समयसारणी की कवायद जारी है, यात्रीगण कृपया वेबसाईटोंका, हेल्पलाइनोंका सहारा ले।
एक बात तो यात्रिओंको समझ आ जानी चाहिए, की रेलवे को यात्रिओंकी बिल्कुल ही पड़ी नही है। आए दिन एक नोटिफिकेशन जारी होता है, फलाँ गाड़ी का समय अब यह होगा, धड़ से आधे घंटे इधर या 2 घंटे उधर कर दिया जाता है।
अभी हाल ही में देखिए 06527/28 बेंगालुरु नई दिल्ली बेंगालुरु कर्णाटक एक्सप्रेस से समय मे बदलाव किया गया। संक्रमण के बाद यह तीसरा बदलाव है। 09045/46 तापीगंगा, 01093/94 महानगरी, 02629/30 संपर्क क्रांति, 02715/16 सचखण्ड एक्सप्रेस ऐसी कई गाड़ियाँ है जिनमे एक परीपत्रक निकाल बदलाव किए जा रहे है।
रेल प्रशासन यात्रिओंकी समस्या समझना चाहता ही नही। हमारे देश मे आज भी कई यात्री गाड़ियोंको नाम या उनके स्टेशनोंके बीच चलने से पहचानते है। आज भी 05017/18 गोरखपुर एक्सप्रेस को “काशी” और 01015/16 कुशीनगर को “बीना” कहते है।03201/02 को जनता एक्सप्रेस कहते है तो इलाहाबाद को कब की भूल चुकी 02321/22 मुम्बई हावडा मेल को इलाहाबाद मेल कर के जानते है।
ऐसे में रेल प्रशासन आम जनता को तकनीकी भाषा मे, ट्रेन नम्बर्स के द्वारा समझाने का प्रयास करती है। कुछ लोग गाड़ियोंको नम्बर्स से जानते है लेकिन उनके जमाने के। आजभी पंजाब मेल को 5 डाउन, 6 अप और हावडा मुम्बई मेल वाया नागपुर को 1 डाउन, 2 अप और गोरखपुर एक्सप्रेस को 27 डाउन कहते है। (27 डाउन नाम से एक हिन्दी फ़िल्म भी आयी थी, जो इसी रेलवे कर्मचारी के दिनचर्या पर आधारित थी।) इन गाड़ियोंके नामों, नम्बर्स इस कदर, लोगोंके दिमाग मे फिट हो चुके है, की इनका ज़िक्र होते ही उनके शेड्यूल्स, टाइमिंग्ज उनकी नजरोंके सामने आ जाते है। ऐसे में किसी गाड़ी के समय मे भारी बदलाव किया जाता है तो आम लोंगोंकी मानसिकता हिल जाती है, उन्हें आश्चर्य का धक्का लगता है। इसे वह रेलवे के परिचालन का भाग समझ ज्योंही अपनाने की कोशिश करने लगता है की रेलवे फौरन दूसरा परीपत्रक निकाल और किसी बदलाव की घोषणा कर देती है।
तकलीफ़ यह है, रेलवे ने वर्ष 2019-20 के लिए हर वर्ष के अनुसार अपनी नियमित समयसारणी जारी की थी, जिसे 30 जून 2020 तक अंमल में रहना था। लेकिन संक्रमण में सारा शेड्यूल गड़बड़ा गया। सारी गाड़ियाँ बन्द क्या रही, फिर चली तो अलग नम्बर्स के साथ, विशेष गाड़ियोंके तौर पर चलाई गई। कुछ गाड़ियाँ फेस्टिवल याने त्यौहार विशेष के तौर पर सीमित अवधीके लिए घोषित की गई। जिनकी अवधि कितनी सीमित है यह तो रेल प्रशासन ही जाने, क्योंकि आए दिन इनकी भी अवधियोंमे विस्तार किए जाने की खबर मीडिया के जरिए रेलवे प्रकाशित करती रहती है।
बीचमे झीरो बेस टाइमटेबल का ऐसा बवाल मीडिया में आया था, गाड़ियाँ रद्द हो जायेगी, स्टापेजेस रद्द हो जाएंगे। कुछ गाड़ियोंके समयोंमे भारी बदलाव किया गया है तो उसे भी लोगोंने झीरो बेस टाइमिंग्ज से जोड़ दिया था। हालाँकि रेल प्रशासन ने इसे सिरे से खारिज कर दिया कि अभी झीरो बेस टाइमटेबल गाड़ियोंपर लागू नही किया है। लेकिन झीरो बेस के अवधारणा मुताबिक आज भी सवारी गाड़ियाँ कई क्षेत्रोंमें शुरू नही की गई है और न ही द्वितीय श्रेणी की टिकटें शुरू हो पायी है। अब इसे झीरो बेस टाइमटेबल का परिणाम समझें की संक्रमण से बचाव की रेल प्रशासन की नीति? बड़ा असमंजस है।
भारतीय रेलवे एक केंद्रीय संस्थान है, जिसके 17 क्षेत्रीय मुख्यालय और करीबन 80 विभागीय मुख्यालय है। हर दफ्तर ट्विटर पर अपने अपने क्षेत्र की यात्री रेल के बदलावोंकी जानकारी प्रस्तुत करते रहता है। कई बार तो ऐसा होता है की जानकारी किसी एक विभाग तक सीमित स्वरूप में टुकड़ों टुकड़ों में ही जनता के सामने आती है, एकत्रित या विस्तारपूर्वक जानने के लिए उसे रेलवे की वेबसाईटोंका सहारा लेना पड़ता है। और तो और अलग अलग क्षेत्र की जानकारियोंमे फर्क भी होता है। रेल प्रशासन को चाहिए की अपनी जानकारियोंको, एकत्रित स्वरूप में उपलब्ध कराए, परीपत्रक निकले तो गाडीके पूर्ण शेड्यूल सहित निकले, सीमित या संक्षिप्त स्वरूप में नही। इससे यात्रीयोंमे सम्भ्रम की स्थिति नही रहेगी और जो भी जानकारी उसे मिलेगी उसे फिर से या बार बार पुष्टीकरण की जरूरत नही होगी।
वैसे रेलवे के इस संक्रमणकाल की एहतियातन सेवाओंसे रेल यात्री को ज्यादा ही परेशानी होने लगी है। बाजार खुल गए है, स्कूल, कॉलेज शिक्षा संस्थान खुल गए है अब रेलवे भी अपने नियमित स्वरूप में आ जाए तो अच्छा होगा। विशेष और त्यौहार विशेष, केवल आरक्षित गाड़ियाँ और हर बात पर पाबंदियां यह वास्तविक यात्रिओंके लिए दुविधाएँ उत्पन्न कर रही है। यह बात उतनी ही कडवी है, की आम यात्री को रेल यात्रा करने में कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है और गैरकानूनी तरीकेसे अवैध विक्रेता बड़ी आसानीसे रेल गाड़ियोंमे अपना व्यवसाय कर रहे है। आशा है, रेल प्रशासन, आम यात्रिओंके हक में जल्द ही कोई उचित निर्णय ले।