संक्रमण काल चल रहा है इसीलिए विशेष गाडियाँ चल रही है ताकी जब आपदा वाली स्थिति आए तो फौरन गाड़ियोंके परिचालन को नियंत्रित किया जा सके। संक्रमण काल चल रहा है इसीलिए गाड़ियों में यात्रिओंसे विशेष किराए लीए जा रहे ताकी यात्री आवश्यक कार्य के लिए ही रेल यात्रा करे, पर्यटन वगैरे के लिए हतोत्साहित हो। चूंकि सभी गाडियाँ नहीं चल रही है और जो भी चल रही है वह भी विशेष श्रेणी मे अतः समयसारणी प्रकाशित नहीं की जा रही। इस तरह के सवाल यात्रीओं के मन मे उठते रहते है और उत्तर भी वही ढूंढकर, अपने आप को शांत करने का प्रयत्न कर रहा है। मगर रेल प्रशासन क्या कर रहा है?
लगभग 85% यात्री गाड़िया पटरी पर आ गई है, चल रही है। रेल्वे की उपकम्पनी आईआरसीटीसी तो पर्यटन विशेष गाडियाँ भी चलाने लग गई है, ऐसे मे रेल प्रशासन अपनी पूर्ण क्षमता से गाडियाँ क्यों नहीं चला रही? तीर्थयात्रा या पर्यटन यह आवश्यकता की सूची मे सबसे आखिरी पर्याय होना चाहिए, जब रेल प्रशासन ने अपनी उपकम्पनी को पर्यटन विशेष गाडियाँ चलाने की अनुमति दे दी इसका अर्थ आम यात्री क्या यह समझ ले की रेल्वे के दृष्टिकोण से परिस्थितियाँ साधारण हो चुकी है? यदि ऐसा है तो विशेष गाडियाँ, उनके के वह ‘0’ वाले चमत्कारी गाड़ी क्रमांक और सबसे पीड़ादायक उनके वह अकल्पनीय और किसी भी अवधारणा को छेद देने वाले विशेष किराए बंद क्यों नहीं किए जाते? एक तरफ की यात्रा मे नियमित किराए तो लौटते वक्त वही गाड़ी यात्री से सुपरफास्ट किराया मांगती है। समान स्टेशनों के लिए त्यौहार ( कौनसे त्यौहार, किस के त्यौहार ) विशेष गाड़ीमे दूरी के निर्बंध लगा कर अतिरिक्त किराया वसूली, मार्ग के तमाम जगहों पर ठहरते ठहरते चलनेवाली सवारी में ( यह शब्द भूलना होगा ) गाड़ी का मेल/एक्स्प्रेस किराया वसूली। पूरे रेलवे में किसी भी तरीके का कोई भी मानक तय नहीं, आखिर चल क्या रहा है? गाड़ियोंके परिचालन, उनके किरायों का नियमितीकरण, मानकीकरण यात्री के अधिकारों को ध्यान मे रखते हुए, जल्द से जल्द होना चाहिए।
समयसारणी मे तो एक अजब खेल चल रहा है। प्रत्येक क्षेत्रीय रेल्वे अपनी कौन सी समयसारणी पर यात्री गाड़ियों का परिचालन कर रहा है यह एक संशोधन का विषय है और कोई इसे पूरा कर सकता है तो वह निश्चित ही डॉक्टरेट की उपाधि का पात्र समझा जाना चाहिए। अब तक दक्षिण रेल्वे, दक्षिण पश्चिम रेल्वे, दक्षिण मध्य रेल्वे, उत्तर पश्चिम रेल्वे, पूर्वोत्तर रेल्वे, पश्चिम मध्य रेल्वे इत्यादि रेल्वेज ने अपनी पूर्ण समयसारणी मे 01 अकटूबर से बदलाव के परिपत्रक जारी किए। वहीं उत्तर रेल्वे, पश्चिम रेल्वे, दक्षिण पूर्व रेल्वे आदि ने अपने थोड़े बहुत किए गए बदलावों को अलग अलग टुकड़ों मे जारी किया है। मगर भारतीय रेल द्वारा प्रकाशित ‘रेल गाडियाँ एक दृष्टि मे’ या Trains At A Glance नामक समयसारणी का दूर दूर तक नामोनिशान नहीं है और ना ही कोई क्षेत्रीय रेल्वे की एकीकृत समयसारणी। इसका मतलब यह है, यदि आपको अपनी रेल यात्रा का नियोजन करना है तो रेल्वे की वेबसाइटों का ही सहारा लेना है और लेना ही पड़ेगा क्योंकी बहुतसे क्षेत्रीय रेल्वे मे अब भी सामान्य, अनारक्षित टिकट नहीं दिए जा रहे।
एक तरफ सामान्य यात्री अपने आवश्यक कामों या रोजगार के लिए रेल टिकट नहीं मिल पाने से परेशान है वहीं अनधिकृत विक्रेता, माँगनेवाले, तृतीयपंथी की यात्री गाड़ियों मे बेरोकटोक आवाजाही चल रही है। यात्री गाड़ियों मे चल टिकट निरीक्षक को दूरबीन लगाकर ढूँढना पड़ता है, जब की यात्री सेवा के लिए डिब्बे के सामने रहना उनकी ड्यूटी है। जंक्शनों के यह हाल है, तो बीच वाले छोटे स्टेशनों के यात्री कितने बेहाल होंगे इसकी कल्पना ही नहीं की जा सकती है। कुल मिलाकर यह हाल है, अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी और टका सेर ही खाजा।