संक्रमण काल के रेल बन्द के बाद, 12 मई से रेल गाड़ियाँ पटरियों पर दौड़ना शुरू हो गयी और लगातार इनकी संख्या बढ़ती चली जा रही है। लम्बी रेल यात्रा करनेवाले यात्रिओंकी तो हर तरह से सुविधा हो गयी मगर छोटे अन्तरोंमें और प्रतिदिन रेल यात्रा करने वालोंका क्या?
आम तौर पर रेल में लम्बी दूरी की यात्रा करनेवाले यात्री अपनी यात्रा आरक्षण कर के ही किया करते है, अतः उनको विद्यमान “सिर्फ आरक्षित यात्री ही रेल में यात्रा कर पाएंगे” इस रेल प्रशासन के नियम से कोई परेशानी नही है उल्टा उनको प्रतिदिन अप डाउन करनेवालोंकी भीड़ से निजात ही मिली है। परन्तु यह अप डाउन वाले बेचारे जाए कहाँ? किससे लगाए अपने सहायता की गुहार?
इस विषयपर हम बार बार अपने ब्लॉग के जरिए रेल प्रशासन को इन यात्रिओंकी मदत कीये जाने की दुहाई दे चुके है। सारी गाड़ियोंमे आरक्षित टिकट धारक ही यात्रा कर पा रहे है। द्वितीय श्रेणी टिकिटिंग सर्वथा बन्द कर दी गयी है तो मासिक पासधारी यात्री की तो सुनवाई ही नही। रेल यात्रा की अनुमति न होने के कारण यह बेचारे महीनेभर का अग्रिम यात्री किराया दे कर यात्रा करनेवाले लोग सड़क मार्ग से महंगी और असुरक्षित यात्रा करने के लिए मजबूर है। बहुतांश भारत मे यही स्थिति है। कई क्षेत्र में यह लोग संगठित न होने के कारण इनकी मांग जाहिर तक नही हो पा रही है।
आज यह विषय दोबारा यहाँपर लाने का कारण है, दौंड – पुणे खण्डपर सवारी, डेमू, मेमू की बहाली हो इस लिए वहाँकी स्थानिक रेल यात्री संघ का रेल रोको आंदोलन की चेतावनी देना यह है। किसी भी रेल प्रेमी व्यक्तियोंको रेल को असंवैधानिक तरिकोंसे रोका जाए यह कदापि अच्छा नही लगता इससे न सिर्फ उस क्षेत्र के रेल परिचालन बाधित होते है, बल्कि हमारे नैशनल करियर भारतीय रेल की प्रतिमा भी मलिन होती है। लेकिन एक तरफ दक्षिण पश्चिम रेलवे, उत्तर पूर्व रेलवे, पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे, पूर्व रेलवे, दक्षिण पूर्व और दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे में कम दूरी वाली गाड़ियाँ शुरू कर दी गयी है, द्वितीय श्रेणी टिकट के काउंटर्स खोल, बिक्री शुरू हो गयी है, यहाँतक की प्लेटफार्म टिकट भी 10/- रुपए में मिलना शुरू हो गए है। तब बाकी बचे क्षेत्रीय रेलोंमें यह सारी व्यवस्था शुरू करने में क्या परेशानी है?
माना की सवारी गाड़ियाँ नही चलाई जा रही, उन्हें भी एक्सप्रेस बनाकर चलाया जा रहा है परंतु कुछ तो व्यवस्था है, की कम दूरी वाले यात्री रेल से यात्रा तो कर पा रहे है। स्थानिक सांसद अब इन यात्रिओंकी बात लेकर रेल प्रशासन से बातचीत कर रहे है। रेल प्रशासन आन्दोलकों को रेल रोको नही किया जाए ऐसी अपील कर रहा है। लेकिन हमारा प्रश्न फिर से यही है, प्रशासन यात्रिओंकी मजबूरी क्यों नही समझता, क्या उसे आंदोलन कराना ही मन्जूर है?



उपरोक्त तस्वीरे, अखबार दैनिक लोकमत, पुणे सकाळ indiarailinfo.com से साभार