यह गुहार जिन स्टेशनोंके स्टापेजेस संक्रमण के बाद फिर से बहाल नही हुए है, या वर्षोंसे स्टापेजेस की मांग किए जा रहे लेकिन कार्रवाई क्या रेल के अधिकारी जवाब तक नही देते, ऐसे यात्रिओंके द्वारा की जा रही है। और क्यों न करे ऐसी मांग? उपभोक्ता समिति के सदस्योतक की कोई सुनवाई नही तो क्या करें? आखिर ऐसी बेतूकी माँग का क्या कारण हो सकता है, हम समझाते है। पहले निम्नलिखित परीपत्रक देख लीजिए।

02283/84 एर्नाकुलम निजामुद्दीन एर्नाकुलम साप्ताहिक दुरान्तो को सूरत स्टेशन पर ठहराव दिया जा रहा है। ज्ञात रहे, सुरत की सांसद श्रीमती दर्शना जरदोष, ने हाल ही में रेल राज्य मन्त्री का पदभार सम्भाला है।

02781/82 तिरुपति निजामुद्दीन तिरुपति त्रिसाप्ताहिक आंध्र प्रदेश संपर्क क्रांति विशेष को 24 सितम्बर से ग्वालियर स्टेशनपर ठहराव दिया जा रहा है।
यह तो खैर आपकी जानकारी के लिए है, की उपरोक्त जगहोंपर नए स्टापेजेस की घोषणा हुई है, मगर आम यात्री यह भलीभाँति जानता है की यह नए स्टापेजेस कैसे शुरू हो गए। ग्वालियर से तिरुपति की रेल सम्पर्कता बहुतायत में है। उसी प्रकार सुरत की भी एर्नाकुलम से कनेक्टिविटी में कोई कमी नही है। रही बात दिल्ली से कनेक्ट होने की तो सुरत और ग्वालियर से दिल्ली के लिए रेल गाड़ियोंकी भरमार है।
किसी स्टेशन को स्टापेजेस मिले तो उसका फायदा वहांके यात्रिओंको मिलेगा यह बात निश्चित है प्रश्न इसका है ही नही, अपितु वर्षोंसे मध्यप्रदेश का जिला मुख्यालय बुरहानपुर कई गाड़ियोंके स्टापेजेस मांगता आ रहा है, खण्डवा में कई गाड़ियाँ नही रुकती जबकी मध्यप्रदेश के निमाड़ प्रान्त के कई छोटे गाँवोंका यह स्टेशन मुख्य रेल सम्पर्क है। वहीं अवस्था रतलाम स्टेशन की भी है। इस तरह कई रेलवे स्टेशन है, जो अपने स्टेशन से गुजरने वाली और न रुकने वाली गाड़ियोंके यात्री ठहराव की माँग करते चले आ रहे और जिस पर सम्बंधित रेल अधिकारी जवाब तक नही देते या यह कह कर टाल देते है की आपके स्टेशन की आय उतनी नही है जितनी रेल प्रशासन ने स्टापेजेस देने के लिए निर्धारित की है।
आप सहज ही बता सकते है, यदि स्टेशनपर गाड़ी रुकेगी ही नही तो उस शहर के लोग क्या सैरसपाटे करने टिकट लेकर स्टेशन पर आएंगे? किस तरह से आय दिखेंगी? यदि कोई यात्री संगठन या उपभोक्ता समिति का गणमान्य सदस्य अपने स्टेशनपर स्टापेजेस की माँग करता है, तो आप प्रयोगात्मक तौर पर 3 माह या छह माह के लिए स्टापेजेस दे कर तो देखिए, तब ही तो आप को पता चलेगा कि स्टेशन की आय बढ़ती है या नही। नही तो बेचारे यात्रिओंका भी क्या दोष, उनकी सोच बराबर ही है की कोई उनके भी सांसद को मन्त्री बना दीजिए, ताकी गाड़ियाँ उनके स्टेशनोंपर भी रुकने लगे।