आप के कानोंपर रेलवे टाइमटेबल के संदर्भ में हमेशा पड़नेवाला शब्द “जीरो बेस टाइमटेबल” जो की इस संक्रमण काल की उत्पत्ति है। अब यह उपलब्धि है या आपत्ति या एक अलग परेशानी यह तो आनेवाला काल ही बताएगा।
दरअसल 22 मार्च से रेलवे की सारी यात्री गाड़ियाँ बन्द कर दी गयी थी। तमाम रेलवे नेटवर्क खाली हो गए थे। धीरे धीरे केवल जरूरत के हिसाब से जीवनावश्यक वस्तुओं की माल यातायात शुरू की गई और 12 मई से 30 राजधानी गाड़ियाँ, 1 जून से 200 मेल एक्सप्रेस गाड़ियाँ यात्रिओंकी आवाजाही के लिए पटरी पर उतारी गई। वर्षों पुराने यात्री टाइमटेबल मे मौलिक रूप से बदलाव करने की यह आदर्श स्थिति थी।
रेल प्रशासन ने इस आपत्ति का चुनौती के स्वरूपमे स्वीकार किया और अपने बुनियादी ढांचे को जो वर्षोंसे “रिक्त स्थानोंकी पूर्ति” के समायोजन पर काम किए जा रहा था, ज़ीरो बेस टाइमटेबलिंग के लिए तैयार हो गए। आज यह स्थिति है, की रेलवे अपने माल भाड़े से कमाए हुए धन को यात्री गाड़ियोंमे एडजस्ट करती चली आ रही है। 1 रुपिया अर्जित करने के लिए 98.5 पैसे लग रहे है। ऐसी स्थिति में यह जरूरी हो जाता है, की अपने व्यवस्थाओंके के ढांचे पर नजर डाले और जरूरी, एवं आवश्यक बदलाव करें, अन्यथा सारा ढाँचा ही चरमरा न जाए। इसके लिए रेल प्रशासन ने अपने कुछ तज्ञ और IIT मुम्बई से सहयोग लिया और ज़ीरो बेस टाइमटेबल की रचना की शुरवात की। मुख्य उद्देश्य यह था, की यात्री गाड़ियाँ, मालगाड़ियाँ चलने की सुव्यवस्था हो, मरम्मत किए जाने के लिए अलग से वक्त मिले।
जब यह ज़ीरो बेस टाइमटेबल साकार होते आ रहा है तो एक कड़ा सारांश भी नजर आ रहा है, पूरे रेल नेटवर्क से नियमित चलनेवाली करीबन 500 गाड़ियोंको अपने घर बैठना है, याने रद्द होना है और लम्बी दूरी की गाड़ियोंके कुल मिलाकर 10,000 स्टापेजेस को हरी झंडी दिखानी है याने स्किप करना है, हाँ भाई, याने इतने सारे स्टापेजेस रद्द किए जा सकते है।
अब इससे होगा क्या, तो इससे रेल नेटवर्क पर 15% मालगाड़ियाँ बढाई जायेगी। जो गाड़ियाँ अभी नियमित रूपसे चल रही है, उनका अभ्यास किया जा चुका है। उनमेसे जिन गाड़ियोंमे 50% से कम यात्री बुकिंग्ज हो रही है, उनको रद्द किया जाएगा। लम्बी दूरी की गाड़ियोंके स्टॉपेज में कमसे कम 200 किलोमीटर का अंतर होगा, याने यह गाड़ियाँ किसी स्टेशन से छूटने के बाद 200 किलोमीटर तक नही रोकी जाएगी ताकी इन गाड़ियोंकी अपनी एवरेज तेजी बरकरार रखी जा सके। दस लाख से ज्यादा आबादी के शहर, औद्योगिक शहर, तीर्थ या पर्यटन स्थल इनके स्टापेजेस बरकरार रखे जा सकते है।
गाड़ियाँ रद्द किए जाने में सेक्शन्स का भी अभ्यास किया जा रहा है। यदि कोई गाड़ी अपने किसी खण्ड में खाली चलती है तो उस यात्रा खण्ड को रद्द कर के उसे पहले ही टर्मिनेट याने शार्ट टर्मिनेट कर के उसकी यात्रा समाप्त की जाएगी। (ज़ीरो बेस टाइमटेबल में टर्मिनलों का बदलाव) लम्बी दूरी की गाड़ियोंके स्टापेजेस रद्द किए जाने या किसी छोटे स्टेशनपर गाड़ियोंकी उपलब्धि न रहने के सूरत में दो स्टेशनोंके बीच कनेक्टिंग ट्रेन डेमू या मेमू के स्वरूप में शुरू की जाएगी।
यात्री स्टापेजेस के लिए भी टिकट बुकिंग्ज का तत्व अपनाया जाएगा। जिन स्टेशनोंपर बुकिंग्ज कम है, वहांके स्टापेजेस स्किप याने रद्द किए जा रहे है। तमाम लिंक एक्सप्रेस को रद्द किया जा रहा है, जिन से गाड़ियाँ अनावश्यक रूप से ज्यादा समय खड़ी की जाती है, साथ ही रेल लाइनें भी एंगेज रहती है। इन लिंक एक्सप्रेस के बदले ब्रांच लाइन्स और मेन लाइन के स्टेशनोंके बीच कनेक्टिंग ट्रेन्स की व्यवस्था की जाएगी।
सभी गाड़ियोंको LHB रैक्स में परावर्तित किया जा रहा है। हर एक्सप्रेस गाड़ी कमसे कम 22/24 डिब्बों की रहेगी। जिस मार्ग की गाड़ी रद्द हो रही है, उन स्टेशनोंकी कनेक्टिविटी पर नजर रखी जाएगी। इन सारी कवायदोंका सबर्बन गाड़ियोंपर कोई असर नही होगा, यह परिवर्तन केवल मैन लाइनोंकी गाड़ियोंमे ही किया जा रहा है।
अब आप सोच रहे होंगे आखिर यह धमाकेदार “ज़ीरो बेस टाइमटेबल” आ कब रहा है? तो मित्रों, रेल प्रशासन ने इसकी पक्की तारीख तो फ़िलहाल नही दी है, लेकिन अगले वर्ष के शुरवाती महीनोंमें ही इसे जारी करने की तैयारी रेलवे ने कर ली है। तो तैयार हो जाइए, रेलवे के नए बदलावों के लिए, ज़ीरो बेस टाइमटेबल के लिए।