निम्नलिखित 7 जोड़ी गाड़ियाँ गत 29 जून से 15 जुलाई तक रद्द की गई थी, जिन्हें अब आगे और 31 जुलाई तक रद्द किया जा रहा है।
इस तरह राज्योंसे गाड़ियाँ रद्द की जा रही है, तब 230 गाड़ियोंसे आगे और गाड़ियाँ चलनेपर एक सांवलिया निशान लग जाता है। बंगाल राज्य ने अपनी गाड़ियोंकी फ्रीक्वेंसी रोजाना से घटाकर साप्ताहिक करवा दी है तो झारखंड राज्य ने कई गाड़ियोंको अपने राज्य में आने से प्रतिबंधित कर दिया है। कर्नाटक, तामिलनाडु और ओडिशा राज्योंने अपने राज्य अंतर्गत चलनेवाली सारी गाड़ियाँ रद्द कर रखी है।
महाराष्ट्र राज्य ने गाड़ियोंके चलनेपर तो प्रतिबन्ध नही लगाया मगर राज्यान्तर्गत किसी यात्री को टिकट नही देने की व्यवस्था करवा दी, इससे राज्य में किसी एक शहर से दूसरे शहर जाने में यात्री को कई पापड़ बेलने पड़ते है। अपने शहर से जो सबसे पास का और पड़ोस के राज्य में पड़ने वाले स्टेशनसे यात्री अपनी रेल यात्रा को अन्जाम दे रहा है। जलगाँव जिले के लोग धड़ल्ले से मध्यप्रदेश के बुरहानपुर स्टेशन से जाना आना कर रहे है।
हमारा यह कहना है बन्धन जो भी हो नैतिकताओं के आधार पर ही खरे उतरते है। सरकारें लाख नियम बना ले, उसकी तोड़ निकालने वाले निकालकर कानून को मरोड़ ही देते है। जब जलगाँव, भुसावल के यात्री या महाराष्ट्र राज्य के कोई भी यात्री पड़ोस के राज्य से आना जाना कर सकते है, उतरनेवाले यात्री गाड़ी स्टेशन के बाहर खड़ी होनेपर आउटर एरिया में उतर जाते है और यह बात रेल, राज्य प्रशासन से छुपी भी नही है तो क्यों न राज्यान्तर्गत रेल यात्रा को अनुमति दी जाए? कम से कम जरूरतमंद यात्री उल्टी सीधी यात्रा की सर्कस करने से तो बच जाएंगे।
