प्रोपोगंडा, भ्रम ऐसे मायाजाल है, की अच्छे अच्छोंकी परमभक्ति, अपार विश्वास भी टूट कर बिखर जाए। अखबारोंके स्थानीय वार्तापत्र के जरिए बड़ी बड़ी हेडलाइन्स में किरायोंके फर्क डालकर यात्रिओंके गले मे यह उतारा जाता है, रेल का किराया ज्यादा ले कर यात्रिओंको लूटा जा रहा है, मगर उसके पीछे क्या गणित है, तर्क या कारण क्या है इसको कोई रखने के लिए तैयार नही। क्या करें शायद वह लोगोंको तर्क की तह तक पहुंचने ही नही देना चाहते हो, खैर।
संक्रमण काल के बाद जब यात्री रेल गाड़ियोंको शुरू किया गया तो सबसे पहले उद्देश्य यही था, की जरूरतमन्द यात्री अपने गन्तव्यतक, घरोंतक पहुंच जाए और शुरुआत में केवल राजधानी गाड़ियोंको पटरी पर लाया गया। लम्बे दूरी के यात्री जो कामकाज से आए और विभिन्न शहरोंमें अटक गए, वह अपनी जगह सुनिश्चितता से, तेज गति और कम स्टापेजेस के साथ पहुंचे। संक्रमण काल में किस तरह प्राथमिकताएं निभाए इसका अनुभव तो किसी को नही था। जरूरत और प्रयोग के अंदाज में गाड़ियाँ बढ़ाई गई। चूँकि नियमित गाड़ियोंके सभी आरक्षण रद्द कर नए सिरे से गाड़ियाँ चलानी थी, इसके लिए पुरानी व्यवस्था, ‘स्पेशल और फेस्टिवल स्पेशल ट्रेन्स’ का सहारा लिया गया। सारी गाड़ियोंको ‘0’ नम्बर से शुरू कर क्रमांक निश्चित किए गए, ताकि आपातकाल में गाड़ियाँ रद्द भी करनी पड़े तो ढांचागत सुविधाओंपर अतिरिक्त बोझ न आए। राज्योंको स्वास्थ्य सुविधा और निर्बंध का जिम्मा दिए जाने के चलते केवल उनके अनुरोध और अनुमती को मद्देनजर रखकर ही गाड़ियाँ कम ज्यादा करना या स्टापेजेस को शुरू या बन्द करना इनके निर्णय लिए जा रहे थे और अभी भी वही व्यवस्था कायम है। गाड़ियोंका नियमन पूर्णतयः राज्य प्रशासन के ही अधीन है।
अब रही बात किरायोंके फर्क की तो रेल विभाग दो तरह की गाड़ियाँ चलवा रहा है। विशेष गाड़ियाँ जो नियमित किरायोपर चलती है और दूसरी उत्सव विशेष गाड़ियाँ जिनके किराए कुछ निर्बंध के कारण ज्यादा है। यात्रीगण कृपया यह बात ध्यान में ले ले, की इन सभी उत्सव गाड़ियोंका किराया, विशेष गाड़ियोंके किराया अधिनियम क्रमांक 30/2015 के वाणिज्य परीपत्रक में दिया गया है।


railduniya.in इन उत्सव या फेस्टिवल गाड़ियोंके किरायोंका गणित नियमित मेल/एक्सप्रेस के किरायोंपर ही आधारित है, द्वितीय श्रेणी के किराए मुलभूत (बेसिक) किरायोंसे 10% ज्यादा होंगे और बाकी सारे श्रेणियोंमे याने स्लिपर क्लास, वातानुकूलित 1,2,3 टियर, चेयर कार आदि में 30% तक ज्यादा रहेंगे।
टिकट बुकिंग के लिए डिस्टेन्स रिस्ट्रिक्शन्स याने यात्रा दूरी का बंधन भी रहेंगा। द्वितीय श्रेणी सेकन्ड क्लास सिटिंग के लिए 100 km, वातानुकूलित चेयर कार के लिए 250 km, वातानुकूलित प्रथम श्रेणी के लिए 300 km और स्लिपर क्लास, वातानुकूलित 2, 3 टियर के लिए 500 km कमसे कम अंतर का किराया देय होगा।
इसका मतलब यह है, की आप भलेही 200 किलोमीटर की टिकट स्लिपर क्लास में बुक करते है, लेकिन आपको तय 500 किलोमीटर को जितना बेसिक किराया लगता है वह देना होगा और इतर जोड़ गणित भी देख लीजिए। उस बेसिक किरायोंमे 30% ज्यादा जोड़ने के बाद जो रकम आएगी वह होगा आपका ‘उत्सव स्पेशल’ का बेसिक किराया। और सुपरफास्ट चार्जेस, आरक्षण शुल्क ई. अतिरिक्त चार्जेस मिलाकर आपको किराया देना होगा।
क्षेत्रीय रेलवे, जो यह ट्रेन को चला रही है, सोचती है की एक दिशा में ही गाड़ी पूर्ण यात्री क्षमता से चल रही है और वापसी में खाली तो वह क्षेत्रीय रेलवे का निर्णय होगा कि एडिशनल 10 से 30 प्रतिशत किराया ले या न ले।
विशेष और उत्सव विशेष दोनोंही प्रकार की गाड़ियोंके किरायोंमे दिव्यांग और मरीजोंकी रियायत को छोड़कर, किसी भी तरह के रियायती टिकट की बुकिंग नही दी जाएगी।
तत्काल कोटा की बुकिंग भी नही होगी, यज्ञपी क्षेत्रीय रेलवे चाहे तो प्रीमियम तत्काल बुकिंग, यात्रिओंकी ज्यादा मांग होनेपर शुरू कर सकती है।
रेल प्रशासन यह चाहता है, की केवल जरूरतमन्द यात्री ही रेल यात्रा करे। राज्य परिवहन की बसें, टैक्सी या निजी वाहन की यात्री क्षमता रेल गाड़ियोंसे कई गुना कम रहती है। इसके अलावा यह सारे वाहन राज्य सीमा के अंर्तगत होने के कारण राज्य प्रशासन इसपर आसानी से नियंत्रण ला सकता है, मगर रेल गाड़ियाँ हज़ारों किलोमीटर, अलग अलग राज्योंसे चलकर आती है इसलिए उनके ऊपर स्थानीय नियंत्रण रखना इतना आसान नही है। यही उद्देश्य सामने रख कर रेल प्रशासन ने इतने सारे नियम, निर्बंध और अतिरिक्त किरायोंको लगाए रखा है, स्टापेजेस रद्द किए है, ताकी कमसे कम स्थानिक यात्री तो भी लम्बी दूरी की गाड़ियोंमे यात्रा करना टाले। आपने देखा होगा कि बहुतांश उत्सव गाड़ियाँ लम्बी दूरी की, साप्ताहिक या द्विसाप्ताहिक ही है, प्रतिदिन चलनेवाली या इन्टरसिटीज नही।
यदि आप प्रशासन के इन प्रयासोंको सकारात्मक ढंग से समझने का प्रयत्न करते है, तो आपको यह पता चलेगी की सारी कवायद यात्री और इस आपातकाल में अपनी जान जोखिम में डाल कर भारत की जनता को सेवा देनेवाले रेल कर्मियोंकी सुरक्षा को प्राधान्य स्तर पर रखकर ही की जा रही है। अतः केवल आवश्यक कार्य हो तो ही यात्रा कीजिए। यह वक्त घूमने, फिरने, पर्यटन या धर्मस्थलों पर जाने का नही है। सुरक्षित रहिए, स्वस्थ रहिए।