23 मार्च 2020 यह तारीख रेलवे के इतिहास में दर्ज हो चुकी है। इसी दिन से सभी रेलगाड़ियोंके पहिए थम गए थे। क्या पसेंजर, मेल एक्सप्रेस, सुपरफास्ट और क्या मालगाड़ियाँ। सब की सब ठप्प। बड़ा निर्णय था, संक्रमण को रोकने के लिए, देश की धमनी को नियंत्रित करने का। तमाम देशवासी सकते में आ गए, लेकिन रुकना यहीं समझदारी थी।
12 मई 2020 से 15 जोड़ी राजधानी एक्सप्रेस गाड़ियाँ खोली गई। मालगाड़ियाँ, पार्सल गाड़ियाँ जरूरत के हिसाब से चलाई जा रही थी। रेलवे के आधे से ज्यादा कर्मी घर बैठ गए थे। कार्यालयीन कर्मचारियोंकी बात छोड़िए, लाइन ड्यूटी स्टाफ़, गार्ड्स, लोको पायलट को भी सप्ताह के एखाद-दुखाद दिन बुलावा आता था। धीरे धीरे श्रमिक गाड़ियोंसे और 100 जोड़ी गाड़ियोंसे यात्री गाड़ियाँ बढ़ने लगी। यात्रिओंमें डर तो था लेकिन अटके पड़े लोग अपने घरोंके लिए रेल का सहारा लेने लगे।
अनलॉक शुरू हुवा, गाड़ियाँ बढ़ने लगी, यात्री व्यापार व्यवसाय और रोजगार के लिए कामोंपर लौटने लगे। लेकिन रेलवे ने यात्रिओंपर आरक्षण का निर्बंध लगा रखा जो आज की तारीख में भी जारी है। फजूलमे कोई भी रेलवे स्टेशनोंपर, उसके दायरोंमें प्रवेश नही कर पा रहा था। गाड़ियोंमे जनरल टिकट भी आरक्षण व्यवस्था में, द्वितीय श्रेणी सिटिंग में बदल गया। हर डिब्बेमें जितनी यात्री व्यवस्था उतने ही यात्री। प्रतिक्षासूची टिकट धारकोंकी छुट्टी हो गयी, साथ ही सीजन पास धारी, सलाम दुवा कर यात्रा करनेवाले सब के सब रेल यात्रा से परे हो गए।
ऐसी व्यवस्थाओंमें रेलवे स्टेशन, प्लेटफार्म और रेलगाड़ियाँ गजब की साफसुथरी रहने लगी। अतिरिक्त यात्री नही, प्लेटफॉर्मोंपर मिलने जुलने छोड़ने वाले नही, धूम मचाने वाले बिक्रेता नही, सब शांतिपूर्ण माहौल। इसी बीच रेलवे ने अपने सुधार कार्यक्रमोपर जोर दिया। प्लेटफॉर्म, पटरी, पुलिया दुरुस्त कर लिए। जो जो चीजे उन्हें प्रतिबंधित करनी थी, गले की हड्डी बनी थी उन पर कन्ट्रोल आते जा रहा था। अनाधिकृत प्रवेश पर काफी हद तक काबू पा लिया गया है। झीरो बेस टाइम्टेबलिंग में कई सवारी गाड़ियाँ बन्द होने वाली है, स्टापेजेस रद्द होने वाले है वह सब इन संक्रमण काल के रेल बन्द अवस्था मे यात्रिओंके गले उतर गया है। 23 मार्च से तमाम गाड़ियाँ बन्द होने के बाद अब जब भी कोई गाड़ी शुरू होने की घोषणा होती है तो यात्री और यात्री संगठन ऐसे प्रतिक्रिया देते है की जैसे उन्हें कोई नई गाड़ी ही मिलने जा रही हो। यह ठीक वैसे है, तमाम व्यवस्था छीनी जाने के बाद एखाद बून्द टपके तो मुर्दे में जान आती हो। यात्री संगठन की सवारी गाड़ियोंके बारे मे चर्चा लगभग बन्द हो चुकी है। छोटे स्टेशनोंके यात्रिओंमे परिवहन बदल चुका है, सभीने पर्यायी व्यवस्था ढूंढ ली है। नाराजी ही सही लेकिन सीजन पास वाले भी अलग यातायात अपनाकर रोजमर्रा निर्वाह में लग चुके है। प्रतिक्षासूची रेलगाड़ियोंसे गायब हो चुकी है।☺️
रेलवे स्टेशनोंके विक्रेता आज भी अपनी रोजन्दारी जो घटकर 25 प्रतिशत भी नही रही, परिस्थितियों के बदलने की राह जोत रहे है। बुकस्टाल के ताले जो मार्च के लॉक डाउन से लगे आज भी नही खुले है। रेल गाड़ियाँ तो पटरियोंपर आती जा रही लेकिन रेलवे पर निर्भर लोगोंकी जिंदगी अभी भी डिरेल याने पटरीपर लौटी नही है। रेलवे अपने मालगाड़ियाँ, सामान लदान में डेढ़ गुना, दोगुना इजाफा बता अपनी पीठ थपथपा रही है, लेकिन यात्री ट्रैफिक का घाटा, उसका कोई जिक्र तक नही है। कर्मचारियोंमें एक अजीबसी उदासी है और यात्रिओंमें रेल यात्रा करनेमे सम्भ्रम। बिल्कुल जरूरी हो तो रेल यात्राएं की जा रही है। हौशी, उत्साही पर्यटक आज भी अपने घरोमे ही है। सब कुछ अब भी सुना सुना है।
Nice
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थैक्स दा।
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