मित्रों, भारतभर में देश के चारों महानगरों को सड़क मार्ग और रेल मार्ग से जोड़ने पर भर दिया जा रहा है। यह भारत का महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है। साथ ही दो मार्ग कन्याकुमारी से कश्मीर और ओखा से दीमापुर भी बनाए जाएंगे। यह सड़क मार्ग के प्रोजेक्ट को भारतमाला नाम दिया गया है।
हमारे देश में फोर लेन, सिक्स लेन सड़क मार्ग का निर्माण चल रहा है, हवाई अड्डे बनवाए जा रहे पर आज भी आम जनता के लिए यात्रा करने हेतु भारतीय रेल्वे काफी महत्वपूर्ण है। रेलवे की यात्रा न सिर्फ सुरक्षित, आरामदायक है बल्कि बहोत किफायती भी है। पूरे भारतभर बिछी लाइनोंकी वजह से देश मे घूमने, यात्रा करने के लिए रेलवे बेहद उपयुक्त संसाधन है। पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण के सिरे रेल्वेसे बराबर जुड़े हुए है।
उत्तर भारत से दक्षिण भारत को रेल्वेसे जब जुड़े होने की बात हम करते है तब बिल्कुल मध्य भारत मे यक खंड ऐसा है, जो कई वर्षोंसे छोटी लाइन में अटका पड़ा है। बीच मे रेलवे की “युनिगेज पॉलिसी” आई और सभी जगहोंकी छोटी लाइनोंको बन्द करा कर उन्हें बड़ी लाइनोंमें तब्दील करने का सुनहरा सपना दिखा गयी। कई मार्ग के काम शुरू किए गए और पूरे होकर उनमें बड़ी लाइन की गाड़ियाँ भी धड़धड़ाते चलने लगी, मगर आज भी रतलाम – महू (डॉ आम्बेडकर नगर) – खण्डवा – अकोला जो की 473 किलोमीटर के खण्ड है, टुकड़े टुकड़े में बँटा है। रतलाम से महू बड़ी लाइन, महू से पातालपानी छोटी लाइन जो की अब हैरिटेज लाइन बना दी गयी है, सनावद स मथेला होते हुए खण्डवा बड़ी लाइन, खण्डवा से अमलाखुर्द बड़ी लाइन का कार्य जारी है (?) अमलाखुर्द से आकोट गेज कन्वर्शन मेलघाट बाघ प्रकल्प मुद्दे के चलते खटाई में, आकोट – अकोला बड़ी लाइन बनकर तैयार। यह आज का चित्र है।
यह पूरा रतलाम से लेकर अकोला तक ऐसा रेल मार्ग है जो उत्तर भारत को दक्षिण भारत से जोड़ने में यात्रिओंके कई घंटोंकी बचत करा सकता है, कीमती इन्धन की बचत हो सकती है। खण्डवा – आकोट मार्ग तो वन विभाग के फाइलोंकी मुश्किलोमे दब जाने की संभावना ज्यादा लग रही है मगर खण्डवा – महू मार्ग में ऐसी कोई मुश्किल नही है। इस मार्ग के ही बारे में आज विस्तार से बात करते है।


यह ताजा मैप है, इसमें साफ दिख रहा है की खण्डवा से मथेला होते हुए सनावद जुड़ चुका है और महू से सनावद तक कुछ भाग निर्माणाधीन तो कुछ भाग छोटी लाइन से जुड़ा नजर आता है। यह छोटी लाइन हैरिटेज लाइन है। इस लाइन का एक ब्रिटिशकालीन इतिहास है आइए वहींसे शुरू करते है।
इन्दौर प्रभाग होळकर साम्राज्य था। देशभर में ब्रिटीशोंने रेल लाइनोंका जाल बिछाने का काम शुरू कर दिया था। तब होळकर संस्थान ने अपने भूभाग में भी रेल लाइन बिछाने की पेशकश ब्रिटीशोंसे की। उस वक्त याने सन 1873 में ब्रिटीशोंने यह कार्य शुरू किया और 1877 में यह मार्ग मात्र साढ़े चार वर्षोंमें बनकर तैयार हुवा। कहा जाता है, होळकर संस्थान ने इस मार्ग को बनाने के लिए 1 करोड़ रुपए दिए थे।
अब स्वतंत्र भारत की हकीकत भी सुनिए 2007 में इस मार्ग को युनिगेज कार्यक्रम के तहत बड़ी लाइन में तब्दील करने की घोषणा की गई। तब बजट निकला था करीबन 1400 करोड़ जो बढ़कर अब हुवा है करीबन 2400 करोड़, जिसमे अलग अलग वर्षोंमें कुल 837 करोड़ मिल चुके है और रतलाम – महू बड़ी लाइन, सनावद – खण्डवा और आकोट – अकोला खण्ड बड़ी लाइनमे तब्दील हो चुके है। रतलाम महू खण्ड पर बड़ी लाइन की गाड़ियाँ भी चल पड़ी है मगर आज भी बचे बाकी सेक्शन्स बन्द होने की वजह से इस मार्ग की जनता परेशान है। किफायती, आरामदायक और सुरक्षित रेल यात्रा से वंचित है।
रतलाम – अकोला इस पूरे रेल प्रोजेक्ट में आज भी महू – सनावद सेक्शन जुड़ जाए तो रतलाम खण्डवा लाइन पूरी होकर मध्य रेलवे के मैन लाइन दिल्ली भोपाल इटारसी भुसावल मुम्बई मार्ग से जुड़ जाएगी। रतलाम – इन्दौर – मुम्बई, रतलाम – इन्दौर – पुणे अन्तर कमसे कम 200 से 300 किलोमीटर कम हो जाएगा। यही नही पश्चिमी राजस्थान भी दक्षिण, पश्चिम भारत से एक गतिमान और शॉर्ट कनेक्टिविटी पा लेगा। मालवा, निमाड़ और मध्य राजस्थान से देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई से एक बेहतर पर्यायी मार्ग के स्वरूप में भी रेल प्रशासन इसे देख सकता है।
केवल 85 किलोमीटर का गेज कन्वर्शन होने से यात्रिओंका कितना समय बचेगा, देश का कितना इन्धन बचेगा आप सोच सकते है। दरअसल इन्दौर क्षेत्र के लिए इतनी लाइनोंकी घोषणा हो चुकी है, जिसमे इन्दौर दाहोद, मनमाड़ इन्दौर प्रोजेक्ट्स है। उस वजह से यह लगता है, फलाँ प्रोजेक्ट से यह बेहतर है, या उससे वह ज्यादा फायदेमंद है और इसी चक्कर मे यह छोटीसी कनेक्टिविटी की तरफ ज्यादा ख्याल नही दिया जा रहा है। आज का हमारा प्रयास इसीलिए है, की महू – सनावद जोड़ने से क्या कुछ हासिल होने जा रहा है।