से समझ आ जाता है। ऑनलाईन खाने की व्यवस्था हो जाती है। यातायात के पर्यायी साधन या व्यवस्था की जा सकती है। यदि आपको कुछ दूसरा पर्याय उपलब्ध हो तो आप रेलवे से रिफण्ड भी ले कर अपनी यात्रा छोड़ सकते है। बस शान्ति और संयम रखकर सोच समझ कर फैसला करे। लेकिन यह बात भी उतनी निश्चित है, की रेल प्रशासन अपने यात्रिओंको चाहे कितने ही अलग मार्गोंसे क्यों न जाना पड़े, सम्भवतः गन्तव्य तक अवश्य ही छोड़ने का प्रयास करती है। अन्जानी जगह हो तो सबसे सुरक्षित पर्याय यही है, की आप अपनी गाड़ी में ही बैठे रहे। देरी से ही सही, अन्य मार्ग से ही सही गाड़ी में आप सुरक्षित है और अपने गन्तव्य स्टेशन तक जरूर पोहोंचेंगे।

यकीन मानिए रोड़ ट्रांसपोर्ट के जैसा
रेलोंमें नही होता। सौजन्य : इन्टरनेट