जीरो बेस टाइमटेबलिंग में पूरे भारतभर की तमाम लिंक एक्सप्रेस गाड़ियोंको बन्द किया जा रहा है। इसके पीछे रेल प्रशासन का यह तर्क है, जिस जंक्शनोंपर यह गाड़ियाँ मुख्य गाड़ियोंको लिंक करती है वहाँपर दो लाइनें ब्लॉक होती है, शंटिंग करनी पड़ती है और गाडीको काफी ज्यादा रुकना पड़ता है। इससे गाड़ी के एवरेज चालान समय मे बढ़ोतरी होती है। स्टाफ़ भी एंगेज होता है वगैरा वगैरा।
लेकिन यही निकष पार्सल गाड़ियोंके लिए नही है। हाल ही में रेल प्रशासन ने किसानोंके उत्पाद को अच्छे बाजरोंतक शीघ्रतासे पहुचाने के लिए किसान रेल शुरू की है। देश की पहली किसान रेल जो की देवलाली नासिक महाराष्ट्र से दानापुर बिहार के लिए शुरू की गई जो इतनी यशस्वी रही की उसे साप्ताहिक से बढ़ाकर द्विसाप्ताहिक किया गया और दानापुर से बढ़ाकर मुजफ्फरपुर तक एक्सटेंशन भी मिल गया। बात यही खत्म नही होती, इन गाड़ियोंके साथ इनकी लिंक पार्सल गाड़ियाँ भी चल रही है। पहली लिंक है, सांगोळा से मनमाड़ जो मुख्य देवलाली – मुजफ्फरपुर को मनमाड़ में जुड़ती है। इस लिंक को भी एक ओर लिंक जुड़ती है दौंड स्टेशन पर जो कि 2 पार्सल डिब्बों की है और वह आती है पुणे से। याने पुणे – दौंड – मनमाड़ लिंक पार्सल और भी इनके बीच कोल्हापुर का भी कुछ कनेक्शन है।
अब सवाल यह है, क्यो भला चलवाई होंगी रेलवे ने यह पार्सल लिंक गाड़ियाँ? सीधा सा उत्तर है, देवलाली – मुजफ्फरपुर यह गाड़ी मुम्बई मनमाड़ मुख्य रेल मार्ग के देवलाली स्टेशन से निकल रही है, जबकी पुणे – दौंड – मनमाड़ या कोल्हापुर – कुरदुवाड़ी, संगोळा यह और अलग ब्रांच लाइन्स है। इन स्टेशनोंसे एक पूर्ण गाड़ी चलाना व्यवहार्य नही है अतः 8 डिब्बों की छोटी गाड़ी दौंड तक आकर वहाँसे 2 डिब्बे पुणे से आकर दौंड से 10 डिब्बों की एक गाड़ी मनमाड़ तक आती है और मुख्य गाड़ी से लिंक होकर फिर निकलती है।
यही तो कंसेप्ट, संहिता है लिंक एक्सप्रेस यात्री गाड़ियोंकी। किसी ब्रांच लाइनके छोटे स्टेशन के यात्रिओंको मुख्य मार्ग की लम्बी दूरी की गाड़ियोंसे जोड़ना।
मुम्बई – पुणे – साई नगर शिरडी यह गाड़ी यही कथा है जो वर्षोंसे मुम्बई – विजयपुर / पंढरपुर सवारी गाड़ी से लिंक स्वरूप में चलती थी, जो काफी लोकप्रिय थी। उसी प्रकार से इंदौर जयपुर लिंक एक्सप्रेस जो की भोपाल जयपुर एक्सप्रेस को उज्जैन में लिंक होती थी। ऐसी बहोत सी लिंक गाड़ियाँ है जो इस ज़ीरो टाइमटेबलिंग व्यवस्था की बलि चढ़ाई जा रही है।
हम रेल प्रशासन से यह कहना चाहते है, जब पार्सल गाड़ियोंमे आपको लिंक चलाने का महत्व मालूम पड़ता है तो यात्री गाड़ियोंकी लिंक किस तरह बन्द कर दी जा सकती है? क्या रेल प्रशासन उन लिंक एक्सप्रेस के बदले उन तमाम छोटे ब्रांच लाइनोंको सीधी गाड़ियाँ दे देगी? यात्रिओंको इसी बात का इंतजार है।

