“झुक झुक गाड़ी” कुछ याद आया? अरे भाई, बचपन मे हम लोग रेल गाड़ी को यही तो बोलते थे। आजकल हमारे नाती-पोते हमसे पूछते है, आप रेल्वेज को झुक झुक गाड़ी क्यों बोलते थे? तब उनको हम लोग भाँप से चलने वाले इंजिनोंकी गाड़ियोंके चित्र या पुराने व्हिडियो दिखाते है और स्टीम लोको की झुक झुक आवाज, उसकी कुsssक बजने वाली सिटी की आवाज मुँह से निकालकर समझाते है। बहुतें स्टीम इंजिन रेलवे के बड़े दफ़्तरोंकी शोभा बढाने उनके कार्यालयोंके, या स्टेशनोंके बाहर सजाए रखे है। कभी कभार कोई जोनल रेलवे अपने क्षेत्र में भाँप वाले इंजिन हैरिटेज रन में चलाते है।
जो हाल भाँप के इंजिनोंका हुवा क्या डीजल लोको भी हैरिटेज श्रेणी में चला जाएगा? परिस्थतियाँ तेजी से बदल रही है। रेल मंत्रालय ने रेलवे बोर्ड को हिदायत दी है, वर्ष 2022 तक रेलवे की पटरी से डीजल लोको हटाए जाने है। भारतीय रेलवे में सभी रेल मार्ग पर विद्युतीकरण का काम जोरशोर से चल रहा है। यहाँतक की पुराने इलेक्ट्रिक लोको भी अपग्रेड, उन्नत किए जाएंगे। सभी इलेक्ट्रिक लोको 10 से 12 हजार हॉर्सपावर क्षमता के होने चाहिए ऐसा लक्ष्य निर्धारित किया जा रहा है। ऐसा होनेपर ही मालगाड़ियाँ 100-120 और यात्री गाड़ियाँ 160-200 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल पाएगी।
शुरू में DLW वाराणसी जहाँ पर यह डीजल के लोको का निर्माण होता है, उन्हे इलेक्ट्रिक लोको में परावर्तित करने की व्यवस्था की गई थी, काम भी शुरू हो गया था पर जो खर्च कन्वर्शन में लग रहा है, उससे तो नए इलेक्ट्रिक लोको निर्माण करना ज्यादा फायदेमंद नजर आ रहा है। अब परेशानी यह है की आज की तारीख में भारतीय रेलवे के बेड़े में करीबन 5500 डीजल इंजिन कार्यरत है और इनको निवृत्त किए जाने की अवस्था भी दूर दूर तक नही है। वहीं करीबन 7000 इलेक्ट्रिक लोको है और हर वर्ष नए 700 लोको बनाए जा रहे है।


ऐसी अवस्थामें इन डीजल लोको का क्या किया जाए यह पेच भारतीय रेल के सामने पड़ा है। अब इन्हें बेचे, भंगार में डाल दे, या किसी दूसरे देश को निर्यात करे, बड़ा संकट है। हाल ही में 10 डीजल लोको बांग्ला देश की रेलवे को भेजे गए। और तो और 4500 हजार नए डीजल इंजिन मेक इन इंडिया की योजना के तहत बिहार में जनरल इलेक्ट्रिक कम्पनी के अनुबंध में बनाए जा रहे, जो कुछ ही वर्षोंमें भारतीय रेलवे के गले पड़ने वाले है। हाल यह है, की विदेशोंमें भी रेलवे की ब्रॉड गेज लाइनें काफी सीमित है। याने अपने ही खप नही रहे और नया माल बनकर आ रहा है।
जब इलेक्ट्रिक इंजिन के फ़ायदोंको देखते है तो इन डीजल इंजिनोंका रखरखाव करना भी चुभता है। पूरे देशभर में 42 से ज्यादा डीजल लोको शेड्स बने हुए है। कुल मिलाकर परिस्थितियां बिकट होती जानेवाली है।