
यह वो 11 जोड़ी गाड़ियाँ है, जो 01 अप्रैल से द म रेल पर चलने वाली है। चूँकि इन गाड़ियोंकी विस्तृत खबर हम पहले ही दे चुके है अतः आज हमारा विषय ज्यादा लगने वाले यात्री किरायोंसे सम्बन्धित है।
द म रेल की इन सारी की सारी विशेष गाड़ियोंके किराए 1.3 प्रतिशत ज्यादा होंगे। इस विषयपर पहले भी काफी बहस हो चुकी है, की रेल प्रशासन यात्रिओंसे किराया ज्यादा वसूल रही है। आज हम दोनों याने यात्री और रेल प्रशासन की भूमिकाएं आपके सामने रखते है।
जैसे ही इन गाड़ियोंकी घोषणा हुई जनमानस के बीच से एक जोरदार आवाज गूँजी।
यात्री : दक्षिण मध्य रेल, SCR ने यात्रिओंको जबरदस्त ठोंका है, 1.3 वाली विशेष किराया रेट्स लगाकर। सारी की सारी गाड़ियाँ 1.3 गुना किराया ज्यादा किराया चार्ज करेगी। साथमे 500 किलोमीटर का किराया रिस्ट्रिक्शन रहेगा सो अलग। शार्ट डिस्टेन्स वाला दस बार सोचेगा, टिकटवा बुक करें कि नाही? 🤦🏻♂️
रेल प्रशासन : कम अंतर के स्थानिक यात्रिओंको रेल यात्रा से हतोत्साहित करना यही किरायोंकी अलग किराया श्रेणी रखने का मुख्य कारण है। इसके तहत, गाड़ियोंको आरक्षित करना, किराया ज्यादा रखना, किरायोंको अंतर का निर्बंध रखना यह सारे उसी के मद है।
रेल प्रशासन पर जब मीडिया से कई तरह की पूछताछ आयी तब रेलवे ने अपना परीपत्रक जारी किया और अपने किरायोंके बारे में खुलासा किया। रेलवे का यह कहना है की, वह कोई नया किराया दर नही लगा रहे, अपितु यह किराया दर, वर्ष 2015 के विशेष गाड़ियोंके परीपत्रक पर ही आधारित है। उपरोक्त परीपत्रक हम यहाँपर उधृत कर रहे है।


यह वो CC No 30/2015 परीपत्रक है, जिसके आधारपर रेल प्रशासन किराया लगा रही है।



हम यहाँपर, यात्रिओंका कहना वाज़िब किस तरह से है, यह बताते है। वर्ष 2015 में यह जो भी विशेष गाड़ियाँ, विशेष किराया दरों पर चलाई जा रही थी, यह नियमित गाड़ियोंसे अलावा अतिरिक्त गाड़ियाँ थी और सद्य परिस्थितियों में नियमित गाड़ियाँ तो बिल्कुल ही नही चलाई जा रही है। हाँ, कुछ विशेष गाड़ियाँ है, जो नियमित किराया श्रेणी में चल रही है मगर मराठवाड़ा ऐसा क्षेत्र है, जिसमे यात्री गाड़ियाँ काफी कम चलती है। खास कर नान्देड मण्डल में, नान्देड से अकोला, मनमाड़ और काचेगुड़ा इन तीनोँ ही मार्ग पर गाड़ियोंकी आवाजाही काफी कम है। ऐसे में जो भी गाड़ियाँ घोषित की गई है, इस क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण ही है, अतिरिक्त तो बिलकुल नही की जिनके किराए ज्यादा लिए जाए।
रेल प्रशासन का दूसरा मुख्य मुद्दा है, स्थानिक यात्रिओंको कम अन्तरोंमें रेल यात्रा से हतोत्साहित करना, जब गाड़ियाँ ही कम है तो यात्री रेल यात्रासे क्या रेल प्रशासन से ही हतोत्साहित हो रहे है। नान्देड मण्डल के तहत आनेवाले स्थानिक यात्री वैसे ही खुद को दमरे क्षेत्रीय रेल से अनास्था का शिकार मानते है और गाड़ियाँ समुचित न होने के कारण रेल से यात्रा करने से कतराते है।
ऐसे में रेल प्रशासन, किरायोंकी दोहरी मार इस क्षेत्र को दे रही है। एक तो किराया ज्यादा, दूसरा अंतर का निर्बंध। द्वितीय श्रेणी में आरक्षित किराया ज्यादा लग रहा है और 100 किलोमीटर का निर्बंध, स्लिपर, वातानुकूलित द्वितीय 2A और 3A में 500 किलोमीटर एवं वातानुकूलित कुर्सीयान में 250 किलोमीटर का निर्बंध। याने यात्री चाहे 100 किलोमीटर ही जाना चाहे उसे द्वितीय श्रेणी से ऊपरी वर्ग के लिए 500 किलोमीटर का किराया देना होगा।
अब आपको तय करना है सही कौन है, यात्री या प्रशासन?