मई महीने से राजधानियोंसे शुरू की गयी इयात्री रेल सेवा थोड़े थोड़े अन्तराल में बढ़ती गयी और अब साठ प्रतिशत से भी ज्यादा रेलगाड़ियाँ चलने लगे गयी है। उपनगरीय गाड़ियाँ और मेट्रो सेवाएं अपनी लगभग पूरी क्षमता से और इतर मेल/एक्सप्रेस सेवांए भी जरूरत और मांग के अनुपात में बढ़ती चली जा रही है।
इन सब के बीच यात्री अपनी आसपास की सम्पर्कता बनाए रखनेवाली सवारी गाड़ियोंको बडा ही ‘मिस’ कर रहे है। दुसरा द्वितीय श्रेणी के टिकट, मासिक पास भी कई रेल खण्डोंपर आज भी बन्द है। आम नागरिक बहुतांश रेल यात्राएं अकस्मात होती है, अचानक ही बिना किसी पूर्वनियोजित के उसे कहीं जाना आवश्यक हो जाता है, ऐसी स्थितियोंमे उसका सहारा केवल सवारी गाड़ियाँ या मेल/एक्सप्रेस का द्वितीय श्रेणी वर्ग का टिकट यही होता है। ऐन समयपर लम्बी दूरी की गाड़ियोंमे आरक्षण उपलब्ध ही नही रहता या उनका चार्ट निकल चुका होता है। ऐसी स्थितियोंमे यात्री बेचारा क्या करे, क्योंकी द्वितीय श्रेणी टिकट, प्लेटफार्म टिकट सारे ही बन्द है। आकस्मिक रेल यात्रा के सारे रास्ते बंद किए जा चुके है। इधर फरवरी में रेल बजट की लम्बी चौड़ी करोडों वाली घोषणाओंके बीच आम यात्रिओंकी यह पुकार कही दब गई।
अब बजट में घोषित और लम्बित घोषणाओंपर, उनपर आबंटित निधियों पर सदन में चर्चा चलेगी। संक्रमणकाल में रेल प्रशासन ने जो नियमावली रेल यात्रिओंके लिए जारी की थी, उससे द्वितीय श्रेणी के अनारक्षित यात्री पर तो जबरदस्त प्रतिबंध लग गया। उससे फायदा यह हुवा की अनारक्षित यात्री रेल गाड़ियोंसे बिल्कुल गायब हो गए और स्लिपर डिब्बों, द्वितीय श्रेणी डिब्बों की भीड़ एकदम नियंत्रित हो गयी क्योंकि केवल आरक्षित टिकटधारक ही रेल यात्रा कर पा रहे थे। स्लिपर डिब्बों में न ही प्रतिक्षासूची के यात्री और न ही मासिक पास धारक। लम्बी दूरी की यात्रा करनेवाले, स्लिपर क्लास के यात्री तो इस व्यवस्था से बहोत खुश हो गए है, लेकिन आगे ऐसी व्यवस्था बरकरार रखना क्या तर्कसंगत रहेगा?
ऐसी चर्चा है, की रेल विभाग का एक धड़ा लम्बी दूरी की रेलगाड़ियोंके अनारक्षित श्रेणी को, इसके सुरक्षा और इतर फ़ायदोंके चलते, आगे भी आरक्षित द्वितीय श्रेणी (2S) में जारी रखना चाहता है। याने आगे भी लम्बी दूरी की गाड़ियोंके द्वितीय श्रेणी टिकट बिना आरक्षण उपलब्ध नही रहेंगे। अब प्रश्न यह है, लम्बी दूरी की गाड़ी याने कितने लम्बी दूरी की? क्योंकि बहुतांश लम्बी दूरी की गाड़ियाँ अभी भी हर 25-50 किलोमीटर के बाद स्टापेजेस ले ही रही है। रेल प्रशासन ने ज़ीरो टाइमटेबल पर काम तो करना शुरू किया है, करीबन दस हजार स्टापेजेस को रद्द करने का प्रस्ताव भी इसी योजना का भाग है और जहाँ स्टापेजेस रद्द होते है उन खाली जगहोंमे मेमू गाड़ियाँ चलाई जाएगी यह भी प्रस्तवित है। मगर यात्रिओंको जब तक दूसरी गाड़ियाँ उपलब्ध नही हो जाती या पर्यायी, वैकल्पिक व्यवस्था उपलब्ध नही हो जाती तब तक तो रद्द स्टापेजेस के निर्णय बदलने के लिए आन्दोलन, धरने, राजनीतिक दबाव सारे मार्ग स्थानीय यात्री सामने ले आते है। स्थानीय यात्रिओंको किसी विविक्षित रेल गाड़ी से ही यात्रा करनी है ऐसा नही है यदि उस गाड़ी के स्टापेजेस हटने के बाद कोई अन्य पर्याय रेलवे द्वारा हाजिर है तो उसे कोई दिक्कतें नही है मगर पर्याय पहले मिले तो यात्रिओंके मन मे अशान्तता क्यों भला घर करेगी?
रेल प्रशासन अपने मालगाड़ी के धन उत्पादक व्यवस्याय पर लक्ष केन्द्रित करना चाहता है। उसके लिए लगभग तमाम बजट की निधि का निन्यानवे प्रतिशत से भी ज्यादा का धन रेलवे की बुनियादी संसाधनोपर लगाने का प्रस्ताव है। दूसरी ओर देशभर में मालगाड़ियोंके लिए समर्पित गलियारोंकी घोषणाएं की जा चुकी है। यह बात सार्थक है की जब मालगाड़ियोंका परिचालन इन गलियारोंसे चलेगा तो यात्री गाड़ियोंके लिए जगह ही जगह रहेगी, लेकिन इसमें अभी काफी वक्त है। यह बात भी समझ आती है, की सारी योजनाओं का क्रियान्वयन टप्पे टप्पे से ही होगा। एक साथ लम्बी दूरी की गाड़ियोंके स्टापेजेस बन्द, उसी वक्त मेमू गाड़ियोंका संचालन, तभी मालगाड़ियोंका अलग मार्ग यह सब एक साथ तो नही ही होगा, लेकिन तब तक तो पुरानी व्यवस्थाए जारी रखी जा सकती है ना?
आम यात्रिओंकी यह भावनाएं है, लम्बी दूरी की हो या कोई और रेलवे स्टेशनोंमें द्वितीय श्रेणी टिकट मिलते रहने चाहिए। आखिर हर व्यक्ति को अपनी यात्रा के लिए, रेल में यात्रा करने का पर्याय उपलब्ध रहना चाहिए।