“आंधो पिसे ने कुत्तों खावे” यह कहावत है। इसका मतलब यह है क्या चल रहा है किसी को समझ न आए। एक अंधा पिसा जा रहा है और उसके बाजू में बैठ कुत्ता उसे खाए जा रहा है। अंध व्यक्ति को लग रहा है वह ढेर काम कर के अनाज पीस रहा है लेकिन उसे पता ही नही की उसे कुत्ता चट करे जा रहा है।
लगभग यही स्थिति आज रेल विभाग की हो गयी है। बिना समयसारणी के ढेर गाड़ियाँ रेल प्रशासन की ओर से चलाई जा रही है। परीपत्रक जारी कर दिए जाते है। लाखों रुपए न्यूजपेपर में परिपत्रकोंको छपवाने लगाए जा रहे है। सोशल मीडिया में हर रोज अलग अलग क्षेत्रिय रेलवे अपनी एक एक गाड़ी के बारेमे, कभी समय बदल गए, कभी विस्तार किया तो कभी फेरे बढाए गए ऐसे परीपत्रक डाल देता है। यात्री के मन मे यह डर बैठ गया है, की उसकी गाड़ी, जिसमे उसने अपनी टिकट बुक कर रखी है, कौनसे समय पर चलेगी? कब पोहोचेगी?
दूसरी विशेष बात यह है, परीपत्रक अत्यंत लापरवाही से प्रकाशित किए जा रहे है। बहुतांश परिपत्रकोंमें गाड़ियोंके नम्बर्स और स्टेशनोंके कोड्स दिए रहते है। रेल प्रशासन यह परीपत्रक आम लोगोंके लिए प्रकाशित कर रही है या अपने कर्मचारियों के लिए? क्योंकी ट्रेन नम्बर्स या स्टेशनोंके कोड्स आम आदमी थोड़े ही समझता है? दक्षिण पश्चिम रेलवे के हुब्बाली डिवीजन के परीपत्रक @drmubl के ट्विटर हैंडल से जारी किए जा रहे है, आप देख सकते है, अधूरे है। गाड़ियोंके समय मे बदलाव की खबर दे रहे, लेकिन किसी भी परीपत्रक में गाड़ी के परिचालन का दिन नही दिया गया है। कुछ उदाहरण के लिए ट्वीट्स दे रहे है,





इसे आम यात्री क्या और कैसे समझे? पहले परीपत्रक देखे, फिर रेलवे की वेबसाइट खोले, उसका टाइमटेबल देखे, फिर उससे टैली करे कि क्या बदलाव किया गया है। यदि उसके शहर में रेलवे के समयानुसार यदि फेरोंका दिन, तारीख बदल रही है तो नए बदलाव के बाद अब तारीख और दिन क्या रहेगा? हे भगवान! क्या दक्षिण पश्चिम रेलवे या DRM हुबली इन्होंने परीपत्रक किस तरह देने चाहिए यह सोचा नही?
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है, की रेल प्रशासन ही अपने यात्रिओंके प्रति सजग नही है। आखिर कब तक ऐसे परिपत्रकोंके सहारे पूरी भारतीय रेल को चलाने वाला है? प्रशासन की एक दलील है, हम आरक्षित यात्री को sms भेज देते है। लेकिन क्या आपको पता है, उसने वह मेसेज देखा या नही? छोड़िए पहले उसे वह मेसेज मिला भी है या नही इसका आपको पता नही तो बताइए यात्री के प्रति रेलवे की जवाबदेही कैसी?
आए दिन यात्री गाड़ियोंके परिचालन में बदलाव कर के रेलवे करना क्या चाहता है, यही आम यात्री के समझ के बाहर की बात हो गयी है। एक तरफ धड़ाधड़ बदलाव, दूसरी तरफ आधेअधुरे संभ्रमित करने वाले परीपत्रक, क्या रेलवे चाहती है, की यात्री परेशान होकर रेलवे से यात्रा करना ही छोड़ दे? 12 मई से गाड़ियाँ पटरियोंपर आ गयी थी, आठ महीने हो गए लेकिन अभी रेल प्रशासन की कार्यप्रणाली पटरी पर नही आयी है, अभी भी रेलवे के पास अपनी गाड़ियाँ चलाने का कोई ठोस कार्यक्रम नही है और यह बेहद लज्जास्पद बात है।