अनलॉक के 4-5 स्तर हो चुके है, 80-90 प्रतिशत रेल गाड़ियाँ भी चल पड़ी है। लम्बी दुरियोंके यात्रिओंकी रेल यात्रा करने की समस्या लगभग खत्म हो चुकी है। वह लोग अपना आरक्षण कर रेल में यात्रा कर लेते है। लेकिन कम दूरी की रेल यात्रा करनेवाले रेल यात्रिओंका क्या? उन की समस्याओं पर कोई ध्यान क्यों नही दे रहा है?
संक्रमण पूर्व काल मे हजारों संख्या में छोटे दूरी के यात्रिओंके लिए रेल यह एक मात्र किफायती विकल्प था। पासपड़ोस के शहरोंमें अपनी रोजीरोटी कमाने के लिए जानेवाले मजदूर वर्गसे लेकर छोटी मोटी नौकरी करने वाले कमर्चारी तक और स्कूल कॉलेज क्लासेस करनेवाले विद्यार्थियों से लेकर छोटा बड़ा व्यापार करनेवाले व्यवसायी तक रेलवे से रोजाना यात्रा किया करते थे। संक्रमणकाल में रेलवे क्या बन्द हुई इन लोगोंका तो रेल सेवा से नाता ही टूट गया। मई महिनेसे रेलवे सिलसिलेवार चल निकली है, लेकिन 8 माह बीतने को है मगर इन लोंगोंकी समस्या जस की तस है। दुकानें, व्यवसाय खुल गए है, उद्योग कारखाने चल पड़े है लेकिन छोटा व्यवसायी वस्तुतः सडकोंपर घूम रहा है। यज्ञपी स्कूल कॉलेजेस की पढ़ाई घरोंसे चल रही है मगर सारे क्लासेस तो ऑनलाइन नही है न? कहीं न कही विद्यार्थी भी परेशान है।
उद्योग संस्थानों, कारखानों के कर्मचारी, कुशल और अकुशल कारीगर रेल सेवा के अभाव में बेहद परेशान है। यह लोग संघटित न होने की वजह से इनकी समस्याओंकी चर्चा तक नही होती। पहले 200 से 500 रुपए प्रतिमाह की सीजन पास निकाल कर यह लोग पास के शहरोंमें अपने रोजगार पर जानाआना कर लेते थे। इस जाने आने को रोजमर्रा की भाषा मे अप डाउन कहा जाता है। यह अप डाउन का खर्च, इनकी कमाई के मात्र 5 प्रतिशत माहवार बैठता था जो की खर्च करना बहोत सहज था मगर यही अप डाउन रेल से हटाकर सड़क मार्ग से, बाइक या बस द्वारा किया जाता है तो बढ़कर 30 से 50 फीसदी चला जाता है। बताइए इसमें इन्सान कमाएगा क्या और खाएगा क्या?
कुछ यही बात छोटे व्यापारियों की भी है। पास के शहरोंसे माल सामान लाकर अपना व्यवसाय करनेवाले यह लोग अपना सारा मार्जिन यातायात में खर्च नही न कर सकते है? विद्यार्थियों को भी अब ऑनलाइन प्रशिक्षण और क्लासरूम के शिक्षा का फर्क समझ आने लगा है, प्रत्यक्ष शिक्षक से बातचीत की बात ही कुछ और है। इतनी सारी समस्याओंकी सूची है, यह सब केवल छोटी दूरी की रेल यात्रा बन्द होने की वजह से चल रही है।
जिस 25 किलोमीटर की सीजन पास के महीने का खर्च 195 रुपए है उसे एक दिशा की यात्रा के 30 रुपए और आरक्षण के 15, ऐसे कुल 45 रुपए जाने के और 45 रुपये आने याने एक दिन के 90 रुपए कौन खर्च कर सकता है भला? उसमे भी द्वितीय श्रेणी सिटिंग जो की सबसे किफायती वर्ग है, आरक्षण उपलब्ध ही नही रहता। स्लिपर के किराए और दुगुने है। रोज आरक्षण कर यात्रा करना इन अप डाउन करनेवालोंके लिए कदापि सम्भव नही है, सोचा ही नही जा सकता।
इसका हल कैसे हो :
किसी भी तरह पास के अन्तरोंमें चलनेवाली गाड़ियाँ शुरू की जानी चाहिए। द्वितीय श्रेणी तिकीटोंकी व्यवस्था बहाल हो। सीजन पास सेवा भी जल्द शुरू की जाए। यह एकदम सीधी माँग इन लोगोंके द्वारा की गई है। क्या यह सम्भव है? क्या प्रशासन को यह डर है की इससे रेल गाड़ियोंमे भीड़ बढ़ेगी और संक्रमण का खतरा ज्यादा होगा? तो इसके लिए उपाय किए जा सकते है। प्रायोगिक तौर पर मेमू, डेमू गाड़ियाँ केवल सीजन पासधारक के लिए ही शुरू की जा सकती है। नई व्यवस्थाओंके साथ, सीजन पास जारी करते वक्त रेल प्रशासन संक्रमण की जांच का प्रमाणपत्र अनिवार्य कर सकती है। वैसे भी सीजन पासधारक अपनी फोटो आइडेंटिटी के साथ यात्रा करता है, याने कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग की भी परेशानी नही होगी। सीजन पास जारी करते वक्त या हर नवीनीकरण के वक्त यात्री से संक्रमण की कोई बाधा नही है ऐसा शपथपत्र लिया जा सकता है।
कुछ यात्री संगठन से चर्चा किए जाने पर यह पता चलता है की, अप डाउन करने वाले यात्री रेल यात्रा बन्द होने की स्थिति में बेहद परेशान है। वह चाहते है, किसी सूरत में सीजन पास व्यवस्था फिर से बहाल की जाए। उपरोक्त सुझाव उनके साथ कि गयी चर्चा की ही उत्पत्ति, नतीजा है। आशा है रेल अधिकारी, राज्य शासन इन यात्रिओंकी माँगोपर सहानुभूति पूर्वक विचार कर, रोज की परेशानी, समस्याओंसे इनको निजात दिला पायेंगे।