यह एक बेहद अहम और पेचीदा सवाल है। मुम्बई का इतना बड़ा रेलवे नेटवर्क दो ज़ोन, मध्य और पश्चिम रेलवे में बटा हुवा है। पश्चिम रेलवे के मुम्बई डिवीजन में चर्चगेट से सूरत, उधना से जलगाँव और बिलीमोरा से वाघई छोटी लाइन साथ ही मुम्बई का तमाम उपनगरीय जाल और मध्य रेलवे का भी यही हाल है। मुम्बई से इगतपुरी, कल्याण से लोनावला यह दो मुख्य मार्ग के साथ पनवेल से कर्जत, कर्जत से खोपोली, दिवा से रोहा, दिवा से वसई और उपनगरीय रेलवे के ठाणे पनवेल ट्रांस हार्बर मार्ग, माहिम कॉर्ड, कुर्ला से पनवेल मार्ग सम्मिलित है।
दोनों मध्य और पश्चिम रेलवे के सिर्फ उपनगरीय सेवा को देखे तो मुम्बई – कसारा, मुम्बई – कर्जत, हार्बर और ट्रांस हार्बर लाइनें, मुम्बई से विरार, डहाणू रोड़ तक उपनगरीय सेवा चलती है। इन मार्गों का रखरखाव, परिचालन, अपग्रेडेशन सारी बातें मुख्य मार्ग की गाड़ियोंसे सर्वथाः अलग है। उपनगरीय मार्गोंकी समस्या या जरूरतें भी अलग ही होती है। फिर क्यों न सिर्फ उपनगरीय गाड़ियाँ जहाँतक चलती है, वहांतक के मार्गोंको मिलाकर केवल एक ज़ोन बनाया जाए, न तो मध्य और न ही पश्चिम बस मुम्बई ज़ोन।
जब 9 ज़ोन से बढाकर 17 ज़ोन बनाए गए थे तो उसके पीछे का उद्देश्य यही था की मुख्यालय की दूरी कम हो। मध्य रेलवे मुम्बई से तुग़लगाबाद तक फैला था। लम्बी दूरी से, डेढ़ हजार किलोमीटर यात्रा कर कर्मचारियोंको अपने मुख्यालय आना पड़ता था। पूरा सप्ताह किसी एक काम को लेकर लग जाता था। खैर मुख्यालयोंके बंटने से यह समस्या तो खत्म हुई लेकिन आज भी इन मुम्बई के रेल मुख्यालयोंके वजह से लम्बी दूर से कर्मचारियोंको मुम्बई आना ही पड़ता है, जो की अनावश्यक है। वही मध्य रेलवे का क्षेत्रीय मुख्यालय पुणे, सोलापुर या भुसावल हो और पश्चिम रेलवे का वड़ोदरा या सूरत हो तो मुम्बई का यात्री भार काफी कुछ कम होगा।
दूसरा कर्मचारियोंकी, अपग्रेडेशन निधि का बंटवारा भी सीधा सीधा होगा। उपनगरीय जोन का अलग और मुख्य मार्गोंका अलग। चूँकि दोनो मार्गोंकी समस्या, जरूरतें भिन्न भिन्न है और इनका स्टाफ़ भी अलग अलग है, लेकिन दो अलग क्षेत्रीय रेल में बटा है। एक तरफ पश्चिम रेलवे का उपनगरीय स्टाफ़, समस्या, जरूरतें और दूसरी तरफ मध्य रेलवे का यही सब। साथ ही दोनोंके अलग अलग मुम्बई डिवीजन मुख्य मार्गोंका भी बोझ उठाते है।
जाहिर से बात है, दोनोंके उपनगरीय रेलवे के लिए एक ही क्षेत्रीय रेलवे का गठन कर के, मुख्य मार्ग की व्यवस्था निकटतम डिवीजन को सौंप दी जानी चाहिए। मध्य रेल एवं पश्चिम रेल के मुख्यालय भी मुम्बई के बजाए पास ही के दूसरे शहर में कर दिए जाने चाहिए। हम मानते है यह बहोत गहन अध्ययन का विषय है, लेकिन मुम्बई पर पड़ते बोझ को देखते इस विषय में आगे सोचना उचित होगा।