15 अगस्त, लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री के भाषण में एक वादा था, 75 सप्ताह में 75 वन्दे भारत गाड़ियाँ देश भर में चलाई जाएगी।
बस भैया, ललनवा के कान खड़े हो गए, “का कहे प्रधानमन्त्रीजी, वन्दे भारत गाड़ियाँ चलवाएंगे और वह भी पूरे 75 ठो?” अरे राजा भिया जरा तनिक निकाला तो वह लिस्टवा। अब ही चलते है सांसद जी का पास और दो चार ठो के लिए अपना किलेम डलवा देते है। राजा भैया बिफ़र गए, का किलेम किलेम करते हो, ऐसा थोड़े ही होता है, की माँग लगा दिए और मिल गयी गाड़ी? पहले ही जो जगह जगह पैर पसार लिए हो उससे तो निबट लेव। जो भी सर्वेक्षण की बात हुई, बस इसी तरह जोर लगाए और काम चालू करवा दिए। अब ई होत रहा की काम तो सब जगहन थोड़ा थोड़ा होई गवा पर पूरा कब होई इसका तो साक्षात भोले बाबा भी नही बता सकत है।
अब बारी लल्लन बाबू की थी, अरे भिया ऐसन थोड़े ही होत है? जब काम सुरु कर दिए है तो आजनकल हो जाई। उ बात गई ई नई बात है। जब हम कोई मांग नही रखे तो हम है ही किस काम के? माना की हमको और हमारे वोटर को ई वन्दे भारत की का जरूरत, हमे तो पास पड़ोस के शहर में जावे खातिर रोजाना की इंटरसिटी चाही, स्लिपर क्लास, सेकन्ड क्लास ज्यादा से ज्यादा उ नए इकोनॉमी वाले एसी वाले डब्ब न की गाड़ी चाही ताकी हमार लोगन आसानी से आस पास के शहरोंमें रोजगार और व्यापार के लिए जाए। अब तक जो आलिसान हमसफ़र वा चलाए रहे उसमे भी हम लड़ झगड़ स्लिपर तो लगवाया के नही, लगवाए ना? फिर। और जब जब नई गाड़ी चलावाने की बात होगी हमरा तो काम ही है, की हम उसका स्वागत करें, और हमारे इलाके के लिए माँग करें। अरे भिया, तब हु तो समझ आएगा की हम कितना जागृत है, कितना एलर्ट है? सांसद जी भी इही बात सोच रहे होंगे की हमने गाड़ियोंकी घोषणा सुनी की नाही। तो चलिए, अपनी सूची थामे, सांसद के धाम पर।
तकरीबन तकरीबन हर कार्यकर्ताओं में यही रेलमपेल चल रही है। गाड़ियाँ चलावाने की बात हो गयी मगर कहाँ चलेगी यह तो हम ही बताएंगे। अभी एक ही दिन बिता है, मगर वन्दे भारत गाड़ियोंकी माँग ऐसे लगाई जा रही है, मानो सारे यात्री बस कतार लगाए ही खड़े है, की कब गाड़ी चले और कब हम बुकिंग कर ले। वन्दे भारत यह भारतीय रेल की प्रीमियम स्तर की गाड़ी है। पुर्णतयः वातानुकुलित, ओटोमेटिक डोअर्स, सेल्फ प्रोपलड लोको, हवाई जहाज की तरह यात्री सीधे लोको पायलट तक जा सकता है, बात कर सकता है। पूरी गाड़ी में सीसीटीवी से निगरानी। अब ऐसी गाड़ियोंके रूट ऐसे ही तय थोड़े हो जाएंगे? रेलवे के वाणिज्य विभाग की नजर रहती है, कौनसे मार्ग पर वातानुकूलित बुकिंग्ज फूल चल रही है, कौनसे यात्री प्रीमियम ट्रेन में यात्रा करना चाहते है या कौनसे मार्गपर तेज गाड़ियोंकी जरूरत है साथ ही साथ वह मार्ग तेज गाड़ियोंके उपयुक्त है भी या नही। इतनी सारी कवायदोंके बाद कहीं जाकर गाड़ी चलाने के लिए स्वीकृति मिल पाएगी।
मगर हमरे राजा भैया और लल्लन बबुवा तो निकल पड़े है अपनी माँग का परचम लिए, सबसे पहले जो फहराना है।