देशभर में भारतीय रेल के कुल 18 झोन याने क्षेत्र बनाए गए है। इन सभी 18 क्षेत्रीय रेल्वेज में लगभग 508 सवारी गाड़ियाँ, डेमू और मेमू ट्रेन्स चलाई जाती है।
लॉक डाउन में 22 मार्च से 31 मई तक भारतीय रेलवे की सारी यात्री गाड़ियाँ यहाँतक की उपनगरीय और मेट्रो गाड़ियाँ भी बन्द कर दी गयी थी। ऐसे तो रेलवे दिनभर में 11,000 गाड़ियाँ रोजाना चलाती है पर केवल आज 1 जून से शुरू की गई 30 राजधानी गाड़ियाँ और 200 मेल एक्सप्रेस गाड़ियाँ चल रही है। कई हजारों टिकट रद्द किए गए, यात्रिओंके पैसे लौटाए जा रहे है। इन दिनों में रेलवे के राजस्व का काफी बड़ा नुकसान हुवा है।
अब जब देश को संक्रमण के लिए किए गए लॉक डाउन की स्थितियोंमे से हुए आर्थिक हानी से उबारने के लिए अनलॉक करना शुरू हुवा है। देश अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए राजस्व कहाँ कहाँ से जोड़ा जा सकता है इसकी बारीकी से समीक्षा कर रहा है। पेट्रोलियम पर कर बढ़ाए जाना यह इसी प्रक्रीया का हीस्सा है। रेल प्रशासन ने सभी क्षेत्रीय रेलवे की 200 किलोमीटर से ज्यादा परिचालन करनेवाली, उनके क्षेत्र की करीबन 508 सवारी गाड़ियोंकी एक्सप्रेस में बदले जाने के लिए समीक्षा करने का आदेश दिया है।
हम यहाँपर कौनसी सवारी गाड़ी एक्सप्रेस में कन्वर्ट हो जाएगी यह तो नही कह सकते क्योंकि समीक्षा और निर्णय में कुछ अवधि लगेगा बादमे उसे लागू करने की प्रक्रिया शुरू होगी। लेकिन तब तक इससे आम यात्री के नफे नुकसान की चर्चा करते है।
सवारी गाड़ियोंको एक्सप्रेस किए जाने का सबसे बड़ा फायदा उनका समयपर चलना यह रहेगा। सवारी गाड़ियोंके समय काफी ढीले ढीले से होते है। मेल, एक्सप्रेस और सुपर गाड़ियोंका समयपालन करने के चक्कर मे अक्सर सवारी गाड़ियोंके समयपर पहुंचाने की घनघोर उपेक्षाएं होती है। गन्तव्य से पहले के एखाद दूसरे स्टेशनपर या किसी बड़े जंक्शन पर पहुंचने से पहले इन गाड़ियोंकी अहमियत तो छोड़िए अस्तित्व तक की दखल न के बराबर होती है। इंटरसिटी एक्सप्रेस किए जाने पर समयपालन सुनिश्चित होगा।
परिचालन में तेजी आने से नई गाड़ियोंके स्लॉट्स खाली होंगे और सेक्शनपर ज्यादा गाड़ियाँ चल पाएगी।
सवारी गाड़ियोंमे बहुतांश द्वितीय श्रेणी के ही डिब्बे लगे होते है, एक्सप्रेस किए जाने पर सेकन्ड सिटिंग याने 2S, स्लिपर SL और वातानुकूलित श्रेणी के डिब्बे बढ़ाए जाएंगे। यात्री अपनी यात्रा आरक्षित डिब्बों में कर पाएंगे।
चूँकि सवारी गाड़ियोंमे सभी डिब्बे साधारण श्रेणी के होने से इन गाड़ियोंसे किराए के स्वरूप में मिलनेवाला राजस्व नगण्य ही रहता है। एक्सप्रेस किए जाने से यात्रिओंकी एडवान्स बुकिंग विभिन्न श्रेणियों में कई जा सकेगी और राजस्व में वृद्धि होगी।
अब सवारी गाड़ियाँ एक्सप्रेस किए जाने से आम यात्री का क्या नुकसान होने जा रहा है, यह भी देख लेते है।
सबसे बड़ा झटका आर्थिक स्वरूप में होगा। इन गाड़ियोंमे यात्रा करनेवाले यात्री अक्सर गांव के किसान, दिहाड़ी मजदूर वर्ग के होते है। जिस यात्रा को वह 10₹ में कर रहे थे उन्हें उसके लिए 30-40₹ याने 3 से 4 गुना ज्यादा किराया चुकाना पड़ेगा।
एक्सप्रेस किए जाने से सवारी गाड़ियोंके छोटे स्टेशनोंके स्टापेजेस भी स्किप किए जा सकते है, याने वहां के लिए रेल गाड़ी की उपलब्धता कम या नही रह जाएगी।
हम यह नही कहते कि प्रशासन अपना रेव्हेन्यु बढाने का प्रयास न करे लेकिन सिर्फ आर्थिक रूपसे कमजोर वर्ग पर इसकी मार पड़ना कतई ठीक नही होगा। इस का हल है कि कन्वर्ट करना ही है तो ज्यादा से ज्यादा ओवरनाइट सवारी गाड़ियोंको ही एक्सप्रेस में बदला जाए और दिन में चलने वाली सवारी गाड़ियोंको उपनगरीय गाड़ियोंके भाँति कम किराए वाली सवारी गाड़ी ही रहने दे।
चूँकि जिन क्षेत्रोंमें यह गाड़ियाँ कन्वर्ट की जा रही है उन क्षेत्रोंमें कोई उपनगरीय या मेट्रो गाड़ियाँ उपलब्ध नही है अतः प्रशासन को चाहिए कि कमसे कम एक सुबह और एक शाम में सवारी गाड़ी सेक्शन में चले इसकी सुनिश्चितता रखी जाए।