चौक गए? अभी वाक्य पूरा नही हुवा है, “क्या रेल पटरियोंपर निजी ट्रेन नही दौड़ सकती?” यह उत्तर रेल मंत्री पीयूष गोयल का था जब उन्हें रेलवे के निजीकरण के बारे में प्रश्न किया गया था।
सरकार सड़कें बनवाती है, उसी तरह रेल पटरियोंसे रेल मार्गका भी निर्माण करवाती है। जिस तरह कुछ लोग गाँव चौपालों पर फुरसतिया बातें करतें है और उनको किसी बात पर तूल मिल जाती है तो उसे खींचते चले जाते है। ऐसी हालात में विषय का आत्मा तो भटक जाती है और चोटी, पूँछ खिंचाई चलते रहती है। अब देश मे समर्पित माल गलियारा अपना काम शुरू कर दिया है। लोको के नवनिर्माण किए जा रहे, लगभग 70% मेल/एक्सप्रेस श्रेणी की गाड़ियाँ अत्याधुनिक LHB कोचेस से चलाई जा रही है। पटरियां उच्च गति क्षमता वाली की गई है, लोको, यात्री डिब्बा स्टॉक भी उनके अनुरूप है, दूरसंचार, सिग्नलिंग भी सुरक्षा के दृष्टिकोण से अनुरूप किए गए है तब भारतीय रेल अपने संसाधनो के साथ व्यावसायिक क्यों नही हो सकती? निजी लोग इस क्षेत्रमे आने से न सिर्फ भारतीय रेल को इसका फायदा मिलेगा बल्कि यात्रिओंको भी बेहतर और उच्चतम सेवाओंका अनुभव लेने का मौका मिलेगा। भारतीय रेल के तंत्रज्ञ अपनी सेवाओंमें नई तकनीक का इस्तेमाल करना सीख सकेंगे।
यह संकल्पना ठीक आईपीएल की तरह है। आईपीएल क्रिकेट लीग में कई विदेशी खिलाड़ियों के साथ हमारे देश के युवा खिलाड़ी खेलते है। उनकी फिटनेस, उनकी तकनीक, उनके खेलने का अंदाज इससे हमारे ख़िलाड़ियोंको अपने आप सीखने को मिलता है। इस आईपीएल लीग ने हमारे भारतीय टीम के कई ख़िलाड़ियोंको निखारा है, नई नई खोज का फायदा हमारी टीम को हुवा है। सीमित वर्षोंके लिए निजी गाड़ियोंका भारतीय रेल में अन्तर्भूत होना भारतीय रेल के कर्मियोंको उच्च, नई तकनीक और आंतरराष्ट्रीय दर्जे की वणिज्यिकता के नए पाठ जरूर पढवायगा। देश मे आंतरराष्ट्रीय श्रेणी का रेल परिचालन हो यह निजी क्षेत्रों को यहां लाने का प्रमुख उद्देश्य है।
अब भ्रमित करने वाले लोग और उनकी बातोंसे भ्रमित होने वाले लोग ऐसी बाते सोशल मीडिया में उछालते है, भारतीय रेल के 150 मार्ग बिक जाएंगे, 50 स्टेशन बिक जाएंगे तब उनके लिए वह सड़क मार्ग वाला उदाहरण देना लाज़मी बन जाता है। भारतीय रेलवे यह आश्वासित करता है, कोई भी पुरानी गाड़ियाँ बन्द न करते हुए नई 150 निजी गाड़ियाँ चलेंगी, अतः यात्री अपनी जरूरत के अनुसार अपनी यात्रा करने के लिए अपना वाहन चुन सकता है। जिस तरह सड़कों पर ऑटो से लेकर आलीशान टैक्सियां उपलब्ध रहती है और यात्री अपनी जरूरत के हिसाब से उन्हें चुनता है यह ठीक उसी तरह की संकल्पना है।
अब समझना आपको है की अपनी भलाई किस चीज में है, प्रोफेशनल बन कर जमानेके साथ चलने में समझदारी है या कुछ लोगोंकी बातोंसे भ्रमित होकर वही ढाक के तीन पात करते बैठे रहने में।