भारतीय रेल की समयसारणी वर्ष मे एक बार जुलाई मे प्रकाशित की जाती है और जिसमे सर्वांकश बदलाव अंतर्भूत किए जाते है। संक्रमण काल मे न तो यात्री गाड़िया चल रही थी और न ही कोई समयसारणी निकाली गई। आजतक जो भी गाडियाँ चलाई जा रही है वह सब के सब विशेष गाड़िया बन चल रही है। जिसकी कोई नियमित समयसारणी नही है, बस एक परिपत्रक निकाला जाता है और गाड़ी पटरी पर चलने लगती है। यात्री को कुछ जानना हो तो रेल्वे की वेबसाइट या हेल्पलाइन से जान ले। प्रकाशित सामग्री कुछ नही। मगर अब उत्तर रेल्वे ने समयसारणी को लेकर भाष्य करना शुरू कर दिया है और उससे यात्रीओंके मन मे नए समयसारणी के लिए उत्सुकता कम और डर ज्यादा दिखाई दे रहा है।
समयसारणी से डर? जी हाँ जिस तरह उत्तर रेल्वे ने अपनी जाहिरातों मे एक एक घोषणा की है कई यात्री सहम गए है, अब यात्रीओंको पिछले वर्ष के शून्याधारित समयसारणी के विषय मे चली चर्चा याद या रही है। 500 से ज्यादा गाड़िया रद्द, 10000 स्टॉपजेस खत्म, लंबी दूरी की गाडियाँ 200 किलोमीटर के रन मे एक स्टोपेज लेंगी, जिन गाड़ियोंकी एवरेज यात्री संख्या अपनी क्षमता से 50% रहेंगी उन्हे या तो रद्द किया जाएगा या मार्ग की किसी गाड़ी मे जोड़ दिया जाएगा। इस तरह का खाका खींचा जा चुका है। और यह सब नए समयसारणी के साथ लागू होना तय है।
क्या है यह शून्याधारित समयसारणी, कैसे और क्यों बनाई जा रही है? मित्रों ऐसे कई सवाल आपके मन मे होंगे। वर्षों से यात्री गाड़िया चल रही है, मार्ग विद्युतीकृत और तीव्र गति योग्य किए जा रहे है, कहीं दोहरीकरण तो कहीं 3, 4 रेल लाइनें बीछ गई है। कई नई गाड़ीयाँ नए और पुराने पारंपारिक मार्गों पर चलाई गई है, लेकिन जो गाड़ियाँ पहले से चल रही थी उनके वही समय है और उन्हीं मे से खाली जगहों को ढूँढ ढूँढ कर नई गाड़ियों को बस टाइम स्लॉट मे घुसाते चले गए। अब दिक्कतें यूँ या रही है की ट्रैक के रखरखाव के लिए अलगसे कोई स्लॉट ही नही बचा। जे किसी गाड़ी को हिलावों तो बाकी गाड़ियों के समय भी हिलते है। इस समस्या का एक ही हल था की सब गाड़ियाँ बन्द कर उनकी पुनर्रचना की जाए याने समयसारणी को शून्य मे लाकर एक एक गाड़ी को टाइम स्लॉट मे बीठा कर चलाया जाए यही है शून्याधारित समयसारणी।
अनायास संक्रमण काल मे सभी यात्री गाड़िया बन्द हुई और रेल्वे को अपना शून्याधारित समयसारणी का कार्यक्रम निश्चित करने का सुअवसर मिला। जैसे जैसे रचना होती गई, गाडियाँ पटरियों पर आने लगी। जिन गाड़ियों मे ज्यादा फेरफार नहीं था जैसे की राजधानी गाड़िया, लंबी दूरी की गाडियाँ वह पहले चलने लगी और बादमे कम अंतर वाली गाड़िया चलाई जा रही है। इन सब मे रेल प्रशासन अपनी पॉलिसी मे जो बदलाव चाहती थी वह भी लाया जा रहा है। जैसे विद्युतीकरण कर के गाडियाँ चलवाना, सभी सवारी गाड़ियों को मेमू/डेमू मे बदलना, गाड़ियों का LHB करण करना, रखरखाव के लिए अलग से टाइम स्लॉट बनाना, समयाधारित पार्सल मालगाड़ियाँ चलाना, मालभाड़े पर दृष्टि केंद्रित करना, निजी यात्री गाड़ियों की संभावना तलाशना इत्यादि
अब यात्रियों को यह समझ कर चलना है की जब नई समयसारणी आएगी तो वह पूर्व निर्धारित कार्यक्रम अनुसार ही आएगी। शून्याधारित समयसारणी के बदलावों के साथ आएगी। मित्रों यह पूरा नियोजित और बड़ा ही जटिल कार्य है जो रेल प्रशासन लागू करने जा रही है। क्या आपको लगता है, की फलाँ गाड़ीका मार्ग परिवर्तन हुवा है या स्टेशनोके स्टोपेज रद्द किए है या फिर गाडियाँ रद्द की जानी है वह फिर से किसी प्रस्ताव से पुनर्स्थापित करना इतना आसान है? सोचिए, की कितना जटिल कार्य है और फिर कोई दरख्वास्त लगाइए।