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जितने गाड़ियोंके प्रकार, उतनी ही ज्यादा संख्यामे किराया तालिका

क्या आप जानते है, भारतीय रेलवे कितनी तरह की यात्री गाड़ियाँ चलाता है? हाँ हाँ, अभी के वक्त की बात छोड़िए, अभी तो स्पेशल और महास्पेशल ☺️ याने त्यौहार स्पेशल ऐसे दो ही प्रकार की गाड़ियाँ चल रही है।

भारतीय रेलवे में पहले मेल/एक्सप्रेस और सवारी ऐसी केवल दो ही प्रकार की गाड़ियाँ चलती थी और किराया तालिका केवल एक होती थी जिसमे मेल/एक्सप्रेस और सवारी गाड़ियोंके विभिन्न वर्गोंके किराए की सूची रहती थी।

यथावकाश वर्ग बढ़े, स्लिपर, वातानुकूलित और फिर व्यस्त काल, लीन पीरियड याने कम भीड़ वाला समय इस तरह वर्गीकरण होता गया। मगर जब जब नए नए अलग अलग प्रदेशोंसे रेल मंत्री आते गए, अपनी अपनी छाप छोड़ने के लिए नए नए प्रकार की गाड़ियाँ शुरू करते गए। सबसे पहले रेल मंत्री मधु दण्डवते के काल मे सुपरफास्ट गाड़ियोंका अवतरण हुवा। गाड़ियाँ वहीं, डिब्बे वहीं फर्क यह की स्टापेजेस कम किए गए। यहाँतक ठीक था, किराया तालिका में सुपरफास्ट चार्ज अलग से जोडा जा सकता था, अलगसे किराया तालिका की जरूरत नही थी।

फिर आयी राजधानी एक्सप्रेस। इसकी संकल्पना यह थी, देश की राजधानी से राज्योंका तेज और आरामदायक सम्पर्क। पूर्णतयः वातानुकूलित, 500-500 किलोमीटर तक स्टापेजेस नही, गाड़ी के अंदर यात्री को बेडिंग, खानपान की उत्तम व्यवस्था, किरायोंमे सभी सम्मिलित। ऐसे में किराया तालिका अलग बनना स्वाभाविक ही था। अब मेल/एक्सप्रेस/सवारी की एक और राजधानी गाड़ियोंकी दूसरी ऐसी दो किराया तालिका बनी। हाँ! एक ओर विशेषता यह थी, की किराए स्टेशन से स्टेशन तक याने पॉइंट टू पॉइंट बेसिस पर तय किए जाने थे।

फिर राजधानी के तर्ज पर शताब्दी एक्सप्रेस का ईज़ाद हुवा। संकल्पना राज्य की राजधानी से सम्पर्क और वह भी एक ही दिन में जानाआना, याने इन्टरसिटी, वातानुकूलित, आरामदायक, यह भी पैंट्री कार खानपान सहित। फिर एक नई किराया तालिका।

फिर समाजवादी सोच के राजनैतिक रेल मंत्रालय में पधारे और उन्होंने आम जनता के लिए कई सारी विविध प्रकार की गाड़ियोंका अविष्कार किया। हर नई गाड़ी के लिए आम जनता को सामने रखा जाने लगा। शताब्दी के संकल्पना के मद्देनजर “जनशताब्दी” लायी गयी। जी हाँ इसकी भी अलग किराया तालिका बनी, भाई, आम जनता के लिए विशेष मगर मेल/एक्सप्रेस से थोड़ा ज्यादा और शताब्दी से कम।

रेल मंत्री लालू यादव तो “गरीबरथ” ही ले आए। क्यों भई, गरीब भी वातानुकूलित रेल गाड़ी से यात्रा करना चाहिए तो उसके लिए सामान्य वातानुकूलित थ्री टियर स्लिपर में बदलाव करके, साइड मिडल बर्थ बढ़ाकर किराए कम कर गरीबोंको भी मौका दिया गया, गौरतलब यह है, गरीबरथ में वाकई गरीब यात्री होते है? संशोधन का विषय है। एक अलग प्रकार की “युवा” एक्सप्रेस भी चल रही है, हालाँकि पूरे भारतीय रेल पर केवल 2 युवा एक्सप्रेस है। ☺️ हाँ, यहाँपर दोनों प्रकार में, किराया तालिका और अलगसे बढ़ी।

