आप भारतीय संयुक्त परिवार से है तो कमाऊं पूत इस शब्द की परिभाषा से भलीभाँति परिचित होंगे। किसी परिवार में एक से ज्यादा बेटे होते है, उनमेसे एक बेटा धन कमाने में अव्वल होता है जो भर भर के कमाई घर लाता है तो उसकी पूरे परिवार में पूछपरख बड़े अच्छे तरीके से होती है। उसे कमाऊ पूत कहते है।
अब आप सोच रहे होंगे हमारे रेल्वेवाले ब्लॉग में यह कौनसी सामाजिक कहानी शुरू हो गयी? भाईसाहब, यह किसी कहानी का हिस्सा नही, तमाम दुनिया का किस्सा है, हक़ीकत है। जो कमाता है, उसीका रौब चलता है। भारतीय रेलवे ने जब निजी गाड़ियाँ चलाने की बात कर ही दी है, तो आपको बताते है की कैसे यह गाड़ियाँ कमाऊ पूत बनने वाली है और कैसे बाकी रेग्युलर गाड़ियोंसे इनकी प्रायॉरिटी, तवज्जों ज्यादा रहने वाली है।
इससे पहले की हम इनके कमाई की बाजु देखे, इनको पटरी पर आने से पहले ही रेलवे को क्या क्या देना है, इनको पटरी पर उतारने के पीछे रेल प्रशासन की मंशा क्या है, यह देखते है।
भारतीय रेलवे के 68000 किलोमीटर मार्ग पर वर्ष 2018-19 में करीबन 9 करोड़ प्रतीक्षा सूची वाले यात्री अपनी यात्रा नही कर पाए और उन्हें अपनी टिकट रद्द करनी पड़ी। गाड़ियोंमे जगह की कमी के चलते यह सब हुवा। कई सारे यात्रिओंको हवाई सफर या रोडवेज से यात्रा करनी पड़ी। हालाँकि इसके और भी कारण हो सकते है, लेकिन रेल प्रशासन ऐसा सोचती है, यदि उनके पास अधिक गति, ज्यादा आरामदायक और सूटेबल टाइमिंग्ज वाली गाड़ियाँ रहती तो यात्रिओंकी पहली पसंद रेलवे ही रहती। यह सब हक़ीकत में लाने के लिए रेलवे खुद इतना धन अपने व्यवस्था में डाले इससे बेहतर है की निजी क्षेत्र को लीज पर अपनी व्यवस्था के साथ तुरंत ही गाड़ियाँ शुरू करवा दे।
रेल प्रशासन के पास जो मार्ग याने पटरियां उपलब्ध है वह तो पहले से ही अपनी ट्रैफिक क्षमता से सवा और डेढ़ गुना काम कर रही है। लेकिन DFC के कॉरिडोर वर्ष 2021 से उपलब्ध होनेवाले है और उसीको मद्देनजर रखते हुए रेल्वेज ने यह कदम उठाने की सोची है। उन्नत इंफ्रास्ट्रक्चर का फायदा इस तरीकेसे लिया जा सकता है।
अब निजी ट्रेनोके ऑपरेटर यात्रिओंको किस तरह चार्ज कर सकते है और रेल प्रशासन किन चिजोंमे अपना हिस्सा ले सकेगी यह देखते है। 1) यात्री टिकट पर छपा किराया, 2) यात्री को पसंदीदा सीट के लिए अतिरिक्त प्रीमियम, यात्री का अतिरिक्त लगेज, पार्सल का लदान 3) अतिरिक्त सेवाएं जैसे खानपान, बेडिंग या वाईफ़ाई से इंटरनेट सुविधा 4) विज्ञापन, ब्रांडिंग या नामकरण सुविधा इसके बाद स्टेशन के इस्तेमाल किए जाने के शुल्क, और लगाए जाने वाले राजस्व भी हिसाब में शामिल रहेंगे।
इन निजी ट्रेन संचालन के लिए करीबन 100 से ज्यादा स्टेशन्स निर्धारित किए गए है और उन्हें 12 क्लस्टर और हर क्लस्टर में करीबन 12 जोड़ी गाड़ियाँ में विभाजित किया गया है। ऑपरेटर को चाहिए कि वह हर एक क्लस्टर के लिए अलग से अर्जी दाखिल करे। रेल प्रशासन निजी ऑपरेटर को यह सहूलियत देगी की उसके दिए गए समय के 60 मिनिट के दायरे में अपनी उन्ही स्टेशनोंके बीच चलनेवाली कोई ट्रेन नही चलाएगी।
