24 सितम्बरसे चला आ रहा पंजाब राज्य का किसान रेल रोको, आज भी जारी है। बीते 40 दिनोंमें रडे विभाग का करीबन 1200 करोड़ रुपयोंका नुकसान हुवा है, 2225 मालगाड़ियाँ और करीबन 1250 यात्री गाड़ियाँ नही चलने से यह नुकसान हुवा है।


यह तो रेल प्रशासन की गाड़ियाँ न चलने से मिलने वाले राजस्व का घाटा है, लेकिन बन्द पड़े उद्योगों, कारखानों का नुकसान, किसानोंके फलों, सब्जियोंका नुकसान, मज़दूरोंका रोजगार डूबना और सबसे बड़ा नुकसान तो पंजाब, हरियाणा जैसे उद्यमी राज्योंकी की साँख बिगड़ना यह है।

अपनी मांगोंके लिए धरना, प्रदर्शन और विरोध करना जनतंत्र में हर कोई का हक है, लेकिन ऐसे प्रदर्शनोंसे प्रदेश का, जनता का कितना नुकसान हो रहा है, क्या यह देखना लाज़मी नही? ऐसे ही रेल ट्रैफिक दिल्ली से आगे नही बढ़ रहा था की पंजाब धरने के साथ साथ राजस्थान, हरियाणा का गुर्जर आन्दोलन भी 1 नवम्बर से शुरू हो गया है। गरीबी में आटा गीला, अब गाड़ियाँ दिल्ली तक भी जाने में मुश्किलात आ गयी। गाड़ियाँ इधर, उधर घूमते घुमाते ले जाई जा रही है।


गाड़ियाँ ठप्प की जा रही है, रेल प्रशासन हतबल है। जनता, यात्री, उद्यमी सारे परेशान है और प्रशासन की ओर ताक रहे है। क्या यह जनतंत्र है, या उसका विडम्बन है? कौन लेगा इस घाटे की जिम्मेदारी, किस तरह बन्द किए जाएंगे ऐसे रेल रोको? मुसीबत तो आम जनता की होती है। न प्रदर्शनकारी मानने को तैयार न प्रशासन कार्रवाई के लिए सजग। जनता का व्यक्तीगत नुकसान तो होता ही है, और जो राजस्व डूबता है, सार्वजनिक सम्पत्तियां बरबाद होती है करदाताओंके पैसे से वह अलग।

उपरोक्त तस्वीरे रेलपोस्ट, इंडियाटाइम्स, आजतक के सौजन्यता से।