फिर नीतीशकुमार आए, इनका भी समाजवाद की तरफ झुकाव था अतः द्वितीय श्रेणी सिटिंग की अलग से गाड़ी लायी गयी “अंत्योदय एक्सप्रेस” इसका किराया भी अलग तालिका से चलता है। राजधानी एक्सप्रेस की तर्जपर “सम्पर्कक्रान्ति एक्सप्रेस” चली, जिस राज्य की सम्पर्क क्रान्ति केवल उसी राज्य में रुकेगी और राज्य के बाहर निकलते ही सीधे देश की राजधानी दिल्ली को जाकर खत्म होगी। लेकिन समय चलते और कुछ यात्रिओंकी माँग तो कही खाली चलना इन गाड़ियोंकी संकल्पना को बदला दिया और इनके स्टापेजेस बढ़ने लगे, एक्सटेंशन भी दिल्ली से आगे किए गए। हालांकि जैसे “जनसाधारण एक्सप्रेस” चली थी, उसी प्रकार इनकी भी कोई अलग किराया तालिका नही थी।

ममता दीदी रेल मंत्रालय में आई तो उन्होंने भी अपनी छाप के लिए “नॉनस्टॉप दुरन्तो” गाड़ियोंका अविष्कार लाया। यह “दुरन्तो” शायद हिन्दी के “तुरन्त” का बंगाली रूप है। जो भी है, मगर रेलवे में एक अलग किराया तालिका जरूर बना गया।

फिर आए प्रभु, सुरेश प्रभु। इन्होंने “हमसफ़र” सम्पूर्ण वातानुकूलित गाड़ी, “तेजस” सम्पूर्ण वातानुकूलित इन्टरसिटी, “उदय” सम्पूर्ण वातानुकूलित डबलडेकर इन्टरसिटी, ऐसी अलग अलग किराया तालिका वाली नयी नयी गाड़ियाँ यात्रिओंके लिए तैयार कर दी।

अब हम मुख्य विषयपर आते है, क्या मकसद होना चाहिए इस तरह की अलग अलग किरायोंके दरों से चलाई जानेवाली गाड़ियोंका? क्या वाकई यात्रिओंके लिए यह अलग अलग पर्याय है?

यदि पर्याय का दृष्टिकोण देखें तो नही! यात्रिओंके लिए इतनी पर्याप्त मात्रा में गाड़ियाँ नही है की वह अपनी पसंद नापसंद चुने, शायद इसीलिए गरीबरथ में सिर्फ गरीब यात्री ही नही रहते, अपितु कई उच्च वर्ग के लोग भी इन गाड़ियोंमे यात्रा करते है। वैसे ही हमसफ़र, राजधानी, शताब्दी, तेजस यह भी गाड़ियाँ केवल उच्च वर्ग की ही मिल्कियत नही है, जरूरतन बहोत सारे यात्री इन गाड़ियोंमे यात्रा करते देखे जा सकते है। तो फिर इतने प्रकार की गाड़ियाँ, इतने अलग अलग किराए इसका क्या औचित्य है?

बिल्कुल सही कारण है, नियमित वातानुकूलित/ ग़ैरवातानुकूलित किरायोंसे अधिक की उगाही करना है तो गाड़ियोंको वर्गीकृत करना जरूरी है। राजधानी, शताब्दी, हमसफ़र, दुरन्तो, जनशताब्दी, गरीबरथ, युवा, उदय, तेजस, वन्देभारत, अन्त्योदय यह भिन्न भिन्न प्रकार इसी लिए यात्रिओंके लिए लाए गए है। नियमित किराया तालिका से अलग किराया लेना है। एक गरीबरथ छोड़ा तो बाकी सभी गाड़ियोंका किराया नियमित किरायोंसे ज्यादा ही है।

हम माननीय रेल मंत्रीजी और सभी यात्रियों, लोकप्रतिनिधियोंका इस बातपर ध्यान आकर्षित करना चाहते है, गाड़ियोंके इतने प्रकार की यात्रिओंको वाकई में जरूरत नही है। आज भी हमारे देश मे रेल सेवा के लिए आम जनता के पास कोई भी सदृढ़, सुरक्षित, किफायती, आरामदायक विकल्प नही है। ऐसी स्थिति में रेल प्रशासन यात्रिओंको पर्याय तो उपलब्ध नही करा रही और ना ही यात्रिओंको ललचाने के लिए इसकी जरूरत है। किराए बढ़ाने की वाकई जरूरत है, और यही बात आम यात्रियों और उनके जनप्रतिनिधियों को अच्छेसे समझने की आवश्यकता है, न की ऐसी तरह तरह की गाड़ियाँ और उनके दसों प्रकार के किराया तालिकाओंकी। बात कड़वी तो है, मगर खरी खरी है

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