निजी ऑपरेटर को चाहिए कि उसकी ट्रेन उन स्टेशनोंके बीच चलाई जाने वाली सबसे तेज ट्रेन हो। निजी ट्रेन में कमसे कम 16 डिब्बे होना जरूरी होगा और ज्यादा से ज्यादा उस मार्ग पर चलने वाली रेल प्रशासन की ट्रेनों जितने डिब्बे वह जोड़ सकता है। निजी संचालक अपनी गाड़ियोंकी देखभाल खुद करेगा जिसके लिए सारे टेक्नीशियन भी उसीके रहेंगे। इसके लिए लगने वाली जगह, मेंटेनेंस एरिया या डिपो रेल प्रशासन उपलब्ध कराएगा।
निजी गाड़ियोंके क्रू याने लोको पायलट और गार्ड रेलवे के कर्मचारी ही रहेंगे। यदि निजी संचालकोंको अपनी गाड़ी ऑपरेट करवाने के लिए इनको अलगसे ट्रेनिंग देनी पड़े तो उसकी व्यवस्था भी करनी होगी। निजी गाड़ियोंके चल स्टॉक भारतीय रेलवे के सुरक्षा मानकोंके अनुसार ही रहना चाहिए।
निजी संचालकोंके साथ रेल प्रशासन का करार जारी होने की तारीख से 35 वर्ष का रहेगा।
निजी गाड़ियोंको चलाने की गति अधिकतम 160 किलोमीटर प्रति घंटे निर्धारित की गई है।
निजी संचालकोंको अपनी गाड़ियोंका किराया तय करने की सहूलियत दी जाती है।
निजी संचालकोंको रेल प्रशासन के हाउलेज चार्ज याने ढुलाई खर्च और एनर्जी यूज चार्जेस अलग से देना होगा।
निजी संचालक यदि किसी सेवा देने में चूक करता है तो जुर्माने के लिए बाध्य रहेगा यह बात रेल प्रशासन के लिए भी निजी संचालक के हित मे लागू रहेगी।
निजी संचालक अपनी टिकट बुकिंग के लिए रेल्वेज की विद्यमान आरक्षण बुकिंग प्रणाली का उपयोग करेगा।
निजी संचालक अपना चल स्टॉक याने लोको इंजिन और डिब्बे अपनी पसंद के अनुसार जहाँ से चाहे ला सकता है, बशर्ते वह भारतीय रेल के शर्तो और मानकों के अनुसार हो।
आशा है, आप भारतीय रेल पर निजी कम्पनियोंको अपनी गाड़ियाँ चलाने देने का उद्देश्य और मंशा समझ चुके होंगे। DFC कॉरिडोर उपलब्ध होने के बाद रेलवे के पास अतिरिक्त मार्ग हाजिर रहेगा जिस पर तीव्र गतिसे गाड़ियाँ चलाई जा सकती है। निजी कम्पनियोंको लीज पर गाड़ियाँ चलाने का अवसर देकर भारतीय रेल अपने स्टाफ़ को भी आंतरराष्ट्रीय दर्जे पर ले जाना चाहती है। विदेशी चल स्टॉक यहाँपर न सिर्फ ऑपरेट करेगी बल्कि उनका मेटेनन्स भी यहीं करेगी उससे रोजगार का और उन्नत तकनीक का सृजन होगा।
यात्रिओंको इंटरनेशनल क्वालिटी की बेहतर सेवा और तेज गति के रेल गाड़ियों से परिचय होगा। इससे भविष्य में भारतीय रेल और उनके यात्रिओंको फायदा ही होगा हाँ यात्रा करने के लिए प्रीमियम किराया चुकाने की तैयारी भी करनी होगी।
रही बात रेग्युलर गाड़ियोंकी तो यात्रिओंको इसमें जो गाड़ियाँ कम होने का डर लग रहा है वह वाजिब है। यह झीरो बेस टाइमटेबलिंग, पैसेंजर गाड़ियोंको एक्सप्रेस बनाना या जोन की कई गाड़ियोंका रद्द किया जाना यह निजी गाड़ियोंके लिए जगह बनाने की कवायद चल रही है। लेकिन हमें यह लगता है, यह सारे शुरवाती झटके है। जब यह सारी निजी गाडियाँ पटरी पर दौड़ना शुरू हो जाएगी, जरूरतोंके हिसाब से रेग्युलर गाड़ियाँ भी बढ़ेगी। निजी गाड़ियोंके यात्री प्रीमियम सेवाओंको प्राधान्य देने वाले रहेंगे और आम यात्रिओंको भी एक अतिरिक्त व्यवस्था चुनने के लिए उपलब्ध रहेगी। अपनी जरूरत के हिसाब से वह इन गाड़ियोंको यात्रा के लिए चुन सकता है। जब तीसरी और चौथी पटरियां काम करने लग जाएगी तो छोटे छोटे अन्तर के लिए इंटरसिटी गाड़ियाँ चलाई जा सकती है।