देशभर में रेलवे के विविध मार्ग अलग अलग साइज़ के थे, कहीं मीटर गेज, कहीं नैरो गेज और ज्यादातर जगहोंपर ब्रॉड गेज। माल परिवहन में इससे बहुत बाधाएं आ रही थी और इस समस्या का निदान था पूरे देश मे ब्रॉड गेज यह एकही गेज की रेलवे चलें इसलिए 1 अप्रैल 1990 से “यूनिगेज नीति” लायी गयी और सारी छोटी लाइनोंको बड़ी लाइनोंमें बदलने का काम शुरू किया गया।
उपरोक्त खण्डों का भविष्य समझना है, तो हमे पहले इस यूनिगेज नीति से होकर गुजरना होगा। तत्कालीन रेल मंत्री सी के जाफ़र शरीफ ने इस यूनिगेज का महत्व समझा और जितने भी तराई क्षेत्र के रेल मार्ग थे उस पर तेजी से काम शुरू किया गया। दक्षिण भारत के आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, पश्चिम भारत के गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर भारत के राजस्थान में राजा महाराजा के जमाने की अपने अपने क्षेत्रोंमें बनाए गए रेल मार्ग हेतुतः अलग गेज के बनाए गए थे ताकि पड़ोस के राजा की रेल उनके क्षेत्र में न आ सके। मगर यही नीति अब यूनिगेज के कार्य मे भारी पड़ रही थी, थोड़ी मीटर गेज, थोड़ी नैरो गेज। अंग्रेजोने उनके काम की लगभग सभी मेन लाइनें ब्रॉड गेज में बनाई थी और बाकी बची उन इलाकोंके राजाओंने अपने ख़ज़ानोंसे धन देकर बनवाई थी। राजस्थान के राजपुताना क्षेत्र, गुजरात की बड़ौदा रियासत, इन्दौर के होळकर तो ग्वालियर के सिंधिया सब की अलग गेज की गाड़ियाँ। छोटी गेज की व्यवस्था, कुछ पहाड़ी इलाके की भी समस्या थी।
खण्डवा – अकोला मीटर गेज खण्ड यह रतलांम – अकोला प्रोजेक्ट का हिस्सा है। जयपुर, अजमेर से काचेगुड़ा, हैदराबाद तक मीनाक्षी एक्सप्रेस नामक लम्बी दूरी की मीटर गेज गाड़ी चलती थी। जिसमे से जयपुर – अजमेर – रतलाम – महू इतना मार्ग बड़ी लाइन में बदल चुका है। उसी प्रकार, सनावद से खण्डवा, अकोला से आकोट यह मार्ग भी बड़ी लाइनोंमें बदले गए है। महू से आगे सनावद तक पहाड़ी क्षेत्र का पेच फँसा है तो खण्डवा से आकोट मार्ग में 77 किलोमीटर का रेल मार्ग वन्य जीव संरक्षण की समस्या से रोका गया है। रेल प्रशासन वनविभाग के इस अड़ंगे से अपना काम रोके अटकी पड़ी है।
अचलपुर – मूर्तिजापुर – यवतमाल का 77 और 113 ऐसे कुल 190 किलोमीटर और पुलगांव – आर्वी का 35 किलोमीटर का यह शकुंतला रेल मार्ग तो आज भी भारतीय रेल के स्वामित्व में नही है। ब्रिटिश कम्पनी सी पी रेलवे इसकी मालिक है। हालाँकि यह 225 किलोमीटर के रेल मार्ग को वर्ष 2017-18 में राज्य प्रशासन के साथ मिलकर गेज परिवर्तन करने का प्रस्ताव बनाया गया था मगर तकलीफ़ स्वामित्व की ही थी और अब भी सी पी रेलवे से इस पर कोई भी जवाब रेल प्रशासन के हाथ मे नही पड़ा है।
ऐसे में आप समझ सकते है की मामले खटाई में पड़ चुके है और कुछ भी कहा नही जा सकता कि आगे क्या और कब होगा। महू – सनावद ही जुड़ जाए तो राजस्थान, मध्यप्रदेश से गाड़ियाँ सीधे पश्चिम में मुम्बई, पुणे, नासिक और दक्षिण के हैदराबाद, बेंगलुरु से जोड़ी जा सकती है। वैसे भी एक बार गाड़ियाँ खण्डवा पहुंचती है तो मुख्य मार्ग पर आ जाती है। वहाँसे भुसावल होकर मुम्बई, पुणे और भुसावल, अकोला, पूर्णा होकर दक्षिण में जा सकती है।
महू से सनावद सिर्फ 64 किलोमीटर का मार्ग बन्द होने से आज रेल प्रशासन का कीमती ईंधन, समय जाया हो रहा है। भारत को उत्तर से दक्षिण तक जोड़ने वाला ग्रैंड ट्रंक मार्ग के अलावा यह सर्वोत्तम वैकल्पिक रेल मार्ग है। राजस्थान से आंध्र, कर्नाटक जाने के लिए नागपुर होकर जाना पड़ता है। उस रेल मार्ग की स्थिति इतनी संतृप्त है की 150 से 200 प्रतिशत रेल ट्रैफिक उस मार्ग पर चल रहा है। दोहरी लाइन को तिहरी, चार लाइनोंमें बढ़ाया जा रहा है। ऐसे में इकहरी लाइन के इस मार्ग पर रेल प्रशासन थोड़ा भी ख्याल नही दे रही है यह बड़े आश्चर्य की बात है।
जिस आकोट – आमलाखुर्द वाले 77 किलोमीटर वन क्षेत्र की बात की जा रही है, उस मार्ग पर एलिवेटेड याने उन्नत रेल मार्ग, वन्य जीवों के लिए रेल अंडर पास गलियारे पर रेल विभाग सहमत हो चुका है, या और व्यवस्था बढाने के लिए भी तैयारी कर सकता है, इतना इस प्रकल्प का महत्व है। बस समस्या यही है, की राज्य शासन और उनकी नीतियोंमे ठप पड़े इन बुनियादी सुविधाओंका, वहाँ की आस लगाए बैठी जनता का मानसिक, आर्थिक उत्पीड़न जरूर हो जाता है।