अभी रेल बजट पर चर्चा और खास कर के तब जब तक पिंक बुक न मिले, उन मुद्दोंपर की हमारे क्षेत्र को क्या मिला, नही मिला सर्वथा व्यर्थ है।
1 लाख दस हजार करोड़ रुपए का निधि इस बजट में रेलवे को दिया गया है, जिसमे भी 99.5% निधि केवल और केवल इन्फ्रास्ट्रक्चर के खाते गया है। तब आप यह समझ सकते है की रेलवे का क्या विजन है। रेलवे अब अपना अन्दाज बदल रही है। यात्री वहन चलाना यह रेल्वेज का मुख्य काम है ही नही। अपनी इतिहास की पढ़ाई याद कीजिए, ब्रिटिशोने भारत मे रेलवे का निर्माण क्यों किया था, माल वहन के लिए और सैन्य मूवमेंट के लिए। लेकिन आज वर्षोंसे हम लोग रेलवे को केवल यात्री सुविधाओंके लिए ही समझते जा रहे है। यहाँतक की आज के कई अखबारोंके पन्ने पर भी स्थानीय उत्साही पत्रकारोंके लेख में आपको यही बाते पढ़ने मिलेगी। यात्री सुविधा में क्या बढ़ा और क्या घटा, और क्यो न हो? हम आम लोग भी यही तो चाहते है!
लेकिन अब भारतीय रेल को अपनी शक्ति और सामर्थ्य का एहसास हो चला है। संक्रमण काल मे भारतीय रेलवे ने पार्सल और माल वहन में झंडे गाड़े, नए नए आयाम स्थापित किए। विभिन्न प्रकार की कमोडिटीज का वहन किया गया। खाद्यान्न, फल, सब्जियाँ, मोटर गाड़ियाँ इन सुचियोंमे नए जोड़े गये। रेलवे के समर्पित मालवहन गलियारोंके पश्चिम और पूर्व गलियारोंके निर्माण कार्य को पुष्टि मिली की वे सही दिशा में कदम बढ़ाने जा रहे। अलग अलग जगहोंके मालवहन समर्पित गलियारोंकी घोषणा की गई। भुसावल – खड़कपुर उसी की उत्पत्ती है। इस गलियारे की घोषणा को भुसावल के केला वहन से जोड़ना कोरी मूर्खता स्थानिक लोग करते है तो ऐसी सोच पर तरस आता है। भुसावल – खड़कपुर गलियारा मुम्बई कोलकाता इन दो प्रमुख बंदरगाहों को जोड़ने का काम करेगा और ऐसे क्षेत्रोंसे गुजरेगा जहाँ खनिजोंकी भरमार है। कोयला, लौह अयस्क और क्या क्या।
आप यह समझकर चले, यात्री सुविधाओंकी कमी तो नही होगी लेकिन माल वहन अब भारतीय रेल में प्राथमिक स्थान ले लेगा। रेल बजट देखने का यह दृष्टिकोण रखेंगे तो यह बड़ी आसानी से समझ आ जायेगा। तब किराया, कन्सेशन, यात्री गाड़ियाँ, प्लेटफॉर्म सुविधाए सब विषय अलग हो जाते है। डेढ़ सौ निजी गाड़ियाँ, पाँचसौ से ज्यादा स्टेशनोंपर डेवलपमेंट चार्जेस, स्टेशनोंके सुविधाओंके निजीकरण का तथ्य भी इसी नज़रिए से समझने की जरूरत है की प्राथमिकताए बदली जा चुकी है।