रेल प्रशासन ने शून्याधारित समयसारणी की संकल्पना में यह बात पहले ही तय कर ली गयी थी की वे अब कोई भी लिंक एक्सप्रेस नही चलायेंगे।
लिंक एक्सप्रेस की संकल्पना बहोत उपयोगी है। जबसे भारतीय रेल चल रही है, तब से ही ऐसी लिंक एक्सप्रेस चली आ रही है। पहले ज्यादा गाड़ियाँ नही चलती थी। मुख्य रेल मार्गोंपर एखाद दो एक्सप्रेस और एक मेल रहती थी बाकी छोटे छोटे अंतर की सवारी गाड़ियाँ। उसमे भी ब्रांच लाइनोंपर तो पक्का सवारी गाड़ियाँ ही चलती थी, वह कभी भी मुख्य मार्ग पर जंक्शनोंसे आगे नही चलाई जाती थी। उदाहरण के लिए सूरत – भुसावल ब्रांच लाइन लीजिए। इस मार्गपर सूरत से भुसावल के बीच वर्षोंतक 3 जोड़ी सवारी गाडीही चलती थी। जिन यात्रिओंको लम्बा सफर करना होता वह जंक्शन्स पर रुककर दूसरी गाड़ी पकड़ अपनी यात्रा करते थे।
लिंक एक्सप्रेस की संकल्पना भी तब ही से चली मुख्य मार्ग की गाड़ी के कुछ डिब्बे निकाल कर ब्रांच लाइनपर एक अलग गाड़ी चलाई जाती थी जो दूरदराज के क्षेत्रोंकी सम्पर्कता मुख्य मार्गसे बनाए रखती थी। उत्तर भारत मे बहोत सारी छोटी छोटी ब्रांच लाइनें है, जिन्हें अलगसे रेल गाड़ी द्वारा जोड़ने में दिक्कतें थी अतः वैसी जगहोंपर लिंक एक्सप्रेस चलती थी। इसके लिए आप मध्य रेलवे की उत्तर भारत मे जानेवाली साकेत एक्सप्रेस का उदाहरण लीजिए। लोकमान्य तिलक टर्मिनस से फैजाबाद मुख्य गाड़ी 11067 चलती है, जिसके कुछ डिब्बे प्रतापगढ़ स्टेशनपर निकलकर 21067 गाड़ी क्रमांक से रायबरेली जाते है और बची हुई गाड़ी फैजाबाद जाती है। यह सारी व्यवस्था इसी प्रकार से वापसी में भी होती है। गाड़ी का एक हिस्सा रायबरेली लिंक एक्सप्रेस के नाम से प्रतापगढ़ आता है और मुख्य गाड़ी फैजाबाद लोकमान्य तिलक टर्मिनस साकेत एक्सप्रेस मयू जुड़ कर सीधा मुम्बई को आता है। अब आपको लिंक एक्सप्रेस की संकल्पना समझ आ गयी होगी। इसी तरह 02779/80 निजामुद्दीन वास्को गोवा एक्सप्रेस में लोंडा स्टेशनपर 4 डिब्बे निकलकर 07305/06 हुब्बाली लिंक एक्सप्रेस बनकर हुब्बाली के लिए चलते थे और इस तरह हुब्बाली की दिल्ली से सीधी सम्पर्कता हो जाती थी।
रेलवे इन लिंक एक्सप्रेस से परेशानी क्या थी अब वह भी जान लीजिए। जैसे ही गाड़ी लोंडा स्टेशन पर पोहोचती, मुख्य गाड़ी के 4 डिब्बों की शंटिंग याने उन्हें मुख्य गाडीसे अलग करना और उसे लिंक एक्सप्रेस बनाना इसमें मुख्य गाडीका बहोत सारा समय जाया होता था। साथही रेल की 2 लाईनें ब्लॉक हो जाती थी, बड़ी संख्यामे कर्मचारी वर्ग इस जोड़ तोड़ में अटकता था। इसके बाद गाड़ियोंका वैक्यूम ब्रेक प्रेशर आने में काफी वक्त तक इंतजार करना पड़ता था। दूसरा रेलवे के आधुनिकीकरण के चलते LHB डिब्बों का शंटिंग नही किया जा सकता था, उसकी एक अलग ही समस्या थी, LHB डिब्बों की लाइटिंग सिस्टम। यह व्यवस्था गाड़ी के अंतिम सिरे पर लगे जनरेटर से चलती है। ऐसेमें बताइए किस तरह डिब्बों को काटा और जोड़ा जा सकता है?
ऐसी ढेर समस्याओंका रेल प्रशासन ने एक ही इलाज निकाला, लिंक एक्सप्रेस को बन्द कर देना। इसके ऐवज में ब्रांच लाइनोंसे अलग से रेल गाड़ियाँ चलाने का प्रावधान रखा गया है। शायद इसीलिए कर्णाटक सम्पर्क क्रांति एक्सप्रेस जो सप्ताह में 5 दिन यशवंतपुर से निजामुद्दीन के बीच चलती है, मार्ग परिवर्तन कर के हुब्बाली होकर चलाई जाएगी।
इस पर के लेख की लिंक यहाँपर दे रहे है https://wp.me/pajx4R-1yM
इस तरह गोवा एक्सप्रेस की हुब्बाली लिंक 11/13 जनवरीसे सदा के लिए बन्द की जा रही है।
