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देश बदल रहा है, साथ रेलवे भी।

आजादी के अमृत महोत्सव की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। हमारा देश दुनिया की बदलती गतिविधियों पर नजर रखते हुए अपनी चालढाल में बदलाव लाते जा रहा है। ऐसे में रेल्वे कहाँ इन बातोंसे अछूती रह पाएगी?

आज ही हमारे प्रधानमंत्री जी ने आजादी के अमृत महोत्सव की शुरुवात करते हुए भारतीय जनता से 75 सप्ताह में 75 वन्दे भारत एक्सप्रेस गाड़ियाँ चलावाने का वादा किया है। देश की सबसे आधुनिक और तेज गति की गाड़ी का संस्करण है वन्दे भारत गाड़ियाँ। फिलहाल नई दिल्ली से श्री माता वैष्णो देवी कटरा और नई दिल्ली से वाराणसी के बीच दो वन्दे भारत गाड़ियाँ चलाई जा रही है। साथ ही पूर्वोत्तर राज्योंके देशभर से रेल सम्पर्क को सार्थक करने की भी बात हुई है।

रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने भी रेल कामकाज में यात्री सुविधाओंको बेहतर किए जाने पर जोर देने की बात रखी है। रेलवे के अफसर अब बिजनेस डेवलपमेंट अफसर की तरह काम करते नजर आएंगे, जवाबदेही बढ़ाई जाएगी और शिकायतोंका निपटारा शीघ्रता से किया जाएगा। रेलवे के लिए हर एक यात्री महत्वपूर्ण है, अतः यात्री चाहे द्वितीय श्रेणी जनरल क्लास में यात्रा करता है उसे भी कोई तकलीफ या परेशानी का सामना ना करना पड़े इसकी हिदायतें दी जा रही है।

आज सचमुच रेलवे में यात्री सुविधाओंमें काफी विस्तार हुवा है। स्टेशनोंका हुलिया बहुत कुछ बदल चुका है। स्टेशनोंकी सफाई व्यवस्था देखने लायक रहती है। जिस तरह सार्वजनिक स्थानोंकी सफाई व्यवस्था चाकचौबंद रखी जाए तो उसका उपयोग करनेवाले लोग भी उस सफाई का पालन करते नजर आते है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण महाराष्ट्र में अकोला शहर के निकट “श्री गजानन महाराज संस्थान, शेगांव” है। संस्थान के परिसर में हजारों सेवा भावी कर्मचारी सफाई कार्य मे दक्ष रहते है और उनके द्वारा रखी गयी साफसफाई देखते हुए हजारों लोगोंकी आवाजाही के बावजूद सम्पूर्ण परिसर एकदम साफसुथरा रहता है। यह ठीक वहीं तत्व है, की गन्दगी ही गन्दगी को बढ़ाती है। साफसुथरे प्लेटफार्म और स्टेशन परिसर को यात्री भी सराहते है और गन्दगी करने से कतराते है।

रेल मंत्री अपने कर्मियोंको शुद्ध व्यावसायिक तरीके से काम करवाने का प्रयत्न करवाते नजर आ रहे ऐसेमें यात्री द्वितीय श्रेणी साधारण और खास कर के स्लिपर क्लास की यात्रा सुचारू और सुरक्षित तरीके से कर सके इस पर ध्यान देंगे ऐसी आशा की जा सकती है। आज भी दस दस स्लिपर क्लास के कोचेस में केवल दो या तीन चल टिकट परीक्षक रहते है और द्वितीय श्रेणी में तो रेलवे की ओरसे कोई भी कर्मचारी नही रहता। रेलवे की अधिकृत निगरानी के अभाव में इन डिब्बो में अवैध विक्रेता, भीख मांगने वाले और तृतीयपंथी बेखटके यात्रिओंको परेशान करते रहते है। जब स्टेशन के आगमन पर ही सुरक्षा बल का व्यापक संचार रहता है, इसके बावजूद यह लोग स्टेशन के प्लेटफार्म पर या चलती गाड़ी किस तरह प्रवेश कर जाते है यह न सिर्फ आश्चर्य की बात है बल्कि संशोधन की भी बात है।

रेल प्रशासन के लिए इन बातोंका बन्दोबस्त करना अवश्य ही मामूली सी बात होगी मगर ऐसे ही “लूप होल” उन्हें अपने वाणिज्यिक कामकाज में मिल जाएंगे। फिर वह टिकट बुकिंग्ज हो या टिकट चेकिंग या खानपान विभाग हो या विश्रामालय हो। पार्सल बुकिंग्ज से लेकर लदान और पार्सल डिलेवरी हो सारे वाणिज्यिक कामोंमें व्यवसायिक सूसूत्रता लाने की आवश्यकता है।

कार्य निजी हाथोंमें सौंपे जाने से रेलवे की जिम्मेदारी घट नही जाती अपितु यह जाहिर होता है की वह अपने कर्मचारियों से नियोजनबद्ध तरीकेसे काम नही करवा सकती इसीलिए हार कर उसे निजी हाथोंमें सौप कर अपनी जिम्मेदारी से परे होना चाहती है। क्या हर शासकीय कामोंका निजीकरण होता है उसके पीछे यह वजह तो नही?

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