24 सितम्बर से पंजाब, हरियाणा में किसान रेल रोको आंदोलन जारी है तो 1 नवम्बर से गुर्जर आन्दोलन भी राजस्थान में रेल रोको कर रही है।
इन सब आन्दोलनोंसे रेल रोकने का क्या ताल्लुक है? क्या इन किसानों, गुर्जरों को रेल विभाग से कोई मांग है? फिर क्यों रेलोंको चलने से रोकी जा रही है? रेल विभाग यह भारत सरकार के अधीनस्थ है, राष्ट्रीय सम्पत्ती है और आसानी से टारगेट की जा सकती है?
आज हजारों प्रदर्शनकारियों की वजह से रेल यातायात बाधित की जा रही है और उस वजह से लाखों रेल यात्री परेशान हो रहे है। इस तरह के संघटित आन्दोलनोंके विरोध में पीड़ित जनता संघटित नही हो पाती और न्यायपालिका, प्रशासन के कार्रवाई की इच्छा रखती है।
आशा है, की प्रशासन ऐसे रेल रोको पर कोई कड़ी उपयुक्त और स्थायी कार्रवाई करे ताकी आगेसे इस तरह के आन्दोलनोंकी घोषणा करने के लिए और रेल पटरियों, महामार्गोंपर जाम करनेवालों को अपने प्रदर्शन का सिरे से विचार करना पड़े।
बड़े बूढ़े कह गए है, हर नुकसान की भरपाई होती है। कुदरत करती है। जैसे लॉक डाउन के चलते व्यापार, उद्यमियों का बड़ा नुकसान हुवा था, लेकिन अनलॉक के बाद बाज़ारोंमें बड़ी तेजी है। लेकिन ऐसे आन्दोलनोंसे होने वाले नुकसान हानी को आने वाले वक्त पर छोड़ना ठीक नही, क्यों न आंदोलनकारी संगठनोंको इसका बिल भेजा जाए? हालाँकि यह नई बात नही है, उत्तरप्रदेश के दंगाइयोंसे इस तरह की वसूली की गई है। क्या कहते हो? कहीं हमने आप के मन की बात तो न कह दी?