कुछ आपदाएं, आपत्तियाँ बेहद दुखदायी, वेदनामयी होती है। दुनियाभर आयी महामारी ने हजारों, लाखों जानें भक्ष्य ली, कइयोंको बेरोजगार कर दिया। लोगोंके कामकाज छीन गए, रोजीरोटी से वंचित हो गए। लेकिन इसके बाद भी जीवन कहीं रुकता है भला? कोई एक मार्ग पर अवरोध आए तो जल अपनी धार के लिए दूसरी ढलान ढूंढ ही लेता है।
आज इस महामारी की आपत्ती मे लोग अपने व्यवसायोंको, व्यापार को, रोजगार को नए रूप देकर आगे बढ़ाने का प्रयत्न कर रहे है। रोजगारोंके अवसर बदल रहे है, संस्थान, प्रतिष्ठान बदल रहे है।
रेलवे ने भी इस विपदाओं में अपने कई ऐसे काम निपटाए है, जिसे करना रेलगाड़ियोंकी व्यस्तता के कारण आसान नही होता। पटरियोंके रखरखाव, ट्रैकोंके डबलिंग, विद्युतीकरण, ऊपरी पैदल पुल, रेल अंडर ब्रिज, रेल ओवर ब्रिज हो सके उतने काम निपटाए जा रहे है। सबसे महत्वपूर्ण काम है 150 -160 वर्ष पुराने टाइमटेबल की पुनर्रचना करना। जब सारी गाड़ियाँ बन्द है, खास करके यात्री गाड़ियाँ तब इससे अच्छा अवसर क्या हो सकता है, ज़ीरो बेस टाइमटेबल बनाने का। आज तक कोई भी नई गाड़ी शुरू करने की बारी आती तो टाइम स्लॉट्स ढूंढे जाते थे और खाली जगह में गाड़ी को ठूँस दिया जाता था, फिर उस वजह से किसी गाड़ी को कही रोकना, तो कहीं मोड़ना तो कही तोड़ना भी पड़ता था। इस पुनर्रचना में सभी गाड़ियाँ खुल कर साँस, मतलब अपने वजूद के हिसाब से चलाई जाएगी। फालतू मे घंटो किसी सुपरफास्ट के लिए साइड होने की जरूरत न पड़ेगी।
एक बड़ा अवसर और मिला है रेल प्रशासन को, यह जानने का आखिर उनकी गाड़ियोंमे कितने यात्री चल रहे है? जी हाँ। फिलहाल द्वितीय श्रेणी टिकट बुकिंग बिल्कुल बन्द है, उसकी जगह आरक्षित द्वितीय श्रेणी याने 2S टिकट दिए जा रहे। हमारा रेल प्रशासन से आग्रह है, द्वितीय श्रेणी का अस्तित्व अब केवल EMU, MEMU, DMU तक सीमित कर दिया जाए।
रेल प्रशासन को पता होना चाहिए, उसने कौनसी गाड़ी के लिये कितने टिकट जारी किए है। 90, 100 यात्री की क्षमता वाले कोच में उतने ही लोग यात्रा करें तो उसे आप यात्रा कह सकते है, नही तो कोच की क्षमता से 4 गुना लोग यात्रा करते नजर आते है। डिब्बे के पैसेज में, सीट्स के ऊपर, सीट्स के नीचे, टॉइलेट एरिया में, यहाँ तक की टॉयलेट्स में भी 6-8 जन घुसे रहते है। किसी राजनेता ने हवाई जहाज के जनरल क्लास को कैटल क्लास कहा था, उन्होंने शायद भारतीय रेल का जनरल क्लास देख लिया होगा, भेड़, बकरियाँ भी शरमा जाए ऐसी भीड़ द्वितीय श्रेणी के डिब्बों में भरी होती है। दरवाजों में लटके लोग घंटो सफर (?) करते है। यह सब अनियंत्रित द्वितीय श्रेणी टिकट के आबंटन का नतीजा है। रेल प्रशासन को पता ही नही की उनकी किस ट्रेन में कितनी सवारियाँ यात्रा कर रही है।
जब सेकण्ड क्लास डिब्बेमे पैर धरने को जगह न हो, तो बेचारा यात्री, टिकट खरीद कर भी जगह न मिल पाए तो गैरकानूनी तरीकेसे यात्रा करने मजबूर हो जाता है, स्लिपर डिब्बे में, दिव्यांगों के डिब्बे में, महिलाओं के डिब्बे में अपनी ठौर ढूंढता है। जब तकलीफ़ोंकी हदें टूट जाती है तो सारे नियमोंको ताक पर रख, जहाँ जगह मिले वही यात्री चढ़ जाते है। अराजकता और भ्रष्टाचार की शुरुवात यहाँ से ही तो होती है। इसके बारे हम न ही बोले तो ठीक होगा, आगे विषयांतर होते चला जाएगा।


आज की स्थिति में रेल प्रशासन केवल और केवल आरक्षित टिकट जारी कर रही है। द्वितीय श्रेणी के भी टिकट 2S क्लास में बदल दिए गए है, जो बिल्कुल सही तरीका है इस आपत्ति काल को इष्टापत्ति बनाने का। यही तरीका आगे भी चलता रहा तो रेल यात्रा में अनुशासन बना रहेगा। न सिर्फ स्लिपर, वातानुकूलित डिब्बे के यात्री अपनी अपनी जगहोंपर बैठ कर ढंग से यात्रा कर पाएंगे बल्कि द्वितीय श्रेणी के यात्री भी चैन की साँस ले पाएंगे। टिकट का जो मोल वह चुका रहे है, उसका सार्थक होगा।
हम रेल प्रशासन से पुनः आग्रह करते है, द्वितीय श्रेणी को अब इसी तरह आरक्षित ही रहने दिया जाए ताकी देश आम जनता रेल में सन्मानपूर्वक यात्रा कर सके।