शाहीन बाग आंदोलन याद है?
दिल्ली वाला शाहीन बाग! जो 100 दिनोंसे ज्यादा दिन चला था। तमाम दिल्लीवासियों को इस प्रदर्शन ने एक विविक्षित एरिया को, भरेपूरे बहते ट्रैफिक को बन्द कर लम्बे रास्ते से घूम कर जाने के लिए मजबूर कर दिया।
अब याद कीजिए, पंजाब किसान धरना। और याद कीजिए गुर्जर आंदोलन। समझ आ रही है कुछ समानताएं? आज लाखो रेल यात्री, रेल मार्ग रोके जाने से परेशान है। गाड़ियाँ सैकड़ों किलोमीटर घूम घुमा कर ले जायी जा रही। शासन, प्रशासन, आम जनता, पीड़ित यात्री सब मौन है।
भयंकर मौन! डरावना मौन!!
किस आंदोलन के क्या उद्देश्य थे, कौन आंदोलनकारी थे? किसने क्या हासिल कर लिया? यह सब बातें अलाहिदा रखिए, पीस कौन रहा है? पंजाब की जनता। हजारों लाखों यात्री। सैकड़ों उद्यमी।
क्या चल रहा है?
दिल्ली की सडकोंपर का शाहीनबाग पंजाब की पटरियों पर बस गया है। गुर्जर आंदोलन ने भी रेल पटरियों पर बसेरा कर लिया है। वहीं खाका है, मार्ग अवरूद्ध करने का।
शाहीनबाग में सड़कें थी यहाँपर रेल की पटरियाँ है। तब भी आन्दोलन चलता रहा, लोग तकतें रहे, प्रशासन हतबल सा देखता रहा और इधर भी वही….
यह शाहीन बाग ही तो है…..
रेल पटरियों वाला शाहीनबाग।
बताइए, और कहाँ कहाँ शाहीनबाग बनाए जा रहे है? अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए कोई विरोध नही। किसान हो, गुर्जर हो या कोई और आपके साथ सभी की सहानुभूति है, लेकिन आम जनता को नुकसान पोहोंचाना सरासर गलत और गाड़ियाँ रोके जाना अतिदुखदाई है।
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