आज लोकसभा में रेल मंत्री पीयूष गोयल ने उत्तर देते हुए कहा। गौरतलब यह है, सारे रेल यात्री ज़ीरो बेस टाइम टेबल के बड़े झटकोंसे अभी उबरे ही नही है, की अब यह सोच में डूब गए, भई ये ‘हब्ज और स्पोक्स’ और क्या है?
मित्रों, इसमे घबराने वाली कोई बात नही है, टाइम टेबल बनाते वक्त रेलवे अपने इंफ्रास्ट्रक्चर याने बुनियादी व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए जरूरी बदलाव करने पर जोर देती है। अब यह बुनियादी व्यवस्था क्या है, तो रेलवे के बड़े जंक्शन्स। जहाँपर रेलवे की गाड़ियोंकी यथायोग्य साफसफाई, रखरखाव होगा, गाड़ियोके कोचेस में पानी भरा जाएगा, इलेक्ट्रिकल, इंजीनियरिंग मेंटेनेन्स किया जा सकेगा, अमेनिटी और ऑपरेटिंग स्टाफ अपनी ड्यूटी बदलने के लिए मौजूद रहेगा और सबसे मुख्य बात वहाँसे अलग अलग जगहोंपर जाने के लिए मार्ग बदलेंगे। तो ऐसे जंक्शन्स हुए हब।
ऐसे जंक्शनपर से जो मार्ग निकलेंगे वह हुए स्पोक्स। उदाहरण के लिए लीजिए रतलाम जंक्शन। रतलाम जंक्शन पर उपरोक्त मेंटेनेन्स की सुविधाएं मौजूद है। यह स्टेशन पश्चिम रेलवे की मुम्बई – दिल्ली मैन लाइन पर मौजूद है, यहांसे चित्तौड़गढ़, अजमेर के लिए एक ब्रांच लाइन, उज्जैन, इन्दौर के लिए एक ब्रांच लाइन। इसी तरह भुसावल, इटारसी, नागपुर, झांसी ऐसे स्टेशन्स हब माने जाएंगे और इन स्टेशनोंसे जो ब्रांच लाइनें निकलेंगी वह स्पोक्स।
अब इस व्यवस्था में लम्बी दूरी की, मैन लाइन की गाड़ियाँ तो सीधी चलेगी, जिनके लिए कोई समस्या नही लेकिन कुछ कम दूरी की 200 से 500 किलोमीटर तक की गाड़ियोंके लिए यह पद्धति लागू की जा सकती है। जैसे भुसावल से मुम्बई, सूरत, इटारसी, नागपुर की ओर जिनकी दूरी 300 से 500 किलोमीटर है, कम अंतर वाली गाड़ियाँ जिनमे इंटरसिटी एक्सप्रेस, डेमू, मेमू ट्रेन्स चलाई जा सकेगी जो की स्पोक्स मार्ग की गाड़ियाँ रहेगी। या इस तरह भुसावल से निकल कर अकोला होते हुए नान्देड, बडनेरा होते हुए अमरावती, खण्डवा होते हुए सनावद, महू, इन्दौर, या मनमाड़ होते हुए पुणे, औरंगाबाद, नासिक इस तरह।
यह ‘हब’ स्टेशन पर किसी ब्रांच लाइन के स्टेशनोंसे आकर यात्री अपनी एक गाड़ी छोड़कर दूसरी गाड़ी पकड़ेगा और अपनी अगली यात्रा पूरी करेगा। जैसे सूरत से भुसावल आकर आगे अकोला होते हुए नान्देड जाना है। कुल मिलाकर यह पुराने ब्रिटिशकालीन मैन लाइन, ब्रांच लाइन ढांचे वाला पैटर्न लग रहा है। फर्क यह है, की उस व्यवस्था में ब्रांच लाइन की गाड़ियाँ किसी दो जंक्शन्स के बीच ही चलती थी और इसमें लम्बी दुरियोंकी गाड़ियोंके अतिरिक्त ब्रांच लाइनोंपर कम अंतर की मेमू, इंटरसिटी गाड़ियाँ भी चलेगी। इसमें एक विशेष बात यह की छोटी छोटी दुरियोंकी गाड़ियाँ चलाने या उनके मैनेजमेंट में रेल प्रशासन पर ज्यादा दबाव नही पड़ता है।
दरअसल ज़ीरो बेस टाइम टेबल में गाड़ियोंकी, स्टापेजेस रद्द की खबरें सुन सुन हैरान हुए रेल यात्रियों और प्रेमियों के लिए आशा की एक नई किरण है। उद्यान आभा एक्सप्रेस या फिरोजपुर एक्सप्रेस जैसी कम एवरेज स्पीड से चलनेवाली गाड़ियोंको रद्द करके उनकी जगह छोटे छोटे अंतर की दो हब के बीच चलने वाली मेमू या इण्टरसिटी एक्सप्रेस चलेगी तो उसका फायदा निश्चित ही यात्रिओंको मिलेगा साथ ही रेल प्रशासन का भी, कम स्पीड की लम्बी दूरी की गाड़ियोंको चलाने का दबाव खत्म होगा।
कहा जा रहा है, जीरो बेस टाइम्टेबलिंग में दस हजार स्टापेजेस और पाँच सौ नियमित गाड़ियाँ रद्द की जाने वाली है तो जाहिर सी बात है, की इस तमाम रद्दीकरण से होनेवाले यात्रिओंके नुकसान की भरपाई इस “हब्ज एंड स्पोक्स” के माध्यम से पूरी हो सकती है।