“जस्टिस डिलेड, जस्टिस डीनाइड” ऐसी अंग्रेजी में कहावत है। इसका मतलब है, न्याय में देरी याने न्याय नकारना। हालाँकि हम जो बात कर रहे है वह जस्टिस याने न्यायालय वाले न्याय की नही है मगर अन्याय की तो निश्चित ही है।
सन 2008 मे रेल प्रशासन ने रतलाम – अकोला इस 472 कीलोमिटर मिटर गेज लाइन को ब्रॉड गेज में कन्वर्ट करने की घोषणा की। दरअसल यह पूरे मीनाक्षी एक्सप्रेस रूट याने जयपुर – काचेगुड़ा जो की 1469 किलोमीटर वाला यात्रिओंमें बेहद लोकप्रिय, उत्तर दक्षिण रेल कॉरिडोर था, उसका हिस्सा था। इस 1469 किलोमीटर में से 805 किलोमीटर भाग जयपुर से अजमेर, चित्तौड़गढ़, होते हुए रतलाम तक और अकोला से पूर्णा होते हुए काचेगुड़ा तक गेज कन्वर्शन कर दिया गया। रतलाम से महू का भी गेज कन्वर्शन हो गया और कुछ 45 किलोमीटर हिस्सा आकोट से अकोला का हाल ही में हुवा है। बस अटका यही है, महू से सनावद और खण्डवा से आकोट वाला खण्ड। अब आप पूछेंगे सनावद से खण्डवा वाला हिस्से का क्या तो भाईसाहब वह भी हिस्सा अंशतः याने निमादखेड़ी से मथेला के बीच कन्वर्ट हो गया है। यह मथेला स्टेशन खण्डवा – इटारसी मेन लाइन के बीच का, खण्डवा से 8-10 किलोमीटर पर का स्टेशन है। इसमें भी खास बात यह है की खण्डवा से इतने पास होने के बावजूद यह स्टेशन खंडवासे सनावद लाइन के लिए सीधे कनेक्ट नही है। आपको बता दूं, इस खंड कन्वर्शन का सारा श्रेय NTPC की सेलडा विद्युत परियोजना को जाता है।

ऐसे इस पूरे मार्ग का गेज कन्वर्शन का इतिहास एवं आंकड़े यहां उधृत करना यह हमारा आजका विषय नही है। यह सब आप इंटरनेट पर खंगाल सकते है। हम आपको यह बताने का प्रयत्न कर रहे है, की जब गेज कन्वर्शन घोषित किया 2008 में लेकिन गाड़ियाँ तो शनै शनै रतलाम से लेकर अकोला तक, एक एक खण्ड में मीटर गेज की गाड़ियाँ बन्द होते गयी। पटरियां उखड़ गयी। स्टेशन उजाड़ हो गए। मार्ग पर के हजारों, लाखों लोगोंकी कनेक्टिविटी छीन गयी, इन रेल मार्ग के भरोसे जिनके व्यापार व्यवसाय चल रहे थे वह उजड़ गए। कई कई वर्ष बीत गए इन लोगों ने रेल गाड़ी की आवाज नही सुनी। क्या यह सब उचित है?

साभार : raildwar.com
जब अकोला से काचेगुड़ा का गेज कन्वर्शन हुवा या मनमाड़ से पूर्णा का गेज कन्वर्शन हुवा तो सारी पटरियां उखाड़ कर काम किया गया? नही। वहाँपर ड्युअल गेज स्लीपर्स डाले गए और मीटर गेज की गाड़ियाँ चलती रही। रेल ट्रैफिक कभी भी पूरी तरह से बन्द नही किया गया। जब कभी बन्द किया गया तो वह किन्ही तांत्रिक कारणोंसे बन्द किया गया था, जैसे इंटरलॉकिंग वर्क्स के लिए। तो महू – खण्डवा – आकोट – अकोला खण्ड पर यह व्यवस्था क्यों नही की गई? क्यों यहांके यात्रिओंको रेल सम्पर्कसे वंचित रखा गया? और कितने वर्ष रेल गाड़ियोंका इंतजार करना है इस मार्ग के लोगोंको, क्या कोई बता सकता है?
आप हमारे लेख के शीर्षक के बारे में सोचते होंगे, तमाम गाड़ियाँ बन्द है, गिनीचुनी चल रही है। साहब, आज गिनती की चल रही है, कुछ वक्त की बात है, जल्द ही सारी चल पड़ेगी। सारी क्या, और नयी निजी ट्रेन्स, बुलेट ट्रेन्स, मैगालेव ट्रेन्स कई तरह की गाडियाँ भारत मे चलने वाली है, मगर उपरोक्त रेल खण्ड का क्या होगा, कब होगा, कैसे होगा यह तो अनुत्तरित ही है।