मध्य रेल, जहाँसे भारतीय रेल की पहली यात्री गाड़ी चली थी। रेल्वे का ऐसा झोन जिसमे कभी यात्रिओंकी ओरसे गाड़ियोंके लिए पुरजोर मांग या जीवन मरण का प्रश्न है इस तरह की गाड़ियोंके लिए खींचतान दिखाई नही देती, ना ही कभी कोई राजनीतिक दबाव की नीति अपनाई जाती रही। मगर आज अपनी सवारी गाड़ियोंके परिचालित करने की मांग करने के लिए बेबस है। रेल प्रशासन ने अवश्य ही सोचना चाहिए, ऐसे निर्बंधोमें छोटे स्टेशनोंके यात्रीयोंकी की जरूरतें वाकई में पूरी हो रही है, क्या यात्री सन्तुष्ट है? क्या उनकी परेशानीयोंको कोई सहानुभूतिपूर्वक कोई देखता भी है?
मध्य रेलवे में मुम्बई, पुणे, सोलापुर, भुसावल और नागपुर ऐसे 5 मण्डल है। जिसमे मुम्बई और पुणे में उपनगरीय गाड़ियाँ चलाई जाती है। रेलवे की उपनगरीय गाड़ियोंका यात्रिओंके जीवन मे क्या महत्व है यह बताने की कतई जरूरत नही, मगर यही जरूरत वाला दृष्टिकोण जहां उपनगरीय गाड़ियाँ नही चलती ऐसे भुसावल, सोलापुर और नागपुर मण्डलोंमे क्यों नही लिया जाता? माना की इन मण्डलोंमें मुम्बई या पुणे जितने डेली कम्यूटर्स, रोजाना रेल के उपयोगकर्ता नही है मगर कुछ न कुछ तो यात्री जरूर है जो रोजाना रेल से जाना आना करते है।
भुसावल मण्डल में भुसावल से इटारसी एवं कटनी सवारी, भुसावल से नरखेड़ मेमू, वर्धा और नागपुर सवारी, भुसावल से देवलाली और मुम्बई के लिए सवारी गाडी चलती थी। याने भुसावल से कुल 7 गन्तव्योंके लिए सवारी गाड़ियाँ चलाई जाती थी। जिसमे हमने पश्चिम रेलवे की भुसावल से सूरत के बीच चलनेवाली 3 जोड़ी सवारी गाड़ी को जोड़ा नही है। हालाँकि पश्चिम रेलवे ने शून्याधारित समयसारणी के प्रस्तावोके अनुसार 3 में से दो सवारी गाड़ियोंको बदलाव के साथ चला भी दिया है। भुसावल नन्दूरबार भुसावल और भुसावल सूरत भुसावल यह दो गाड़ियाँ एक्सप्रेस किरायोंमे, आरक्षित और अनारक्षित बुकिंग्ज के साथ चल रही है।
यह भुसावल से चलनेवाली गाड़ियोंकी बात है, आगे भुसावल मण्डल की चालीसगांव – धुळे 4 जोड़ी सवारी गाड़ी, बड़नेरा – अमरावती 6 जोड़ी सवारी गाड़ी, इगतपुरी मनमाड़ शटल, जलम्ब खामगांव रेल बस, नवी अमरावती नरखेड़ सवारी इनकी गिनती नही की गई है। यह सारी गाड़ियाँ बन्द है।
अब बात करते है पुणे, सोलापुर, नागपुर मण्डल की, पुणे मण्डल में पुणे – लोनावला, पुणे – दौंड उपनगरीय रेल सेवा के अलावा दौंड बारामती, पुणे – सातारा – कोल्हापुर, पुणे पनवेल सवारी गाड़ियाँ चलती है। सोलापुर मण्डल में दौंड से वाड़ी और मनमाड़ दौंड खण्ड आता है। इस क्षेत्र में पुणे मनमाड़, पुणे निजामाबाद, पुणे नान्देड, पुणे सोलापुर, विजयपुरा रायचूर, सोलापुर गुंटकल, कलबुर्गी वाड़ी, सोलापुर फलकनुमा, कलबुर्गी हैदराबाद ऐसी सवारी गाड़ियाँ चला करती थी। नागपुर मण्डल के कार्यक्षेत्र में बड़नेरा से नागपुर, वर्धा से बल्हारशाह, नागपुर से इटारसी और आमला छिंदवाड़ा ऐसे खण्ड आते है। जिसमे नागपुर वर्धा अमरावती सवारी, नागपुर आमला, अजनी काजीपेट, नागपुर इटारसी, वर्धा बल्हारशाह, आमला बैतूल, आमला छिंदवाड़ा, जुन्नारदेव छिंदवाड़ा ऐसी सवारी गाड़ियाँ चलती थी।
