कृपया निम्नलिखित ब्यौरा, जो की रेल बोर्ड चेयरमैन विनोद यादव इनका है, पढ़े।
‘पिछले और इस फाइनेंशिइयल ईयर में रेलवे एक्सीडेंट्स में ज़ीरो डेथ रही हैं। 2018-19 में 16 डेथ हुई थीं। पिछले तीन सालों में 29000-30000 दुखद मृत्यु (ट्रेन से झांकते हुए और रेलवे ट्रैक पर गिरने से) हुई हैं। इन्हें कम करने के लिए हम पूरी तरह से प्रयासरत हैं : रेलवे बोर्ड चेयरमैन विनोद यादव’ https://t.co/9uFDg4crRS
चेयरमैन रेल बोर्ड का कहना है, रेल दुर्घटना ने विगत और इस वर्ष अब तक कोई मृत्यु नही हुई है। उनके इस दावे पर निति आयोग के CEO अमिताभ कान्त ने उत्तर मांगा, तब चेयरमैन, रेल बोर्ड का उपरोक्त जवाब आया, वैसे तो 29 से 30 हजार मृत्यु रेल आहाते में विगत 3 वर्षोंमें हुई है। क्या? जी आपने सही पढा है, 29,000 से 30,000 व्यक्तिओं की मृत्यु रेल्वेसे किसी न किसी कारण से हुई है। वह कारण रेल पटरी पर अनावश्यक, या अनाधिकृत तरीकेसे घुमनेसे या चलती गाडीसे चढ़ने, उतरनेसे, झांकने से हुई है।
एक हादसा अमृतसर शहर के पास दशहरा देखने पटरी के पास जमे लोगोंके हुवा था। जिसमे 50 लोगोंकी मृत्यु और करीबन 100 लोग गम्भीर रूपसे घायल हुए थे, जिसे रेलवे प्रशासन ने ‘ट्रेसपसिंग’ याने पटरी अनाधिकृत तरीकेसे पार करना करार दिया था। और हजारों की संख्या में मुम्बई के उपनगरीय गाड़ियोंमे यात्री डिब्बों के बाहर लटके यात्रा करते रहते है। हजारोंकी संख्या में, यह गाड़ियाँ कभी बीच मे रुक जाए तो पटरी पर पैदल ही निकल पड़ते है।
चाहे जो भी हो, आंकड़े बड़े ही डरावने है, जिसे सहजतासे नही लिया जा सकता है। अब सवाल यह है, क्या इस पर कोई ठोस उपाय योजना की जा सकती है? आज भी, याने इस संक्रमण काल मे जब केवल गिनती की स्पेशल गाड़ियाँ ही चल रही है, तब भी अनाधिकृत विक्रेता, भीख मांगने वाले और तृतीयपंथी रेल गाड़ियोंमे सक्रिय है, ऐसे मे रेलवे में सुरक्षा की कितनी अपेक्षाएं रखी जानी चाहिए, यह एक अहम सवाल है।