संक्रमण काल मे संक्रमण सम्बन्धित विषयोंके अलावा हर तरफ रेल विभाग ही ज्यादा चर्चा में था। एक रात में अकस्मात सारी यात्री रेल गाड़ियाँ बन्द करने का निर्णय हुवा, और तब से आज तक जो भी यात्री गाड़ियाँ चल रही है वह सब विशेष श्रेणी में चलाई जा रही है। सारी रेल व्यवस्था सामान्य प्रशासन के हाथ मे आ गयी। कभी कोई गाड़ी चल रही है तो कभी कोई बन्द, कौनसी गाड़ी कितने दिन चलेगी, कब बन्द होगी हर एक बात के लिए परीपत्रक। रेलवे समयसारणी परिपत्रकों में सिमट कर रह गयी है।
यह तो आज के हालात के बारे में बयान बखान है, मगर इन परिपत्रकोंके मायाजाल में आम यात्री बेहाल है और जगह जगह बने यात्री संघ पहलवान। यह लोग गाड़ियोंकी कौड़ियां ऐसी फेरते है, की यात्रिओंको लगे अभी अभी रेल मंत्री के बगल से उठ कर आए है। एक तो परीपत्रक कई बार संक्षिप्त आते है। गाड़ियोंके नाम नही होते नम्बर होते है। नम्बर भी नियमित नही बल्कि विशेष वाले ‘0’ सीरीज के, ऐसे में जानकार भी पुराने नम्बर, गाड़ी के स्टार्टिंग स्टेशन और गन्तव्य स्टेशन, उनके छूटने, पहुंचने के समय से तर्क लगाकर ही समझ पाते है की गाड़ी आखिर है कौनसी। फिर शुरू होती है इनके आपस की जुगलबन्दी। लगभग हर क्षेत्र, हर बड़े जंक्शन पर रेल प्रवासी संगठन बने हुए है। सोशल मीडिया इनके अघोषित वार्तापत्र बन गए है। चूँकि गाड़ी का मार्ग परीपत्रक में नही रहता, तो आम यात्री रेलवे की मंशा समझने के लिए इनकी ओर ही ताकता है। फिर यह लोग तो बहुत जानकार, जिसे देखो वह अपने तरीके से गाड़ियोंके मार्ग निर्धारण करते चला जाता है।
फिलहाल यात्री गाड़ियोंको संक्रमण कालीन व्यवस्था में, एहतियातन विशेष श्रेणी में चलाया जा रहा है ताकी आपातकालीन स्थिति में, रेल प्रशासन को अपनी गाड़ियोंको रद्द करना, मार्ग परिवर्तन करना या शार्ट टर्मिनेट करना आसान हो सके। सभी यात्री गाड़ियोंको एक अस्थायी व्यवस्थान्तर्गत चलाया जा रहा है। इन अस्थायी व्यवस्थाओं के साथ साथ रेल प्रशासन द्वारा, शून्याधारित समयसारणी का भी परीक्षण किया जा रहा है। नियमित गन्तव्योंके बीच चलनेवाली पुरानी गाड़ियोंको अलग अलग मार्गोंसे चलाकर जायज़ा लिया जा रहा है। तेज गति के रेल मार्गोंका परीक्षण किया जा रहा है। मगर यह संगठन और उनके नुमाइंदों का क्या कहना? यह लोग रेलवे की हर नीति पर अपनी पेंच डाल ही देते है, और आप इनको साधारण या हल्के में न समझिए, यह लोग राजनीतिज्ञ, पदस्थ तक पेंठ लगा रखते है। यह संगठन अपने दिमाग लगा लगा कर गाड़ियोंके विस्तार, मार्ग परिवर्तन, फेरे बढाने के प्रस्ताव बनाते है और उनको अपने तरीकेसे आगे भी बढ़वाते है। इधर रेल प्रशासन अपने परीक्षण प्रक्रिया में कुछ अस्थायी बदलाव करता है तो आम जनता को बरगलाने का काम किया जाता है, ऐसा जताया जाता है, आपकी गाड़ियाँ छीन जाएगी, स्टापेजेस स्किप हो जाएंगे, भाई, जब गाड़ियाँ बिना किसी नियमित समयसारणी से चल रही है तो कैसे झगड़े, कैसी मांगे और काहे का खींचतान, काहे की छीना झपटी?
दरअसल यह यात्री संगठन, यात्रिओंकी रोजमर्रा की तकलीफों, समस्याओं को रेल प्रशासन के सामने रखने के लिए बनाया गया एक संगठित प्रयास है। ऐसे यात्री संगठन बनने की शुरुवात, जहाँ “डेली अप डाउन” करने वाले बहुत से यात्री होते है वहाँ से हुए है। रेल प्रशासन की भी जरूरत थी कि वह यात्रिओंसे सम्पर्कता बनाए रखने के लिए उनके प्रतिनिधियोंसे सम्पर्क में रहे। इसलिए ऐसे क्षेत्रोंमें यात्री संगठन को बढ़ावा दिया गया। मगर यात्री संगठन का प्रभाव देखते हुए हर छोटे बड़े यात्री समूह अपने संगठन बनाने लग गए है। राजनीति में नेतागण को भी जनता की आवाज इन्ही संगठन के जरिए पोहोंचती है अतः यात्री संग़ठन का राजनीति से जुड़ाव का यह मर्म है।
मगर ई बात है भइयां, जब हम हु बन जाईल रेलवे का मंतरी, तब तो हमरा ही राज चलीबै। हम कहे उही इस्टाप और कहे वही राह पकड़ चलीबै रेलगाड़ी। जौन कही के यही रुक जाईबै तो उस से आगे न जाई बै और जौन कहे इहाँ से नाही आगे जाकर पलटेगी तो 2-4 स्टेशनवाँ और आगे चलीबै। 😊
कुछ याद आ ही गया होगा आपको? जी हाँ, पुराने रेल बजट के भाषण का सीधा प्रसारण। कैसे हंगामे, कैसी बहस। जैसे रेल गाड़ियाँ नही कोई जागीरें बटती थी। हर कोई अपने क्षेत्र की मांगों की फेहरिस्त थामे रेल बजट में पहुंचता था। जैसे ही नई गाड़ियोंकी सूची पढ़ने की शुरुवात हुई की हंगामा शुरू हो जाता। खैर, अब सब बदल चुका है। पिंक बुक में बजट आबंटन समझता है। गाड़ियाँ देशभर की सार्वजनिक घोषणा किए बिना ही सम्बन्धित क्षेत्रोंमें सूचित कर चलना शुरू कर दी जाती है और इन नई गाड़ियोंको शुरू करने का कोई विशेष काल नही रहता। इसलिए ऐसे यात्री संगठन अपनी अफवाह युक्त चर्चाओं और अंतर्गत पहुंच के जरिए से यात्रिओं और आम लोगोंपर अपना प्रभाव जताते रहते है।