मुम्बई मण्डल में भी मुम्बई से कर्जत, कसारा, पनवेल, हार्बर ऐसी सैकड़ों उपनगरीय गाड़ियोंके अलावा मुम्बई से पंढरपुर, विजयपुरा और साईं नगर शिरडी की सवारी गाड़ी चलती थी। फिलहाल यह तीन गन्तव्योंकी सवारी गाड़ियोंको शून्याधारित समयसारणी में विशेष एक्सप्रेस बनाकर चला दिया गया है। इसके अलावा कोंकण रेलवे खण्ड पर दादर रत्नागिरी, दिवा सावंतवाड़ी, दिवा पनवेल ऐसी सवारी गाड़ियाँ चलती थी।
अब प्रश्न यह है, इतनी ढेर सवारी गाड़ियाँ, इनके बीच के स्टेशन्स, वहांके यात्री इनका इस संक्रमण काल के रेल बन्द और उसके बाद की यह विशेष गाड़ियोंका परिचालन में क्या हाल होंगे? कैसे यात्रा कर रहे होंगे इन छोटे स्टेशन्स के लोग? उन स्टेशनोंके सहारे से रहनेवाले कई लोगोंकी आजीविका भी ठप हो गयी होगी, जैसे कुली, मजदूर, रेहड़ी वाले, ऑटो रिक्शा वाले लोग। जब गाड़ियाँ ही नही तो यात्री कहाँसे होंगे और यात्री ही नही तो लेनदेन, काम धंदा कैसा? प्रशासन ने इन स्टेशनोंके यात्रिओंके साथ साथ इन्हें भी भगवान भरोसे छोड़ दिया है।
मित्रों, निर्बन्धित गाड़ियाँ चलाए जाने से सोचिए, कितनी समस्याए उत्पन्न हुई है। ऐसा नही की सारे भारतीय रेल पर यही स्थिति है, मध्य रेल छोड़ दें तो लगभग सभी क्षेत्रीय रेलवे ने अपने क्षेत्र की PSPC याने यात्री सवारी सेवाएं चला दी है, हालाँकि यह सेवाएं मेल/एक्सप्रेस किरायोपर चल रही है मगर सभी स्टेशन्स पर रुक तो रही है। वहाँ के यात्रिओंको रेल सेवा का लाभ तो मिल रहा है। कई क्षेत्रीय रेल्वेज ने शून्याधारित समयसारणी के प्रस्तावित मद पर अपने गाड़ियोंमे बदलाव भी कर लिए है। सवारी गाड़ियोंके बदले मेमू ट्रेन्स चलाई जा रही है।
यात्री चाहते है, मध्य रेल और जो भी बाकी क्षेत्रीय रेल्वेज है, अपने निर्णय यथायोग्य समय रहते जारी कर देवे। शून्याधारित समयसारणी में यदि सवारी गाड़ियोंको बन्द कर मेमू/डेमू चलवाना हो तो चलवा दे। कोई गाड़ियोंमे गन्तव्योंके बदलाव करने हो, स्टापेजेस कम करने हो जो भी है, वह कर के गाड़ियोंको पुनः पटरियोंपर चला दीजिए। बस गाड़ियाँ पूर्ण क्षमता से चलवा दीजिए। भले ही नियमित समयसारणी न हो तो विशेष PSPC कर के ही चलवा दीजिए।
अनारक्षित टिकट व्यवस्था शुरू करना भी बेहद जरूरी है। लोग अपनी छोटी छोटी, रोजमर्रा की और बेहद जरूरी यात्रा करने के लिए परेशान हो रहे है। सार्वजनिक परिवहन बन्द होने से सड़क मार्ग पर जरूरत से ज्यादा निजी वाहन, मोटर साइकिलें लेकर लोगोंको यात्रा करनी पड़ रही है। एक तो सुरक्षा से समझौता, अतिरिक्त यात्रा समय और ऊपर से महंगे ईंधन का बोझ है सो अलग।
व्यापार, व्यवसाय, कारखानोमे काम करने वाले कर्मी, निजी क्लासेस में भागदौड़ करनेवाले विद्यार्थी, जरूरी काम से शहरोंकी ओर जानेवाले जरूरतमन्द, दवाखानेमे इलाज के लिए जानेवाले मरीज और उनके परिजन ऐसे कई यात्री है जो सवारी गाड़ियोंके बन्द होने से बेहद परेशान है। इन लोगोंकी सुनवाई ही नही है क्योंकि न तो ये इलेक्ट्रॉनिक आधुनिक गैजेट्स का उपयोग कर पाते है, ना ट्विटर, ई मेल जानते है कि फटसे अपनी समस्या की गुहार लगा देंगे और ना ही किसी जनप्रतिनिधियोंको इनकी समस्या का कोई ख्याल है। यह ग्रामीण लोग बेचारे बस इंतज़ार करते जा रहे है, आखिर किसी दिन तो इनकी सवारी गाड़ियाँ चलने वाली है, इंतज़ार कीजिए बस चलने वाली ही है। 😢😢