गत वर्षोंसे यह रिवाज है, की विशेष गाड़ियोंकी घोषणा कमसे कम 1 माह पहले ही हो जाती है। इस बार राज्य सरकार और रेल प्रशासन का तालमेल बैठा ही नही और जिस दिन गाड़ियाँ चालू होनी थी उसके महज 1 दिन पहले गाड़ियोंकी घोषणा की गई।
पहले ही संक्रमण के हालात उसमे यात्रिओंको कोरंटाइन किए जाने का सताए जानेवाला डर। सारे गणेशोत्सव के लिए घर जानेवाले यात्री सड़क मार्ग से 8/10 पहले ही गाँवोंके तरफ निकल लिए। सबसे बड़ी तकलीफ़ यह थी, राज्य शासन का नियम, जिसमे राज्यान्तर्गत रेल यात्रा करने की रेलवे सिस्टम द्वारा ही मनाही कराई गई थी।
ऐसे में कोई कैसे सोच लेता, की विशेष गाड़ियाँ चलाई जाएगी और उसमे राज्य के भीतर ही भीतर रेल यात्रा की अनुमति भी रहेगी? बस। इतना धैर्य, इतना इंतजार गाँव जाने वाले क्यों कर करेंगे? सारा देश साक्षी है, उत्तरी, पूर्वी भारत के श्रमिक गाँव की ओर जाने के लिए कैसे कैसे तरिकोंसे बड़े शहरोंसे अपने आशियानोंको, रोजीरोटी को छोड़कर निकल गए थे। फिर क्या पूर्वी भारत के लोग और क्या कोंकनवासी? जिसका मन गाँव की तरफ दौड़ गया वह किसीके मानें नही मानता।
कुल मिलाकर नतीजे सामने है, देख लीजिए।
