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त्यौहार विशेष गाडियाँ यात्रिओंकी सुविधा या अतिरिक्त किरायोंकी सज़ा?

भारतीय रेल्वेने संक्रमण काल मे अपनी सभी यात्री गाडियाँ रद्द कर दी थी। संक्रमण का फैलाव रोकने के लिए यह जरूरी भी था। यात्री गाडियाँ शुरू करवाने का निर्णय संबंधित राज्यों के आपदा नियंत्रण समिति के अनुसार किया जाएगा यह भी निश्चित किया गया, और उसके अनुसार गाड़ियाँ शुरू करवाई गई। फिलहाल जो भी गाडियाँ चलाई जा रही है वह राज्यों के आपदा नियंत्रण समिति और राज्यों के मार्गदर्शन मे ही चलाई जा रही है।

रेल्वे प्रशासन ने अपनी जितनी भी गाड़िया चला रखी है, उन मे MSPC यानि मेल / एक्स्प्रेस स्पेशल कैटेगरी और PSPC यानि सवारी स्पेशल कैटेगरी गाडियाँ है। अब MSPC की मेल / एक्स्प्रेस स्पेशल कैटेगरी मे कुछ गाडियाँ त्यौहार विशेष कर चलाई जा रही है। यूँ तो सभी गाड़ियों मे यात्री टिकट की मेल / एक्स्प्रेस किराया श्रेणी की लगाई जा रही है, मगर इस त्यौहार विशेष की किराया श्रेणी भी विशेष ही कुछ हटकर है। 1.3 प्रतिशत ज्यादा किराया तो है ही मगर जो किरायों के लिए यात्रा की दूरी का निर्धारण है वह यात्री के पसीने छुड़वा देता है। कम दूरी के लिए भी 500 किलोमीटर का किराया देना पड़े तो नानीजी की याद आना तय है। अतिरिक्त याने कितना अतिरिक्त और कैसे, आइए समझते है। पहले निम्नलिखित परीपत्रक देखें। यह विशेष गाड़ियोंके किराया निर्धारण के सम्बंध में वर्ष 2015 में जारी किया गया परीपत्रक क्रमांक CC – 30/2015 है जो आजभी लागू है।

उत्सव या फेस्टिवल गाड़ियोंके किरायोंका गणित नियमित मेल/एक्सप्रेस के किरायोंपर ही आधारित है, द्वितीय श्रेणी के किराए मुलभूत (बेसिक) किरायोंसे 10% ज्यादा होंगे और बाकी सारे श्रेणियोंमे याने स्लिपर क्लास, वातानुकूलित 1,2,3 टियर, चेयर कार आदि में 30% तक ज्यादा रहेंगे।

टिकट बुकिंग के लिए डिस्टेन्स रिस्ट्रिक्शन्स याने यात्रा दूरी का बंधन भी रहेंगा। द्वितीय श्रेणी सेकन्ड क्लास सिटिंग के लिए 100 km, वातानुकूलित चेयर कार के लिए 250 km, वातानुकूलित प्रथम श्रेणी के लिए 300 km और स्लिपर क्लास, वातानुकूलित 2, 3 टियर के लिए 500 km कमसे कम अंतर का किराया देय होगा।

इसका मतलब यह है, की आप भलेही 200 किलोमीटर की टिकट स्लिपर क्लास में बुक करते है, लेकिन आपको तय 500 किलोमीटर को जितना बेसिक किराया लगता है वह देना होगा और इतर जोड़ गणित भी देख लीजिए। उस बेसिक किरायोंमे 30% ज्यादा जोड़ने के बाद जो रकम आएगी वह होगा आपका ‘उत्सव स्पेशल’ का बेसिक किराया। और सुपरफास्ट चार्जेस, आरक्षण शुल्क ई. अतिरिक्त चार्जेस मिलाकर आपको किराया देना होगा।

संक्रमण काल मे, गाड़ियों मे भीड़ नियंत्रित रहे इसीलिए लंबी दूरी की कुछ गाड़ियोंमे त्यौहार विशेष गाड़ियों की किराया श्रेणी लगाई गई, प्लेटफॉर्मों पर टिकट के रेट रुपए 10/- से बढ़ाकर 50/- तक कर दीए गए थे। स्टेशनों, गाड़ियों मे आम जनता को आने से हतोत्सहित किया जाए इस लिए यह बात समझ या सकती है। दिव्यांग और वैद्यकीय उपचार हेतु दीए जानेवाली रियायतों के अलावा सभी रियायतें रद्द कर दी गई, यहाँ तक की वरिष्ठ नागरिक रियायत, सवारी गाड़ी के किराए और जन उपयोगी MST पासेस भी बंद कर दी गई थी।

अब जब संक्रमण काफी हद तक नियंत्रण मे दिखाई देने लगा है, बहुतांश क्षेत्रीय रेल्वे ने सभी स्टेशनों पर स्टॉपजेस लेनेवाली PSPC गाडियाँ भी चला दी है, प्लेटफॉर्म के किराये नियमित कराए जा रहे, MST सुविधा भी खोलना शुरू कर दिया है। ऐसे मे इन त्यौहार विशेष के महंगे त्यौहारी किरायों की वसूली क्यों की जा रही है यह आम यात्री की समझ के परे है। भला कौनसी गाड़ी त्यौहार विशेष हो इसकी भी कोई नियमावली नहीं समझ आती है। यह सिर्फ त्यौहार विशेष का ही नहीं सुपरफास्ट एक्सप्रेस के अतिरिक्त शुल्क का भी खेला अजीब है। पश्चिम रेल्वे की कई गाड़ियों मे एकतरफा सुपरफास्ट चार्जेस लगाए जा रहे है रुपए 15/- से लेकर 75/- तक अतिरिक्त वसूली हो रही है।

आम जनता पहले ही इस संक्रमण और उनके साइड इफेक्ट्स जो उनकी आर्थिक स्थिति को लगे है उससे बेहद परेशान है। कई लोगोंके व्यवसाय, रोजगार जा कर मोल- मजदूरी पर आ गए है। ऐसी हालतोंमें क्या रेल प्रशासन अपनी इस त्यौहारी वसूली का पुनरावलोकन कर के उन किरायोंको नियमित नही कर सकती?

पुराणोंमें कहते है, जो पीड़ित, परेशान, आर्थिक संकट से गुजर रहा है उसको न्याय के देवता, शनिदेव भी बख्श देते है, क्योंकि वह उसके आर्थिक तंगहाली के चलते कुछ भी नही कर पाता। क्या रेल प्रशासन भी यही सोच है, जिन गाड़ियोंके किराए ज्यादा हो, अतिरिक्त त्यौहारी किराए हो उनमें यात्रा मत कीजिए। न आप यात्रा करेंगे न आपको किराया देना पड़ेगा। क्या यही संकल्पना है? यदि ऐसा है, तो यह बहुत ही भयावह है, आम यात्रिओंमें नाराजगी पैदा करनेवाला है। पहले ही नियमित गाड़ियाँ कम चल रही है, उनमें भी किसी भी गाड़ी के किराए, किराया तालिका से मेल नही खाते, किसी के कम किसी ज्यादा तो किसी के बहुत ही ज्यादा। रेल प्रशासन को चाहिए की, “नियमित गाड़ियाँ, नियमित किराए” लागू करें। आम यात्रिओंमें असंतोष फैलने तक की राह देखने मे समझदारी नही है।

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